एक माचिस की तीली,
एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे,
कुछ घण्टे में राख…..
बस इतनी-सी है
आदमी की औकात !
एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया,
अपनी सारी ज़िन्दगी,
परिवार के नाम कर गया,
कहीं रोने की सुगबुगाहट,
तो कहीं फुसफुसाहट….
अरे जल्दी ले जाओ
कौन रखेगा सारी रात…..
बस इतनी-सी है
आदमी की औकात!
मरने के बाद नीचे देखा,
नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे…..
कुछ लोग ज़बरदस्त,
तो कुछ ज़बरदस्ती
रो रहे थे।
नहीं रहा .. चला गया…..
चार दिन करेंगे बात…..
बस इतनी-सी है
आदमी की औकात!
बेटा अच्छी तस्वीर बनवायेगा,
सामने अगरबत्ती जलायेगा,
खुश्बुदार फूलों की माला होगी….
अखबार में अश्रुपूरित श्रद्धाञ्जलि होगी………
बाद में कोयी उस तस्वीर पे,
जाले भी नही करेगा साफ़….
बस इतनी-सी है
आदमी की औकात !
जिन्दगी भर,
मेरा- मेरा- मेरा किया….
अपने लिये कम ,
अपनों के लिए ज्यादा जीया….
कोयी न देगा साथ…..
जायेगा खाली हाथ….
क्या तिनका ले जाने की भी,
है हमारी औकात ???
ये है हमारी औकात….!!!
जाने कौन सी शोहरत पर,
आदमी को नाज है!
जो आखरी सफर के लिए भी,
औरों का मोहताज है!!!
फिर घमण्ड कैसा ?
बस इतनी सी हैं
आदमी की औकात!