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स्वच्छ भारत अभियान – Clean India Movement

सडक़ें गंदी हैं नालियां रुकी हुई हैं, गंदा पानी गली-गली में फैल रहा है। बराबर चेतावनी दी जा रही है कि शहर में हैजा फैल रहा है, मलेरिया जोर पकड़ रहा है, शहर को साफ-सुथरा रखो। कटी, खुली चीजें मत खाओ। पर कौन सुनता है?

’ रामअवध बराबर मन ही मन बड़बड़ा रहा था। दूरभाष पर जगह-जगह, मोहल्ले-मोहल्ले से उसे यह शिकायत सुनाई जा रही थी। उनका कहना था कि स्वास्थ्य अधिकारी कुछ नहीं करते हैं।

रामअवध का ध्यान शहर के प्रवेश-द्वार पर लगे उस विज्ञापन पट्ट पर ठहर गया, जिस पर लिखा था ‘यह शहर आपका है, इसे आप साफ और सुंदर रखें ’ उसने एक जगह अपने शहर के सबसे सुंदर बाजार पर यह लिखवाया था ‘इस शहर के नागरिक सभ्य और सूरूचिपूर्ण हैं।’ परंतु आज वह इससे आगे कुछ सोचता कि उसके सामने स्वास्थ्य अधिकारी आ खड़ा हुआ। वह उससे बोला ‘यह मैं क्या सुन रहा हूं।’

‘क्या, अध्यक्ष महोदय?

‘शहर में महामारी फैल रही है और शहर के गली, कूचे गंदगी से भरे हुए हैं। आखिर तुम्हारा कुछ कर्तव्य है।’

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‘मैं क्या करूंगख् अध्यक्ष महोदय, गली-कूचों में काम करने वाला हमारा सफाई दल इस समय अपना वेतन बढ़ाने की मांग पर अड़ गया है। वह सारे शहर की गंदगी साफ करता है। लेकिन उसे मिलता क्या है?

‘तुम्हें उन्हें समझाना चाहिए, शहर इस संकट में है। इस समय उन्हें अपने-अधिकारों की नहीं, कर्तव्य की ओर देखना है।’ वे हमारी कुछ भी बात सुनने के लिए तैयार नहीं है। वे इस विषय परिस्थिति का लाभ उठाना चाहते हैं। कहते हैं कि बरसों से चिल्ला रहे हैं परंतु नगरपालिका के कानों पर जूं भी नहीं रेंगती। अब हमारा मौका आया है, हम इसे हाथ से नहीं जाने देंगे। स्वास्थ्य अधिकारी सहज ढंग से सब कुछ उगल गया।

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रामअवध सोच में पड़ गया। आजकल अधिकारों की चारों ओर चर्चा है परंतु कर्तव्य के प्रति सब विमुख है। अचानक उससे मस्तिष्क की ओर देखता हुआ उबल पड़ा और बोला,‘यही मौका है जब हम इस शहर को जगा सकते हैं। आखिर शहर उन्हीं के कारण तो इतना गंदा हुआ या होता है न। लोग नालियों में सड़ी-गली और बेकार चीजें बहा देते हैं। इससे नालियों में पानी रुक जाता है और वही पानी गलियों और सडक़ों पर बह आता है-लोग बाजार से खुली-कटी चीजें लाते हैं, खाते है और बीमार पड़ते हैं। इसमें नगर पालिका और स्वास्थ्य अधिकारी क्या करें?

उन्हें खुद सोचना चाहिए। उन्हें जीने का अधिकार है तो इसका यह अर्थ नहीं कि इसके प्रति लापरवाही बरतें और व्यवस्था को दोष दें। आओ आज हम उन्हें भी याद दिलाए कि वे स्वंय इस गंदगी के लिए उत्तरदायी हैं।’

रामअवध के साथ स्वास्थ्य अधिकारी तथा अन्य कर्मचारी चल पड़ते हैं। वह धान मंडी मोहल्ले के नुक्कड़ पर आ खड़ा होता है चारों ओर से लोग इकट्ठे होने लगते हैं। मोहल्ले के पांच पंच भी वही आ जाता है। वह उसकी शिकायतें चुपचाप सुनता रहता है। रामअवध पांच माधव से कहता है ‘आप भी इन लोगों की हां में हां मिला रहे हैं। क्या आपको इस जनता ने इसलिए चुना है?

