किरात से युद्ध – war with Kirat
हिमालय की तराई में एक सघन वन था|
वन में तरह-तरह के पशु-पक्षी रहते थे|
वहीं जगह-जगह ऋषियों की झोंपड़ियां भी बनी हुई थीं|
ऐसा लगता था मानो प्रकृति ने अपने हाथों से उस वन को संवारा हो|
उन्हीं झोंपड़ियों के पास एक तेजस्वी युवक बहुत दिनों से अंगूठे के बल खड़ा होकर तप में लीन था|
उसने खाना-पीना सबकुछ छोड़ दिया था|
वह केवल हवा पीकर ही रहता था|
उसका शरीर सूख गया था, सिर के बाल बढ़ गए थे, पर चेहरे पर तेज बढ़ता जा रहा था, लगता था, मानो दूसरा सूर्य निकल रहा हो|
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वह तपस्वी पांडवों का भाई अर्जुन था|
वेदव्यास की सलाह से वह दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए शिवजी को प्रसन्न करने की चेष्टा कर रहा था; क्योंकि छली, षड्यंत्रकारी और पापी कौरवों को हराने के लिए शिवजी की शरण में जाने के अतिरिक्त बेसहारा पाण्डवों के पास अब कोई चारा नहीं रह गया था|
अर्जुन के तप के तेज से आसपास की धरती जलने लगी|
झोपड़ियों में रहने वाले ऋषि-मुनि घबरा उठे|
वे अर्जुन को समझाने लगे कि वह ऐसा कठिन तप न करे, पर अर्जुन ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया|
ध्यान भी वह कैसे दे सकता था|
उसे तो अधर्म और अन्याय को मिटाने के लिए शिवजी से दिव्यास्त्र प्राप्त करने थे|
अत: वह तप में लगा रहा|
अर्जुन ने जब ऋषियों की बात पर ध्यान नहीं दिया तो ऋषिगण सामूहिक रूप से शिवजी से प्रार्थना करने लगे, “प्रभो ! अर्जुन के तप से धरती जल रही है|
अगर आप उसे रोकेंगे नहीं तो इस वन में हम लोगों का रहना कठिन हो जाएगा|
”
उसी समय आकाशवाणी हुई, “ऋषियों ! घबराओ नहीं|
अर्जुन पूर्वजन्म का देवता है|
उसके तप से तुम्हारा अनिष्ट नहीं होगा|
वह मुझसे दिव्यास्त्र लेना चाहता है|
मैं उसके तप से प्रसन्न हूं|
”
यह वाणी स्वयं भगवान आशुतोष की थी|
अर्जुन बड़ी श्रद्धा से उनकी आराधना में लगा रहा, उन्हें प्रसन्न करने के लिए तप करता रहा|
दोपहर का समय था|
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अर्जुन अपनी पूजा की माला भगवान के चरणों पर चढ़ रहा था|
सहसा उसे एक शूकर दिखाई पड़ा, जो कहीं से निकलकर उसी ओर आ रहा था|
अर्जुन ने झट अपना धनुष-बाण उठाया और धनुष पर बाण चढ़ाकर शूकर पर चला दिया|
बाण शूकर की छाती में लगा|
वह धरती पर गिरकर, कुछ देर तक तड़पकर सदा के लिए सो गया|
अर्जुन के बाण के साथ ही साथ शूकर की छाती में एक और भी बाण लगा था|
वह बाण एक किरात का था, जो दूर से शूकर का पीछा करता हुआ आ रहा था|
शूकर जब धरती पर गिरा, तब अर्जुन और किरात दोनों शूकर के पास जा पहुंचे|
अर्जुन ने कहा, “शूकर की मृत्यु उसके बाण से हुई है|
” पर किरात ने उसकी बात का विरोध किया|
उसने कहा, “नहीं, शूकर की मृत्यु अर्जुन के बाण से नहीं, उसके बाण से हुई है|
” शूकर की मृत्यु को लेकर अर्जुन और किरात में विवाद होने लगा|
दोनों ही एक दूसरे की वीरता को ललकारने लगे|
बातों ही बातों में अर्जुन का क्रोध भड़क उठा|
वह किरात पर बाण चलाने लगा|
अर्जुन ने किरात पर कई बाण चलाए, पर उसके सभी बाण किरात के शरीर से फल की तरह लग-लग कर नीचे गिर पड़े|
वह विस्मित हो उठा, पर साथ ही और भी अधिक क्रुद्ध हो उठा|
वह किरात को युद्ध के लिए ललकार कर उस पर बाणों की वर्षा करने लगा|
फलत: किरात भी युद्ध के लिए तैयार हो गया|
किरात और अर्जुन दोनों में युद्ध होने लगा|
अर्जुन के पास युद्ध की जितनी कलाएं थीं, जितने अस्त्र-शस्त्र थे, सबका उसने उपयोग किया, पर किरात का बाल तक बांका नहीं हुआ|
यह पहला अवसर था, जब अर्जुन के बाण विफल हुए थे|
वह आश्चर्य में डूबकर सोचने लगा – यह किरात कौन है?
मेरे बाण क्यों विफल हो गए?
कहीं किरात के रूप में भगवान शिव तो नहीं हैं|
अर्जुन की आंखें बंद हो गईं|
वह हाथ में धनुष-बाण लेकर खड़ा था|
वह आंखें बंद करके सोचने लगा – अवश्य किरात के रूप में यह शिवजी ही हैं|
मेरे बाण भगवान शंकर को छोड़कर और किसी पर विफल नहीं हो सकते थे|
अर्जुन ने आंखें खोलकर देखो, सामने कोई नहीं था|
किरात इधर-उधर कहीं भी दिखाई नहीं पड़ रहा था|
अर्जुन के मुख से अपने आप ही निकल पड़ा – भगवान शंकर, भगवान आशुतोष !
सहसा अर्जुन के गले में एक माला आ गई|
यह उन्हीं मालाओं में से एक थी, जिन्हें अर्जुन भगवान के चरणों में चढ़ाया करता था|
अर्जुन को विश्वास हो गया कि किरात के रूप में भगवान शिव ही उसके शौर्य की परीक्षा ले रहे थे|
अर्जुन का मन शक्ति और श्रद्धा से भर गया|
वह पुलकित होकर भगवान शंकर की प्रार्थना करने लगा|
भगवान आशुतोष प्रसन्न हो उठे|
उन्होंने प्रसन्नता भरे स्वर में कहा, “अर्जुन, मैं तुम्हारी वीरता की परीक्षा लेकर परम संतुष्ट हुआ हूं|
मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार ही तुम्हें पाशुपतास्त्र दे रहा हूं|
इससे तुम तीनों लोकों को जीत सकोगे|
”
अर्जुन को उद्देश्य पूर्ण हुआ|
महाभारत के पन्नों से प्रकट है कि अर्जुन ने भगवान शंकर के दिए हुए अस्त्रों से ही महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की थी|
सृष्टि के इतिहास में शौर्य की नैवेद्य से शिवजी को संतुष्ट करने वाला अकेला अर्जुन ही है|
अत: उसकी वीरता की कहानी प्रलय की छाती पर भी लिखी रहेगी|
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