Kabir ke Dohe
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भिक्षा – कबीर – दोहा

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दोहा – 1

उदर समाता मांगि लै, ताको नाहि दोश
कहि कबीर अधिका गहै, ताको गति ना मोश।

अर्थ : पेट भरने योग्य भिक्षा माॅंगने में कोई बुराई नहीं है। परंतु जो जमा करने के लिये अधिक भीख मांगता है-
कबीर कहते है की उसकी मुक्ति मोक्ष कतई संभव नहीं है।

दोहा – 2

उदर समाता अन्न ले, तन ही समाता चीर
अधिक ही संग्रह ना करें, तिस्का नाम फकीर।

अर्थ : जो पेट भर अन्न लेकर और शरीर ढ़कने के लिये बस्त्र मांगकर संतुष्ट हो तथा
इससे अधिक जमा नहीं करता हो-वस्तुतः वही फकीर या सन्यासी है।

दोहा – 3

अनमांगा तो अति भला, मांगि लिया नहि दोश
उदर समाता लेय, निश्चय पाबै मोक्ष।

अर्थ : बिना मांगे यदि भिक्षा मिले तो यह अत्यंत अच्छा है। मोगने में भी कोई दोष नहीं है।
अगर वह केवल पेट भरने के लिये मांगता है तो निश्चय ही वह मुक्ति का अधिकारी है।

दोहा – 4

अनमांगा उत्तिम कहा, मध्यम मांगि जु लेय
कहै कबीर निकृस्ट सो, पर घर धरना देय।

अर्थ : बिना मांगे मिलना उत्तम है और मांग कर लेना मध्यम मार्ग है। कबीर कहते है की ईच्छित
वस्तु प्राप्त करने के लिये किसी अन्य के घर धरना देना निकृष्ट बात है।

दोहा – 5

आब गया आदर गया, नैनन गया सनेह
येह तीनो तभी गया, जभी कहा कछु देह।

अर्थ : आदर गया,प्रतिष्ठा गई, आॅंखों से स्नेह चला गया।
यह तीनों तब गया जब आपने किसी से कुछ देने के लिये कहा।

दोहा – 6

आजहु तेरा सब मिटय, जो मानय गुरु सीख
जब लग तु घर मे रहै, मति कहुॅ मांगे भीख।

अर्थ : आज ही तेरे दूखों का अन्त को जायेगा-यदि तुम गुरु की शिक्षा मान लो।
जब तक तुम गृहस्थ जीवन में रहो-किसी से कभी भी भिक्षा मत मांगों।

दोहा – 7

मांगन मरन समान है, तोही दियो मैं सीख
कहै कबीर समुझाय के, मति कोयी मांगे भीख।

अर्थ : मांगना मृत्यु के समान है। मैं तुम्हें यह शिक्षा देता हूॅं कबीर समझा कर यह कहते है
की कोई भी कभी भीख मत मांगो। कबीर परिश्रम से जीवन यापन की शिक्षा पर वल देते है।

दोहा – 8

सहज मिलै सो दूध है, मांगि मिलै सो पानी
कहै कबीर वह रक्त है, जामे एैचा तानी।

अर्थ : सुगमता से मिलने वाला दूध और मांगने वाली वस्तु पानी के समान है।
कबीर कहते है की वह वस्तु खून के समान है जो खींचतान,झंझट,वकझक से प्राप्त होता है।

दोहा – 9

मांगन मरन समान है, मति कोयी मांगो भीख
मांगन ते मरना भला, येह सतगुरु की सीख।

अर्थ : भीख मांगना मरने के समान है। कोई व्यक्ति कभी भीख न मांगे।
मांगने से मर जाना अच्छा है। यही अच्छे गुरु की शिक्षा है।

दोहा – 10

मांगन गये सो मर रहे, मरै जु मांगन जाहि
तिनते पहिले वे मरे, होत करत है नाहि।

अर्थ : यदि कोई किसी से कुछ मांगने जाता है तो समझो की वह मर गया लेकिन
उसके पहले वह मर चुका होता है-जो दान देने के लायक होकर भी देने से मुकर जाता है।

दोहा – 11

मागन मरन समान है, सीख दयी मैं तोहि
कहैं कबीर सतगुरु सुनो, मति रे मांगौ मोहि।

अर्थ : मांगना मृत्यु के समान है। मैं तुम्हें यह शिक्षा देता हूॅ।
कबीर कहते हैं की हे प्रभु मुझे कभी भी किसी से मांगने के लिये मजबूर नहीं होने देना।

दोहा – 12

खर कूकर की भीख जो, निकृष्ट कहाबै सोये
कहै कबीर इस भीख मे, मुक्ति ना कबहु होये।

अर्थ : कुत्ते एंव गदहे की तरह जबर्दस्ती करके ली गई भिक्षा अति निम्न स्तर की है।
कबीर कहते है की इस प्रकार की भिक्षा एंव दान से किसी को मोक्ष नहीं प्राप्त हो सकता है।

दोहा – 13

भवर भीख मध्यम कही, सुनो संत चित लाये
कहै कबीर ताके गहै, माध्यम मनहि समाये।

अर्थ : भौरे की तरह धूम-धूम दौड़-दौड़ कर भीख जुटाना मध्यम श्रेणी का तरीका है।
कबीर कहते है की इस प्रकार के भिक्षाटन से मध्यम गति की मुक्ति मिलती है।

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