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क्योंकि यह धंधे के लिए जरूरी है – Because It Is Necessary For Business

सिकंदर को प्रेम करने की फुरसत नहीं मिल पाती। कैसे मिले?

अभी बड़े युद्ध जीतने हैं। सारी पृथ्वी पर राज्य निर्मित करना है। नेपोलियन यद्यपि रोज युद्ध के मैदान से अपनी पत्नी को पत्र लिखता है, लेकिन लिखता युद्ध के मैदान से ही है, घर कभी नहीं आता। रोज लिखता है पत्र। ऐसा एक दिन नहीं छोड़ता। वह भी मुझे लगता है कि किसी अपराध— भाव के कारण करता होगा। धीरे—धीरे पत्नी किसी और के प्रेम में पड़ जाती है। वह अपना पत्र ही लिखते रहते हैं। वह उनके पत्र पढ़ती भी नहीं फिर। जोसेफाइन के संबंध में कहा जाता है कि वह धीरे—धीरे नेपोलियन का पत्र खोलती भी नहीं, कचरे में डाल देती। क्योंकि स्त्री कब तक प्रतीक्षा करे! वह किसी और सैनिक को प्रेम करने लगी। नेपोलियन सदा युद्धों में है। वहां से पत्र लिखता है रोज कि आज एक नगर और जीता, तेरे चरणों में समर्पित जोसेफाइन! मगर नगरों को समर्पित करने से जोसेफाइन को कोई खुशी नहीं होती। वह चाहती है, नेपोलियन आए। नगरों का क्या करेगी?

नक्‍शा बड़ा होता जाता है, इससे क्या होगा?

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उसके हृदय में कहीं तृप्ति इससे नहीं होती। आकांक्षी लोग न तो प्रेम चाहते हैं, न देते हैं। उन्हें फुरसत नहीं। अभी बड़े काम करने हैं। इलेक्शन लड़ना है, करीब आ रहा है इलेक्शन। उनको लड़ना है इलेक्शन, पद पर पहुंचना है, दिल्ली जाना है। पत्नी वगैरह गौण है, बच्चे गौण हैं। इसलिए राजनीतिज्ञों के, बड़े से बड़े राजनीतिज्ञों के बच्चे भी आवारा और बरबाद हो जाते हैं। हो ही जाएंगे। धनियों के बच्चे सत्य की तरफ नहीं बढ़ पाते; बाप को फुरसत नहीं है। वह धन इकट्ठा कर रहा है। हालांकि वह कहता यही है कि इन्हीं के लिए इकट्ठा कर रहा हूं! लेकिन इनसे कभी मिलना ही नहीं होता। जब वह आता है घर वापस, तब तक बच्चे सो गए होते हैं। जब सुबह वह भागता है बाजार की तरफ, तब तक बच्चे उठे नहीं होते हैं। वह भाग—दौड़ में है। कभी रास्ते पर सीढ़ियां चलते मिल जाते हैं, तो जरा पीठ थपथपा देता है। वह भी उसे ऐसा लगता है कि बेकार का काम है। इतनी शक्ति बचती, तो और धन कमा लेते! इतना ही किसी और को थपथपाते बाजार में, तिजोरी भर जाती। यह नाहक बीच में आ गया। धनियों के बच्चों का बाप से मिलना ही नहीं होता। और बहुत धनियों के बच्चों को उनकी मां से भी मिलना नहीं होता। क्योंकि मां को भी कहां फुरसत है! क्लब है, सोसाइटी है, पच्चीस जाल हैं। पति के साथ जाना है भोजनों में। क्योंकि उस पर पति का धंधा निर्भर करता है। पति के साथ जाकर हंसना है, बात करना है लोगों से। क्योंकि यह धंधे के लिए जरूरी है। – ओशो”

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