कबीर औंधि खोपड़ी, कबहुॅं धापै नाहि तीन लोक की सम्पदा, का आबै घर माहि।
अर्थ : कबीर के अनुसार लोगों की उल्टी खोपड़ी धन से कभी संतुष्ट नहीं होती तथा हमेशा सोचती है कि तीनों लोकों की संमति कब उनके घर आ जायेगी।
दोहा – 2
जब मन लागा लोभ से, गया विषय मे भोय कहै कबीर विचारि के, केहि प्रकार धन होय।
अर्थ : जब लोगों का मन लोभी हो जाता है तो उसका मन बिषय भोग में रत हो जाता है और वह सब भूल जाता है और इसी चिंता में लगा रहता है कि किस प्रकार धन प्राप्त हो।
दोहा – 3
बहुत जतन करि कीजिये, सब फल जाय नशाय कबीर संचय सूम धन, अंत चोर ले जाय।
अर्थ : अनेक प्रयत्न से लोग धन जमा करते है पर वह सब अंत में नाश हो जाता है। कबीर का मत है कि कंजूस व्यक्ति धन बहुत जमा करता है पर अंततः सभी चोर ले जाता है।