कपास बिनुथा कापड़ा, कादे सुरंग ना पाये कबीर त्यागो ज्ञान करि, कनक कामिनि दोये।
अर्थ : जिस प्रकार गंदे कपास से सुन्दर वस्त्र नहीं बन सकता है-कबीर ज्ञान की बात कहते है की हमें स्वणं और स्त्री दोनो का लगाव त्यागना चाहिये।
दोहा – 2
कबीर नारी की प्रीति से, केटे गये गरंत केटे और जाहिंगे, नरक हसंत हसंत।
अर्थ : कबीर का कथन है की नारी से प्रेम के कारण अनेक लोग बरबाद हो गये और अभी बहुत सारे लोग हंसते-हंसते नरक जायेंगे।
दोहा – 3
कबीर मन मिरतक भया, इंद्री अपने हाथ तो भी कबहु ना किजिये, कनक कामिनि साथ।
अर्थ : कबीर कहते है की अगर तुम्हारी इच्छायें मन मर चुका हो और तुम्हारी बिषय भोगों की इन्द्रियाॅ भी तुम्हारे हाथ में नियंत्रित हों तब भी तुम धन और नारी का साथ मत करो।
दोहा – 4
कलि मंह कनक कामिनि, ये दौ बार फांद इनते जो ना बंधा बहि, तिनका हूॅ मै बंद।
अर्थ : कलियुग में जो धन और स्त्री के मोह मे नहीं फंसा है-भगवान उसके हृदय से बंधे हुये है क्योंकि ये दोनों माया मोह के बड़े फंदे है।
दोहा – 5
शंकर हु ते सबल है, माया येह संसार अपने बल छुटै नहि, छुटबै सिरजनहार।
अर्थ : यह संसार एक माया है जो शंकर भगवान से भी अधिक बलवान है। यह स्वंय आप के प्रयास से कभी नहीं छुट सकता है। केवल प्रभु ही इससे आपको उवार सकते है।
दोहा – 6
संतो खायी रहत है, चोरा लिनहि जाये कहै कबीर विचारी के, दरगाह मिलि है आये।
अर्थ : संतो पर किया गया धन का खर्च बचा रहता है। शेष धन चोर ले जाता है। कबीर का सुविचारित मत है की धर्म सतकर्म पर खर्च किया गया धन प्रभु के दरवार में वापस मिल जाता है।
दोहा – 7
सब पापन का मूल है, ऐक रुपैया रोके साधुजन संग्रह करै, हरै हरि सा ठोके।
अर्थ : विलासिता हेतु एक रुपये का संचय भी पाप का मूल कारण है। परमेश्वर अपने सम्पुर्ण कोष संतो ंके संग्रह हेतू सब कुछ समर्पित कर देते है।
दोहा – 8
नागिन के तो दोये फन, नारी के फन बीस जाका डसा ना फिर जीये, मरि है बिसबा बीस।
अर्थ : सांप के केवल दो फंन होते है पर स्त्री के बीस फंन होते है। स्त्री के डसने पर कोई जीवित नहीं बच सकता है। बीस लोगों को काटने पर बीसों मर जाते है।
दोहा – 9
कामिनि काली नागिनि, तीनो लोक मंझार राम सनेही उबरै, विषयी खाये झार।
अर्थ : एक औरत काली नागिन है जो तीनों लोकों में व्याप्त है। परंतु राम का प्रेमी व्यक्ति उसके काटने से बच जाता है। वह विषयी लोभी लोगों को खोज-खोज कर काटती है।
दोहा – 10
कामिनि सुन्दर सर्पिनी, जो छेरै तिहि खाये जो हरि चरनन राखिया, तिनके निकट ना जाये।
अर्थ : नारी एक सुन्दर सर्पिणी की भांति है। उसे जो छेरता है उसे वह खा जाती है। पर जो राम के चरणों मे रमा है उसके नजदीक भी वह नहीं जाती है।
दोहा – 11
नारी पुरुष की स्त्री, पुरुष नारी का पूत यहि ज्ञान विचारि के, छारि चला अवधूत।
अर्थ : एक नारी पुरुष की स्त्री होती है। एक पुरुष नारी का पुत्र होता है। इसी ज्ञान को विचार कर एक संत अवधूत कामिनी से विरक्त रहता है।
दोहा – 12
कामी कबहु ना हरि भजय, मिटय ना संशय सूल और गुनाह सब बखशी है, कामी दल ना मूल।
अर्थ : एक कामी पुरुष कभी भगवान का भजन नहीं करता हैं। उसके भ्रम एंव कष्ट का निवारन कभ्री नहीं होता हैै। अन्य लोगों के पाप को क्षमा किया जा सकता है पर लोभी को कभी मांफी नहीं दीजा सकती है।
दोहा – 13
गये रोये हंसि खेलि के, हरत सबौं के प्रान कहै कबीर या घात को, समझै संत सुजान।
अर्थ : गाकर,रोकर, हंसकर या खेल कर नारी सब का प्राण हर लेती है। कबीर कहते है की इसका आघात या चोट केवल संत और ज्ञानी ही समझते है।
