वन की यात्रा – forest trip
यह भी पढे – द्रुपद से द्रोण का प्रतिशोध – Drona’s revenge against Drupada
तमसा नदी को पार करने के पश्चात् रथ तीव्र गति से बढ़ने लगा। द्रुत गति से दौड़ता हुआ रथ निर्मल जल से युक्त वेदश्रुति नामक नदी के तट पर जा पहुँचा। वेदश्रुति नदी को पार कर रथ दक्षिण दिशा की ओर बढ़ता गया। वे उस स्थान में पहुँच गए जहाँ समुद्रगामिनी गोमती नदी प्रवाहित हो रही थी। सरिता के दोनों तटों पर सहस्त्रों गौओं के झुंड हरी-हरी घास चर रही थीं। गोमती नदी को लांघ कर रथ ने मोरों और हंसों के कलरवों से व्याप्त स्यन्दिका नामक नदी को भी पार किया। यह क्षेत्र धन-धान्य से सम्पन्न और अनेक जनपदों से घिरा हुआ था। राम ने सीता को बताया कि पूर्वकाल में इस क्षेत्र को राजा मनु ने इक्ष्वाकु को दिया था।
शीघ्रगामी अश्वों ने रथ को विशाल और रमणीय कोसल देश की सीमा तक पहुचा दिया। सीमा के पार होते ही राम रथ से नीचे उतरे और अयोध्या की ओर मुख कर श्रद्धापूर्ण वचनों में कहने लगे, सूर्यकुल के सत्यवादी नरेशों द्वारा स्नेहपूर्वक परिपालित हे अयोध्या नगरी! विवश होकर आज मुझे तुझसे दीर्घकाल के लिये विलग होना पड़ रहा है। हे जन्मभूमि! मेरी दृष्टि में तुम सदैव स्वर्ग से भी अधिक श्रद्धेय और पूजनीय रही हो। तुम्हारी सेवा मेरा गौरव है किन्तु परिस्थितिवश मुझे आज तुम्हारी सेवा से विमुख होना पड़ रहा है। हे जननी! तुम सदैव मेरे लिये प्रेरणामयी रही हो। तुम्हारी धूलि मुझे चन्दन की भाँति शान्ति देती है, तुम्हारा जल मेरे लिये अमृतमयी और जीवनदायी है। तुमसे विदा लेते हुये मेरा हृदय विदीर्ण हुआ जा रहा है। पिताजी की आज्ञा का पालन करके चौदह वर्ष पश्चात् मैं पुनः तुम्हारा दर्शन तथा तुम्हारी सेवा का सौभाग्य प्राप्त करूँगा। तब तक के लिये हे माता! मुझे विदा दो। हे माता! तुम्हें शतशत प्रणाम! कोटि कोटि प्रणाम!!
इतना कह कर राम ने अयोध्या प्रदेश की धूलि को मस्तक से लगा लिया। उनके नेत्र अश्रुपूरित हो गये किन्तु प्रयास करके उन्होंने अपनी भावनाओं को नियंत्रित किया और पुनः रथ पर बैठ गये। रथासीन हो जाने के पश्चात् वे लक्ष्मण एवं सीता को मातृभूमि की गरिमा एवं महत्व के विषय में बताने लगे।
वे कलुषनाशिनी परम पावन भागीरथी गंगा के तट पर पहुँच गये। उस सुरम्य वातावरण में वे बहुत देर तक चकित से खड़े रहे। उन्होंने देखा दूर-दूर तक लहलहाते हुए खेत नेत्रों को सुख देने वाली हरीतिमा बिखेर रहे हैं। वातावरण अत्यंत सुरम्य है। स्वर्णकलशों से सुशोभित धवल मंदिर भक्ति की भावना को जागृत कर रहे हैं। वहाँ के समस्त आश्रम साम गान की ध्वनि गुंजायमान हो रहे है। वायुमण्डल हवन कुण्डों से निकलने वाले धुएँ से सुगन्धित हो रहा है। अनन्य काल से ऋषि-मुनियों द्वारा सेवित पवित्र भागीरथी कल-कल नाद के साथ द्रुत गति से प्रवाहित हो रही है। गंगा के जल में हंस, कारण्डव आदि पक्षी विहार करते हुये मधुर स्वर में गा रहे हैं मानों वे गंगा की स्तुति कर रहे हों। त्रिपथगा पुण्यसलिला गंगा के दोनों तटों पर खड़े वृक्ष रंग-बिरंगे पुष्पों से सुसज्जित हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वे अपने फूलों का अर्ध्य चढ़ाकर गंगा का अभिषेक कर रहे हैं।
यह भी पढे – परशुराम जी का आगमन – arrival of parshuram ji
वे इस मनोमुग्धकारी छवि निहारने में लीन हो गये। कुछ काल के पश्चात् राम सुमन्त से बोले, मन्त्रिवर! आज हम यहीं विश्राम करेंगे। हंगुदी के उस विशाल वृक्ष पर कितने सुन्दर तथा आकर्षक फल लगे हुये हैं! आज हम इन्हीं फलों का आहार करेंगे और रात्रि भी यहीं पर व्यतीत करेंगे।
रामचन्द्र का आदेश पाते ही सुमन्त ने रथ को हंगुदी के वृक्ष के नीचे खड़ा कर दिया और अश्वों को निकट ही हरी-हरी घास चरने के लिये छोड़ दिया।
Note:- इन कहानियों मे प्रयोग की गई सभी तस्वीरों को इंटरनेट से गूगल सर्च और बिंग सर्च से डाउनलोड किया गया है।
Note:-These images are the property of the respective owner. Hindi Nagri doesn’t claim the images.
यह भी पढे –
- कंप्यूटर – Computer
- गणेश चतुर्थी – Ganesh Chaturthi
- विज्ञान और तकनीकी – science and technology
- घटोत्कच का जन्म – Birth of Ghatotkacha
- गणगौर कथा – gangaur story
सभी कहानियों को पढ़ने के लिए एप डाउनलोड करे/ Download the App for more stories: