Grandmothers' stories for Childrens
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उबलते पानी और मेंढक – Boiling Water And Frogs

एक बार एक मेंढक के शरीर में बदलाव करने की क्षमता को जाँचने के लिए कुछ वैज्ञानिकों ने उस मेंढक को एक काँच के जार में डाल दिया और उसमे जार की आधी ऊंचाई तक पानी भर दिया । फिर उस जार को धीरे धीरे गर्म किया जाने लगा, जब गर्मी बर्दाश्त से बाहर हो जाये तब मेंढक उस जार से बाहर कूद सके इसलिए, जार का मुँह ऊपर से खुला रखा गया ।

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मेंढक को अपने शरीर में गर्मी महसूस हुई और अपने शरीर की ऊर्जा को उसने अपने आपको बाहर की गर्मी से तालमेल बिठाने में लगाना शुरू किया ! मेंढक के शरीर से पसीना निकलने लगा, वो अपनी ऊर्जा का उपयोग तालमेल बिठाने में लगा रहा था, एक वक़्त ऐसा आया की मेंढक की गर्मी से और लड़ने की क्षमता कम होने लगी, और मेंढक ने जार से बाहर कूदने की कोशिश की, मगर वो बाहर जाने की बजाय पानी में गिर जाया करता और बार बार की कोशिश के बाद भी मेंढक बाहर नही निकल पाया क्यूँकि बाहर कूदने में लगने वाली शक्ति वो गर्मी से लड़ने में पहले ही ज़ाया कर चुका था, तो अगर सही वक़्त पे मेंढक कूदने का फ़ैसला लेता तो शायद उसकी जान बच सकती थी ।

हमें अपने आसपास के माहौल से लड़ना तो ज़रूर है लेकिन सही वक़्त आने और पर्याप्त ऊर्जा रहते उस माहौल से बाहर निकलना भी ज़रूरी है !!

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