Bhagavad Gita
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श्लोक 28 – Verse 28

अर्जुन उवाच
कृपया परयाऽऽविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत्।
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्।।1.28।।

arjuna uvācha
dṛiṣhṭvemaṁ sva-janaṁ kṛiṣhṇa yuyutsuṁ samupasthitam

शब्दों का अर्थ

arjunaḥ uvācha—Arjun said; dṛiṣhṭvā—on seeing; imam—these; sva-janam—kinsmen; kṛiṣhṇa—Krishna; yuyutsum—eager to fight; samupasthitam—present;

Translations by Teachers (आचार्यो द्वारा अनुवाद):

Swami Ramsukhdas (Hindi)

।।1.28 — 1.30।। अर्जुन बोले – हे कृष्ण! युद्ध की इच्छावाले इस कुटुम्ब-समुदाय को अपने सामने उपस्थित देखकर मेरे अङ्ग शिथिल हो रहे हैं और मुख सूख रहा है तथा मेरे शरीर में कँपकँपी आ रही है एवं रोंगटे खड़े हो रहे हैं। हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी जल रही है। मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है और मैं खड़े रहने में भी असमर्थ हो रहा हूँ।
 

Swami Tejomayananda (Hindi)

।।1.28 1.29।।अर्जुन ने कहा — हे कृष्ण ! युद्ध की इच्छा रखकर उपस्थित हुए इन स्वजनों को देखकर मेरे अंग शिथिल हुये जाते हैं, मुख भी सूख रहा है और मेरे शरीर में कम्प तथा रोमांच हो रहा है।।

 

Swami Adidevananda (English)

He was filled with deep compassion and said these words in despair:

Swami Gambirananda (English)

Arjuna said, “O Krsna, seeing these relatives and friends who have assembled here with the intention of fighting, my limbs become languid and my mouth becomes completely dry.”

Swami Sivananda (English)

Arjuna said, “O Krishna, seeing my kinsmen arrayed here, eager to fight,

Dr. S. Sankaranarayan (English)

Shivers and goosebumps arise in my body; the Gandiva slips from my hand and my skin is burning all over.

Shri Purohit Swami (English)

And his heart melted with pity, and sadly he spoke: “O my Lord! When I see all these, my own people, thirsting for battle,