दोहा – 14
नारी पुरुष सबही सुनो, येह सतगुरु की साखी बिस फल फले अनेक है, मति कोई देखो चाखी।
अर्थ : सतगुरु की शिक्षा को सभ्री स्त्री पुरुष सुनलो। बिषय वासना रुपी जहरीले फल को कभी नहीं चखना। ये बिषय वासाना रुपी जहरीले फल अनेका नेक है। इस से तुम बिरक्त रहो।
दोहा – 15
नारी कहुॅ की नाहरी, नख सिख से येह खाये जाल बुरा तो उबरै, भाग बुरा बहि जाये।
अर्थ : इन्हें नारी कहा जाय या शेरनी। यह सिर से पॅूछ तक खा जाती है। पानी में डूबने वाला बच सकता है पर बिषय भोग में डूबने वाला संसार सागर में बह जाता है।
दोहा – 16
नारी काली उजली, नेक बिमासी जोये सभी डरे फंद मे, नीच लिये सब कोये।
अर्थ : स्त्री काली गोरी भली बुरी जो भी हो सब वासना के फंदे में फांसती है और तब भी एक नीच व्यक्ति हमेशा उसे अपने साथ कखता है।
अर्थ : परमात्मा तक जाने के लिये सभी चलो-चलो कहते है पर वहाॅ तक शायद ही कोई पहूॅच पाता है। धन और स्त्री रुपी दो अत्यंत खतरनाक बीहड़ घाटियों को पार कर के ही कोई परमात्मा की शरण में पहूॅच सकता है।
दोहा – 19
छोटी मोटी कामिनि, सब ही बिष की बेल बैरी मारे दाव से, येह मारै हंसि खेल।
अर्थ : स्त्री छोटी बड़ी सब जहर की लता है। दुश्मन दाव चाल से मारता है पर स्त्री हंसी खेल से मार देती है।
दोहा – 20
नारी नरक ना जानिये, सब सौतन की खान जामे हरिजन उपजै, सोयी रतन की खान।
अर्थ : नारी को नरक मत समझो। वह सभी संतों की खान है। उन्हीं के द्वारा भगवत पुरुषों कि उत्पत्ति होती है और वे ही रत्नों की खान है। प्रभु भक्तों को नारी ही जन्म देती है।
दोहा – 21
नारी निन्दा ना करो, नारी रतन की खान नारी से नर होत है, ध्रुब प्रहलाद समान।
अर्थ : नारी की निन्दा मत करो। नारी अनेक रत्नों की खान है। नारी से ही पुरुष के उत्पत्ति होती है। घ्रुब और प्रहलाद भी किसी नारी की ही देन है।
दोहा – 22
नारी निरखि ना देखिये, निरखि ना कीजिये दौर देखत ही ते बिस चढ़ै, मन आये कछु और।
अर्थ : नारी को कभी घूर कर मत देखो। देख कर भी उसके पीछे मत दौड़ो। उसे देखते ही बिष चढ़ने लगता है और मन में अनेक प्रकार के बिषय विकार गंदे विचार आने लगते है।
दोहा – 23
नारी मदन तलाबरी, भव सागर की पाल नर मच्छा के कारने, जीवत मनरी जाल।
अर्थ : नारी वासना का तालाव और इस भव सागर में डूबने से रक्षा हेतु पाल है। यह नर रुपी मछली को फंसाने का जाल डाला गया है।
दोहा – 24
नारी सेती नेह, बुधि विवेक सभी हरै बृथा गबावै देह, कारज कोई ना सरै।
अर्थ : स्त्री से वासना रुपी प्रेम करने में बुद्धि और विवके का हरण होता है। शरीर भी बृथा बेकार होता है और जीवन के भलाई का कोई भी कार्य सफल नहीं होता है।
दोहा – 25
परनारी पैनी छुरी, बिरला बंचै कोये ना वह पेट संचारिये, जो सोना की होये।
अर्थ : दुसरो की नारी तेज धार वाली चाकू की तरह है। इस के वार से सायद ही कोई बच पाता है। उसे कभी अपने हृदय में स्थान मत दें-यदि वह सोने की तरह आकर्षक और सुन्दर ही क्यों न हो।
दोहा – 26
पर नारी पैनी छुरी, मति कौई करो प्रसंग रावन के दश शीश गये, पर नारी के संग।
अर्थ : दुसरो की स्त्री तेज धार वाली चाकू की तरह है। उसके साथ किसी प्रकार का संबंध नहीं रखो। दुसरे के स्त्री के साथ के कारण ही रावण का दश सिर चला गया।
दोहा – 27
पर नारी के राचनै, सीधा नरकै जाये तिनको जम छारै नहि, कोटिन करै उपाये।
अर्थ : परायी स्त्री से कभी प्रेम मत करो। वह तुम्हे सीधा नरक ले जायेगी। उसे यम देवता भी नहीं छोड़ता है चाहे तुम करोड़ो उपाय करलो।
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