अकम्पन का वध – death of trembling
रावण अकम्पन को अदम्य समझता था इसलिये उसकी मृत्यु से रावण को भारी आघात पहुँचा। वह गहन शोक में ड़ूब गया। रात्रि को वह शान्ति से विश्राम भी न कर सका। दूसरे दिन उसने मन्त्रियों को बुलाकर कहा, वानरों की सेना हमारी कल्पना से भी अधिक शक्तिशाली और पराक्रमी सिद्ध हुई है। पिछले चार दिनों में हमारी बहुत सी सेना मारी जा चुकी है। सैनिकों का मनोबल टूटने लगा है। नागरिकों को शत्रु के घेरे के कारण बाहर से उपलब्ध होने वाली खाद्य सामग्री प्राप्त नहीं हो रही है। वे अत्यन्त दुःखी हो रहे हैं। चार दिन के युद्ध को देखकर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि शत्रु पर विजय प्राप्त करना साधारण राक्षसों के लिये सम्भव नहीं है। इसलिये हे वीर प्रहस्त! मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि शत्रु को परास्त करने के लिये कुम्भकर्ण को, मेघनाद को, तुम्हें अथवा मुझे ही आगे आना पड़ेगा। अतः आज युद्ध का नेतृत्व तुम करो। तुम युद्ध कला विशारद हो। ये वानर चंचल और वीर तो हैं, परन्तु प्रशिक्षित नहीं हैं। तुम युद्ध नीति से उन पर विजय प्राप्त कर सकते हो। इसलिये हे वीर! तुम शीघ्र जाकर राम-लक्ष्मण सहित समस्त शत्रुओं का संहार कर मुझे निश्चिंत करो।
अपने ऊपर इस प्रकार का विश्वास व्यक्त करते देख प्रहस्त ने कहा, आज मैं अपने अतुल पराक्रम से शत्रु सेना का विनाश करके आप को निश्चिंत कर दूँगा। आज मेरे कृपाण के शौर्य से मैं रणचण्डी को प्रसन्न करके चील, कौवों, गीदड़ों आदि को शत्रु का माँस खिलाकर तृप्त करूँगा।
इतना कहकर वह भयानक राक्षसों की सेना को लेकर युद्धस्थल की ओर चल दिया।
यह भी पढे – अयोध्याकाण्ड – राजतिलक की घोषणा – Ayodhya incident – announcement of coronation
इस विशालकाय सेनापति को सदल-बल आते देख रामचन्द्र जी ने विभीषण से पूछा, हे लंकापति! यह विशाल देह वाला सेनापति कौन है?
क्या शूरवीर है?
विभीषण ने उत्तर दिया, हे रघुकुलतिलक! यह रावण का मन्त्री और वीर सेनापति प्रहस्त है। लंका की सेना का तीसरा भाग इसके अधिकार में है। यह बड़ा बलवान, पराक्रमी तथा युद्धकला विशारद है।
यह सुनकर श्रीराम ने सुग्रीव से कहा, हे वानराधिपति! ऐसा प्रतीत होता है कि रावण को इस पर बहुत विश्वास है। तुम इसे मारकर रावण का विश्वास भंग करो। इसके मरने पर रावण का मनोबल गिर जायेगा।
यह भी पढे – महर्षि अत्रि का आश्रम – Maharishi Atri’s Ashram
राम का निर्देश पाते ही सुग्रीव ने श्रेष्ठ वानर सेनापतियों को यथोचित आज्ञा दी, जो बड़े वेग से राक्षसों पर टूट पड़े। राक्षस भी तोमर, त्रिशूल, गदा, तीर-कमान आदि से वानर सेना पर आक्रमण करने लगे। प्रहस्त ने स्वयं और उसके सेनानायकों ने अपने अप्रतिम रण कौशल से भयंकर दृश्य उपस्थित कर दिया और सहस्त्रों वानरों का सफाया करके रणभूमि को शवागार बना दिया। यह देख अनेक महारथी वानर अपनी पूरी शक्ति से राक्षसों से जूझने लगे। उन्होंने भी भयानक प्रतिशोध लेकर सहस्त्रों राक्षसों को सदा के लिये समरभूमि में सुला दिया। एक ओर राक्षसों की तलवार से कट-कट कर सैकड़ों वानर भूमि पर धराशायी हो रहे थे तो दूसरी ओर वानरों के घूँसों और थप्पड़ों की मार से सहस्त्रों राक्षस रक्त की उल्टियाँ कर रहे थे। कभी वीरों की गर्जना से भूमि काँप उठती और कभी आहतों के चीत्कार से आकाश थर्रा उठता। ऐसा प्रतीत होता था कि रक्त की सरिता में बाढ़ आ गई है और उसने सागर का रूप धारण कर लिया है।
जब वानर वीर द्विविद ने महावीर नरात्तक के हाथों अपने सैनिकों की दुर्गति होती देखी तो एक भारी शिला का वार करके उसका प्राणान्त कर दिया। द्विविद के इस शौर्य से उत्साहित होकर दुर्मुख ने प्रहस्त के प्रमुख सेनापति समुन्नत को मार गिराया। उधर जाम्बवन्त ने एक भारी शिला से प्रहार करके महानाद का अन्त कर दिया। फिर तारा नामक वानर ने अपने नाखूनों से कम्भानु का पेट चीरकर उसे यमलोक भेज दिया। कुछ ही क्षणों में इन चार सेनानायकों को मरते देख प्रहस्त ने क्रोध करके चारों दिशाओं में बाण छोड़ने आरम्भ कर दिये। इस आकस्मिक आक्रमण से अत्यधिक क्रुद्ध होकर वानर सेना अपने प्राणों का मोह छोड़कर शत्रुओं पर पिल पड़ी। उधर सेनापति नील पर्वत का एक टीला उठाकर प्रहस्त को मारने के लिये दौड़ा। मार्ग में ही प्रहस्त ने अपने बाणों से उस टीले की धज्जियाँ उड़ा दीं। इस पर नील ने एक दूसरा टीला उठाकर उसके रथ पर दे मारा जिससे उसका रथ टूट गया और घोड़े मर गये। रथ के टूटते ही प्रहस्त हाथ में मूसल लेकर नील को मारने के लिये दौड़ा। नील भी कम न था। दोनों परस्पर भिड़ गये। अवसर पाकर प्रहस्त ने मूसल नील के सिर पर दे मारा जिससे उसका सिर फट गया और रक्त बहने लगा। इससे नील को और भी क्रोध आ गया। उसने फुर्ती से एक शिला उठाकर प्रहस्त के सिर पर पूरे वेग से दे मारा जिससे उसका सिर चूर-चूर हो गया और वह मर गया। प्रहस्त के मरते ही उसकी सेना ने पलायन कर दिया।
Note:- इन कहानियों मे प्रयोग की गई सभी तस्वीरों को इंटरनेट से गूगल सर्च और बिंग सर्च से डाउनलोड किया गया है।
Note:-These images are the property of the respective owner. Hindi Nagri doesn’t claim the images.
यह भी पढे –
- लंका दहन – lanka dahan
- रामनवमी – Ram Navami
- कैकेयी द्वारा वरों की प्राप्ति – Kaikeyi’s attainment of grooms
- हनुमान जी का लंका में प्रवेश – Hanuman ji’s entry into Lanka
- चित्रकूट में – in Chitrakoot
सभी कहानियों को पढ़ने के लिए एप डाउनलोड करे/ Download the App for more stories: