आज हिन्दी नगरी आपके लिए लाया है एक नई कहानी स्वामी जी का उपदेश – Swami Ji Ka Updesh ।
हम लोग सोचते है की बस ज्ञान प्राप्त कर ले और उसके लिए चाहिए ही क्या बस एक गुरु की खोज करनी होती है मगर ऐसा नहीं है ज्ञान प्राप्त करने के लिए जितनी गुरु की जरूरत होती है उतनी ही जरूरत हमारे मन के साफ होने की है इसीलिए हमे अपने मन के कुविचार को निकाल कर उसके बाद ही ज्ञानार्जन करना चाहिए।
इस कहानी मे स्वामी ने यही उपदेश दिया है कि ज्ञानार्जन के लिए क्या जरूरी है।
हमे पूरा विश्वास है की यह कहानी आपको ज्ञान प्राप्त करने मे सहायक होगी ।
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स्वामी जी का उपदेश
एक बार समर्थ स्वामी रामदासजी भिक्षा माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी- “जय जय रघुवीर समर्थ !”
घर से महिला बाहर आयी।
उसने उनकी झोलीमे भिक्षा डाली और कहा, “महात्माजी, कोई उपदेश दीजिए !”
स्वामीजी बोले, “आज नहीं, कल दूँगा।”
दूसरे दिन स्वामीजी ने पुन: उस घर के सामने आवाज दी – “जय जय रघुवीर समर्थ !”
उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनायीं थी, जिसमे बादाम-पिस्ते भी डाले थे।
वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी।
स्वामीजीने अपना कमंडल आगे कर दिया।
वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है।
उसके हाथ ठिठक गए। वह बोली, “महाराज ! यह कमंडल तो गन्दा है।”
स्वामीजी बोले, “हाँ, गन्दा तो है, किन्तु खीर इसमें डाल दो।”
स्त्री बोली, “नहीं महाराज, तब तो खीर ख़राब हो जायेगी।
दीजिये यह कमंडल, में इसे शुद्ध कर लाती हूँ।”
स्वामीजी बोले, मतलब जब यह कमंडल साफ़ हो जायेगा, तभी खीर डालोगी न ?”
स्त्री ने कहा, “जी महाराज !”
स्वामीजी बोले, “मेरा भी यही उपदेश है। मन में जब तक चिन्ताओ का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्करो का गोबर भरा है, तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा।
यदि उपदेशामृत(उपदेश रूपी अमृत) पान करना है, तो प्रथम अपने मन को शुद्ध करना चाहिए, कुसंस्कारो(बुरे संस्कारों) का त्याग करना चाहिए, तभी सच्चे सुख और आनन्द की प्राप्ति होगी।”
सत्य कथन
हम अपने अवचेतन मन में जो कुछ भी लगाते हैं और पुनरावृत्ति और भावनाओं के साथ पोषण करते हैं, वह एक दिन एक वास्तविकता बन जाएगा।
Whatever we plant in our subconscious mind and nourish with repetition and emotion will one day become a reality.
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