खुशबू की कीमत – Price Of Fragrance
राह चलते एक भिखारी को किसी ने चंद रोटियां दे दीं लेकिन साथ में खाने के लिए सब्जी नहीं दी. भिखारी एक सराय में गया और उसने सराय-मालिक से खाने के लिए थोड़ी सी सब्जी मांगी. सराय-मालिक ने उसे झिड़ककर दफा कर दिया. भिखारी बेचारा नज़र बचाकर सराय की रसोई में घुस गया. चूल्हे के ऊपर उम्दा सब्जी पक रही थी. भिखारी ने देग से उठती हुई भाप में अपनी रोटियां इस उम्मीद से लगा दीं कि सब्जी की खुशबू से कुछ जायका तो रोटियों में आ ही जायेगा.
अचानक ही सराय-मालिक रसोई में आ धमका और भिखारी का गिरेबान पकड़कर उसपर सब्जी चुराने का इल्ज़ाम लगाने लगा.
“मैंने सब्जी नहीं चुराई!” – भिखारी बोला – “मैं तो सिर्फ उसकी खुशबू ले रहा था!”
“तो फिर तुम खुशबू की कीमत चुकाओ!” – सराय-मालिक बोला.
भिखारी के पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं थी. सराय-मालिक उसे घसीटकर काज़ी मुल्ला नसरुद्दीन के पास ले गया.
मुल्ला ने सराय-मालिक की शिकायत और भिखारी की बात इत्मीनान से सुनी.
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“तो तुम्हें अपनी सब्जी की खुशबू की कीमत चाहिए न?
” – मुल्ला ने सराय-मालिक से पूछा.
“जी. आपकी बड़ी महरबानी होगी” – सराय-मालिक बोला.
“ठीक है. मैं खुद तुम्हें तुम्हारी सब्जी की खुशबू की कीमत अदा करूँगा” – मुल्ला बोला – “और मैं खुशबू की कीमत सिक्कों की खनक से चुकाऊँगा”.
यह कहकर मुल्ला ने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाले और उन्हें हथेली में लेकर जोरों से खनकाया और उन्हें वापस अपनी जेब में रख लिया.
ठगाया-सा सराय-मालिक और हैरान-सा भिखारी, दोनों अपने-अपने रास्ते चले गए.
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