पता है, इस वक्त आपको क्या करना चाहिए?

माधव को जन प्रतिनिधि होने का गरूर था। वह जनता के बीच रामअवध की इन-तीखी बातों का उत्तर होते हुए ऊंचे स्वर में बोला ‘मैंने कईं बार शिकायत की है कि स्वासयि अधिकारी की इस क्षेत्र से बदली कर दो। वह अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता है। उसी की शहर से सफाई कर्मचारी हमें अंगूठा दिखा देते हैं। और मैं इससे ज्यादा क्या करता?

रामअवध के चेहरे पर मुस्कान तैर गई। वह सर्वोदय विचार का कर्मठ व्यक्ति था। उसने कहा, ‘माधवजी, मुझे बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है और जैसे प्रतिनिधि जनता को गुमराह करते हैं और उन्हें कर्तव्य-विमुख करते हैं। क्यों न करें, जब आप स्वंय ही कर्तव्य का पालन करके अबोध जनता के सामने उदाहरण नहीं बन सकते तब आप उन्हें कर्तव्य-पालन के लिए कैसे कह सकते हैं। आपके मकान के नीचे ही कितनी गंदगी फैली हुई है।’

इस बार माधव के चेहरे पर सोच ठहर गई। रामअवध सच कह रहा था। गंदगी आखिर आती कहां से है?

गंदगी को फैलाने वाले कौन हैं?

क्या ऐसा हो सकता है कि खुद ही यह प्रयत्न करें कि गंदगी न फैले, यदि ऐसा हो तो गंदगी की बहुत कुछ समस्या अपने आप ही सुलझ जाएगी। उसे याद आए डॉ. कपूर के वे शब्द जो उन्होंने अपनी जर्मन यात्रा से लौटने पर नगरपालिश द्वारा आयोजित गोष्ठी में कहे थे, ‘वहां सडक़ों पर एक छोटा-सा कागज का टुकड़ा भी नहीं मिलेगा- न सिगरेट का कोई टुकड़ा। वहां के लोग सडक़ों पर कुछ नहीं फैंकते हैं। गंदगी के जिम्मेदार शहर के वे सभी नागरिक हैं। जो अपने घ्ज्ञक्रों की गंदगी बाहर फैंककर सोचते हैं कि हमारे घर साफ हैं। सफाई स्वस्थ जीवन की प्राथमिक शर्त है। सफाई घर में ही नहीं सारे शहर में रहे यह आवश्यक है। शहर में हम सब रहते हैं। यदि अच्छा जीवन चाहते हैं और स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो सफाई बनाए रखने का प्रत्येक घर व नागरिक को ध्यान रखना होगा। कोई भी व्यक्ति सडक़ या गली में कूड़ा-करकट नहीं डालेगा।’

रामअवध का मन प्रसन्नता से भर उठा। वह सोचने लगा कि अब अवश्य ही यह शहर साफ-सुथरा रहने की दिशा में आगे बढ़ सकेगा। कर्तव्य-पालन जीवन को सुखी बनाने का आवश्यकतथा प्राथमिक व्यायाम है। कर्तव्य का पेड़ सींचिए तो उससे बहुत मीठे ओर स्वादिष्ट फल मिलेंगे। यदि आप जीवन में अधिकारों का आनंद लेना चाहते हैं, तो अपने कर्तव्य का निर्वाह करपा सीखिए। अधिकार स्वत: आपको हासिल हो जाएंगे क्योंकि कर्तव्य रूपी वृक्ष के सुखद अधिकार प्राप्त होते हैं।

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