Kabir ke Dohe
~Advertisement ~

लोभ – कबीर – दोहा

यह भी पढे – शिक्षा और परीक्षा – Education And Examination

यह भी पढे – रावण के जन्म की कथा – Story of Ravana’s birth

दोहा – 1

कबीर औंधि खोपड़ी, कबहुॅं धापै नाहि
तीन लोक की सम्पदा, का आबै घर माहि।

अर्थ : कबीर के अनुसार लोगों की उल्टी खोपड़ी धन से कभी संतुष्ट नहीं होती तथा
हमेशा सोचती है कि तीनों लोकों की संमति कब उनके घर आ जायेगी।

दोहा – 2

जब मन लागा लोभ से, गया विषय मे भोय
कहै कबीर विचारि के, केहि प्रकार धन होय।

अर्थ : जब लोगों का मन लोभी हो जाता है तो उसका मन बिषय भोग में रत हो जाता है और वह सब भूल जाता है
और इसी चिंता में लगा रहता है कि किस प्रकार धन प्राप्त हो।

दोहा – 3

बहुत जतन करि कीजिये, सब फल जाय नशाय
कबीर संचय सूम धन, अंत चोर ले जाय।

अर्थ : अनेक प्रयत्न से लोग धन जमा करते है पर वह सब अंत में नाश हो जाता है।
कबीर का मत है कि कंजूस व्यक्ति धन बहुत जमा करता है पर अंततः सभी चोर ले जाता है।

दोहा – 4

जोगी जंगम सेबड़ा, सन्यासी दरबेश
लोभ करै पावे नहि, दुर्लभ हरि का देश।

अर्थ : योगी, साधु,संन्यासी या भिक्षुक जो भी लोभ करेगा उसे परमात्मा का
दुर्लभ देश या स्थान नहीं प्राप्त हो सकता है।

दोहा – 5

जोगी जंगम सेबड़ा ज्ञानी गुणी अपार
शत दर्शन से क्या बने ऐक लोभ की लार।

अर्थ : योगी, जंगम, ज्ञानी ,विद्वान अत्यंत गुणवान भी यदि आदतन लोभी हो तो परमात्मा
का दर्शन प्राप्त नहीं हो सकता है।

Note:- इन कहानियों मे प्रयोग की गई सभी तस्वीरों को इंटरनेट से गूगल सर्च और बिंग सर्च से डाउनलोड किया गया है।

Note:-These images are the property of the respective owner. Hindi Nagri doesn’t claim the images.

यह भी पढे –

सभी कहानियों को पढ़ने के लिए एप डाउनलोड करे/ Download the App for more stories:

Get it on Google Play