शिकायत – Complaint
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मैं तुमसे एक कहानी कहता हूं एक बहुत सुंदर कहानी। इसे जितना संभव हो सके उतनी गहराई से सुनो। एक महिला और उसका छोटा सा बच्चा समुंद्र की लहरों पर अठखेलियां करू रहे थे, और पानी का बहाव काफी तेज था। उसने अपने पुत्र की बांह मजबूती से पकड़ रखी थी और वे प्रसन्नतापूर्वक जलक्रीड़ा में संलग्न थे, कि अचानक पानी की एक विशाल भयानक तरंग उनके सामने प्रकट हुई। उन्होंने भयाक्रांत होकर उसको देखा, ज्वार की यह लहर उनके ठीक सामने ही ऊपर और ऊपर उठती चली गई, और उनके ऊपर छा गई। जब पानी वापस लौट गया तो वह छोटा बच्चा कहीं दिखाई नहीं पड़ा। शोकाकुल मां ने मेल्विन, मेल्विन तुम कहां हो?
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मेल्विन! चिल्लाते हुए पानी में हर तरफ उसको खोजा। जब यह स्पष्ट हो गया कि बच्चा खो गया है, उसे पानी सागर में बहा ले गया है, तब पुत्र के वियोग में व्याकुल मां ने अपनी आंखें आकाश की ओर उठाई और प्रार्थना की, ओह, प्रिय और दयालु परम पिता, कृपया मुझ पर रहम कीजिए और मेरे प्यारे से बच्चे को वापस कर दीजिए। आपसे मैं आपके प्रति शाश्वत आभार का वादा करती हूं। मैं वादा करती हूं कि मैं अपने पति को पुन: कभी धोखा नहीं दूंगी; मैं अब अपने आयकर को जमा करने में दुबारा कभी धोखा नहीं करूंगी; मैं अपनी सास के प्रति दयालु रहूंगी; मैं सिगरेट पीना और सारे व्यसन छोड़ दूंगी! सभी गलत शौक, बस केवल कृपा करके मेरा पक्ष लीजिए और मेरे पुत्र को लौटा दीजिए।’
बस तभी पानी की एक और दीवार प्रकट हुई और उसके सिर पर गिर पड़ी।जब पानी वापस लौट गया तो उसने अपने छोटे से बेटे को वहां पर खड़ा हुआ देखा। उसने उसको अपनी छाती से लगाया, उसको चूमा और अपने से चिपटा लिया। फिर उसने उसे एक क्षण को देखा और एक बार फिर अपनी निगाहें स्वर्ग की ओर उठा दीं। ऊपर की ओर देखते हुए उसने कहा, लेकिन उसने हैट लगा रखा था। मन यही है, बच्चा वापस आ गया है, लेकिन हैट खो गया है। अब वह इसलिए प्रसन्न नहीं है कि बेटा लौट आया है, बल्कि अप्रसन्न है कि हैट खो गया था—फिर शिकायत। क्या तुमने कभी देखा है कि तुम्हारे मन के भीतर यही हो रहा है या नहीं?
सदा ऐसा ही हो रहा है। जीवन तुमको जो कुछ भी देता है उसके लिए तुम धन्यवाद नहीं देते। तुम बार—बार हैट के बारे में शिकायत कर रहे हो। तुम लगातार उसी को देखते जाते हो जो नहीं हुआ है, उसको नहीं देखते जो हो चुका है। तुम सदैव देखते हो और इच्छा करते हो और अपेक्षा करते हो, लेकिन तुम कभी आभारी नहीं होते। तुम्हारे लिए लाखों बातें घटित हो रही हैं, लेकिन तुम कभी आभारी नहीं होते। तुम सदैव चिड़चिड़ाहट और .शिकायत से भरे रहते हो, और सदा ही तुम हताशा की अवस्था में रहते हो। – ओशो ”
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