मुल्ला नसरुद्दीन और ग़रीब का झोला – Mulla Nasruddin And Garib’S Bag
एक दिन मुल्ला कहीं जा रहा था कि उसने सड़क पर एक दुखी आदमी को देखा जो ऊपरवाले को अपने खोटे नसीब के लिए कोस रहा था. मुल्ला ने उसके करीब जाकर उससे पूछा – “क्यों भाई, इतने दुखी क्यों हो?
”
वह आदमी मुल्ला को अपना फटा-पुराना झोला दिखाते हुए बोला – “इस द्नुनिया में मेरे पास इतना कुछ भी नहीं है जो मेरे इस फटे-पुराने झोले में समा जाये.”
“बहुत बुरी बात है” – मुल्ला बोला और उस आदमी के हाथ से झोला झपटकर सरपट भाग लिया.
अपना एकमात्र माल-असबाब छीन लिए जाने पर वह आदमी रो पड़ा. वह अब पहले से भी ज्यादा दुखी था. अब वह क्या करता! वह अपनी राह चलता रहा.
दूसरी ओर, मुल्ला उसका झोला लेकर भागता हुआ सड़क के एक मोड़ पर आ गया और मोड़ के पीछे उसने वह झोला सड़क के बीचोंबीच रख दिया ताकि उस आदमी को ज़रा दूर चलने पर अपना झोला मिल जाए.
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दुखी आदमी ने जब सड़क के मोड़ पर अपना झोला पड़ा पाया तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा . वह ख़ुशी से रो पड़ा और उसने झोले को उठाकर अपने सीने से लगा लिया और बोला – “मेरे झोले, मुझे लगा मैंने तुम्हें सदा के लिए खो दिया!”
झाड़ियों में छुपा मुल्ला यह नज़ारा देख रहा था. वह हंसते हुए खुद से बोला – “ये भी किसी को खुश करने का शानदार तरीका है!”
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