ऐक घड़ी आधो घड़ी, आधो हुं सो आध कबीर संगति साधु की, कटै कोटि अपराध।
अर्थ : एक क्षण,आध क्षण, आधे का भी आधा क्षण के लिये यदि साधु संतों की संगति की जाये तो हमारे करोड़ों अपराध पाप नाश हो जाते है।
दोहा – 2
उजल बुन्द आकाश की, परि गयी भुमि बिकार माटी मिलि भई कीच सो बिन संगति भौउ छार।
अर्थ : आकाश से गिरने वाली वर्षा की बूदें निर्मल और उज्जवल होती है किंतु जमीन पर गिरते ही गंदी हो जाती है। मिटृी में मिलकर वह कीचड़ हो जाती है। इसी तरह आदमी भी अच्छी संगाति के अभाव से बुरा हो जाता है।
दोहा – 3
उंचे कुल का जनमिया करनी उॅच ना होय कनक कलश मद सो भरी साधुन निन्दा सोय।
अर्थ : अच्छे कुल खानदान मे जन्म लेने का क्या लाभ यदि कत्र्तत्य अच्छे नहीं है। यदि सोने के कलश में मदिरा भरी हो तो भी एक संत उसकी निंदा ही करेंगे।
दोहा – 4
कोयला भी होये उजल, जरि बरि है जो सेत मुरख होय ना उजला, ज्यों कालर का खेत।
अर्थ : कोयला भी अच्छी तरह जल कर उजला हो जाता है परंतु मूर्ख कभी भी उज्जवल नहीं होता जैसे कि एक वंजर भूमि में बीज नहीं उगता है।
दोहा – 5
चंदन जैसे संत है, सरुप जैसे संसार वाके अंग लपटा रहै, भागै नहीं बिकार।
अर्थ : संत चंदन की भाॅंति होते है और यह संसार साॅंप की तरह विषैला है। किंतु साॅंप यदि संत के शरीर में बहुत दिनों तक लिपटा रहे तब भी साॅंप का विष-विकार समाप्त नहीं होता है।
दोहा – 6
जा घर हरि भक्ति नहीं, संत नहीं मिहमान ता घट जम डेरा दिया, जीवत भये मसान।
अर्थ : जिस घर में ईश्वर की उपासना नहीं होती है और संत अतिथि नहीं माने जाते हैं उस घर में मृत्यु के देवता यमराज का वास रहता है और वह श्मसान की भाॅंति है।
दोहा – 7
जीवन जोवन राज मद अविचल रहै ना कोये जु दिन जाये सतसंग मे, जीवन का फल सोये।
अर्थ : यह जमीन,यौवन,राजपाट,धन संपत्ति,अभिमान कुछ भी स्थायी नहीं है। किंतु जो दिन संतों के सत्संग में बीतता है-वही जीवन का वास्तविक फल है।
दोहा – 8
जो छोरै तो आंधरा, खाये तो मरि जाये ऐसे खान्ध छुछुन्दरी, दोउ भांति पछताये।
अर्थ : यदि साॅंप छछुंदर को पकड़ कर छोड़ देता है तो अंधा हो जाता है और खा लेने पर मर जाता है। वह दोनों ही भॅंाति पछताता है। इसी प्रकार बुरे लोगों के साथ से पतन होता है और उन्हें छोड़ देने पर वे दुश्मन वन जाते हैं। कुसंगति से हर प्रकार से बुरा ही होता है।
दोहा – 9
जा पल दर्शन साधु का ता पल की बलिहार राम नाम रसने बसै, लीजैय जनम सुधार।
अर्थ : जिस क्षण किसी संत का दर्शन होता है-उस क्षण को कोटिशः धन्यवाद। उनके दर्शन मात्र से मुॅंह में राम नाम का वास हो जाता है और हमारा जीवन सुधर जाता है।
अर्थ : मथुरा ,काशी ,द्वारिका,हरिद्वार, जगन्नाथ सब व्यर्थ हैं। बिना साधु की संगति और प्रभु के भजन के कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है।
दोहा – 11
ब्राहमन केरी बेटिया मांस शराब ना खाये संगति भयी कलाल की मद बिना रहा ना जाये।
अर्थ : ब्राम्हण की बेटी माॅंस शराब नहीं खाती थी पर जब शराब बनाने वाले कलाल के साथ संगति हो गई तो बिना शराब के वह नहीं रह सकती है।
दोहा – 12
मेरा संगी दो जना , ऐक वैशनव ऐक राम वे दाता है मुक्ति के, वे सुमिरावै नाम।
अर्थ : मेरे दो साथी हैं एक वैष्णव और एक राम। राम मुक्ति दाता हैं और वैष्णव नाम का सुमिरण कराने वाले हैं। विष्णु के भक्तों को वैष्णव कहते हंै।
दोहा – 13
ऋद्धि सिद्धि मांगु नहि, मांगु तुम पै येह नित प्रति दर्शन साधु का कहे कबीर मुहि देह।
अर्थ : कबीर धन दौलत या मुक्ति की कामना नहीं करते हैं। वे मात्र एक ही मांग करते हैं कि उन्हें प्रति दिन संतों का दर्शन अवश्य हो।
दोहा – 14
संगति किजै संत की , जिनका पूरा मान अंतोले ही देत है, राम सरीखा घान।
अर्थ : संतों की संगति करे जिनका मन ज्ञान से परिपूर्ण हो। बिना मोल भाव और तौल के ही वे राम जैसा धन प्रदान करते हंै।
दोहा – 15
राम बुलाबा भेजिया, दिया कबीरा रोये जो सुख साधु संग मे सो वैकुंठ ना होये।
अर्थ : राम का बुलावा सुन कर कबीर को रोना आ गया। साधु की संगति में जो सुख उन्हें मिलता है वह प्रभु के निवास वैकुण्ठ में नहीं प्राप्त है। संत की संगति का यह महत्व है।
दोहा – 16
सज्जन को सज्जन मिलै, होबै दो दो बात गदहा सो गदहा मिलै, खाबै दो दो लात।
अर्थ : जबदो भक्त पुरुष मिलते हंै तो परस्पर उन में प्यार भरी बातें होती है पर दो गद्हे जब एक जगह मिलते हैं तो वे दोनों एक दूसरे को दुलत्ती मारते हैं।
दोहा – 17
ज्ञानी को ज्ञानी मिलै, रस की लूटम लूट ज्ञानी अज्ञानी मिलै, होबै माथा कूट।
अर्थ : जब दो ज्ञानी परस्पर मिलते है तो उनमें ज्ञान एंव प्रेम रस की लूट होती है पर ज्ञानी और मूर्ख के मिलने पर उनमें सिर फोड़ने और माथा पीटने का काम होता है।
दोहा – 18
हरिजन केवल होत है, जाको हरि का संग बिपति पड़ै बिसरै नहीं, छाड़ै चैगुन रंग।
अर्थ : हरिजन उसे कहते ह्रैं जो भक्ति एंव सुमिरण द्वारा सर्वदा प्रभु के संग रहते है। विपत्ति एंव दुर्दशा के समय वे ईश्वर को नहीं भूलते हैं वल्कि उनपर प्रभु प्रेम का रंग चार गुणा बढ़ जाता है।
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