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भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग – Bhimashankar Jyotirlinga

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का नाम भीमा शंकर किस कारण से पडा इस पर एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा महाभारत काल की है. महाभारत का युद्ध पांडवों और कौरवों के मध्य हुआ था.

इस युद्ध ने भारत मे बडे महान वीरों की क्षति हुई थी. दोनों ही पक्षों से अनेक महावीरों और सैनिकों को युद्ध में अपनी जान देनी पडी थी.

इस युद्ध में शामिल होने वाले दोनों पक्षों को गुरु द्रोणाचार्य से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ था. कौरवों और पांडवों ने जिस स्थान पर दोनों को प्रशिक्षण देने का कार्य किया था. वह स्धान है.

आज उज्जनक के नाम से जाना जाता है. यहीं पर आज भगवान महादेव का भीमशंकर विशाल ज्योतिर्लिंग है. कुछ लोग इस मंदिर को भीमाशंकर ज्योतिर्लिग भी कहते है. भीमशंकर ज्योतिर्लिंग कथा शिवपुराण अनुसार भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण में मिलता है. शिवपुराण में कहा गया है, कि पुराने समय में भीम नाम का एक राक्षस था. वह राक्षस कुंभकर्ण का पुत्र था. परन्तु उसका जन्म ठिक उसके पिता की मृ्त्यु के बाद हुआ था. अपनी पिता की मृ्त्यु भगवान राम के हाथों होने की घटना की उसे जानकारी नहीं थी.

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समय बीतने के साथ जब उसे अपनी माता से इस घटना की जानकारी हुई तो वह श्री भगवान राम का वध करने के लिए आतुर हो गया.

अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे ब्रह्मा जी ने विजयी होने का वरदान दिया.

वरदान पाने के बाद राक्षस निरंकुश हो गया. उससे मनुष्यों के साथ साथ देवी देवताओ भी भयभीत रहने लगे. धीरे-धीरे सभी जगह उसके आंतक की चर्चा होने लगी. युद्ध में उसने देवताओं को भी परास्त करना प्रारम्भ कर दिया.

जहां वह जाता मृ्त्यु का तांडव होने लगता. उसने सभी और पूजा पाठ बन्द करवा दिए. अत्यन्त परेशान होने के बाद सभी देव भगवान शिव की शरण में गए.भगवान शिव ने सभी को आश्वासन दिलाया की वे इस का उपाय निकालेगें. भगवान शिव ने राक्षस को नष्ट कर दिया. भगवान शिव से सभी देवों ने आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर शिवलिंग रुप में विराजित हो़. उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया. और वे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रुप में आज भी यहां विराजित है.

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