खुशी वहीं पर है जहां मन प्रसन्न हो – Happiness Is Where The Mind Is Happy
एक बुढ़िया थी जिसके एक पुत्र था। दोनों ही निर्धन थे और बहुत ही कठिनाई में जीवन व्यतीत कर रहे थे। एक दिन बुढ़िया के पुत्र ने अपनी माता से कहा कि यहां पर तो मेरे लिए कोई काम है नहीं। आप मुझे अनुमति दीजिए ताकि मैं किसी दूसरे नगर जाऊं, हो सकता है कि वहां पर मुझे कोई काम मिल जाए और मैं पैसा कमाकर वापस आऊं। बूढ़ी मां ने अपने बेटे को एक सिक्का दिया और थोड़ी सी रोटी भी यात्रा-मार्ग के लिये दे दी। इसके बाद उसने अपने पुत्र को विदा किया। बुढ़िया का बेटा चलते-चलते एक बाज़ार पहुंचा। वहां पर उसने एक बूढ़े भिखारी को देखा। वह चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था कि है कोई जो मेरे जीवन के अनुभव को एक सिक्के में ख़रीदे?
कोई भी उस बूढ़े भिखारी की बात नहीं सुन रहा था। इसी बीच उस युवक ने सोचा कि मेरे पास एक सिक्के के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क्यों न यह सिक्का मैं इस बूढ़े को दे दूं?
उसने यह सोचते हुए कि आजीविका का प्रबंध करने वाला तो ईश्वर है, वह सिक्का बूढ़े को दे दिया। सिक्का देते समय युवक ने उस बूढ़े से कहा कि अब तुम मुझको अपने जीवन का अनुभव बताओ। बूढ़े ने कहा कि कोई भी अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट नहीं है। वह सोचता है कि इस स्थान से किसी दूसरे स्थान पर जाऊं ताकि मेरी स्थिति बेहतर हो जाए। बूढ़े ने कहा कि मेरे हिसाब से तो वह स्थान उचित है जहां पर मन को शांति मिले। प्रसन्नता महत्वपूर्ण है न कि स्थान।
बूढ़े की बात सुनने के पश्चात युवा आगे बढ़ गया और चलते-चलते एक जंगल में पहुंचा। वहां पर उसने देखा कि बहुत से लोग एक कुएं के किनारे जमा हैं। उसने उन लोगों से पूछा कि क्या हुआ?
लोगों ने कहा कि इस आशा के साथ हमारा कारवां यहां पर आया था कि इस कुएं से पानी निकाल कर पियेगा। अब हम स्वयं प्यासे हैं और हमारे पशु भी प्यासे हैं। हमने कुएं से पानी निकालने के लिए कई बार रस्सी में बालटी बांधकर कुंए में डाली और हर बार रस्सी टूट गई और बाल्टी कुएं में गिर गई। अंत में हमने एक व्यक्ति को कुएं में भेजा ताकि वह हमारी बाल्टियों को वापस ले आए किंतु वह भी वापस नहीं आया। पता नहीं कुंए में क्या है?
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युवक जो अपने घर से काम के लिए ही निकला था उसने यह सोचा कि इन लोगों को अपनी योग्यता और क्षमता को प्रदर्शित करने का यह बहुत अच्छा अवसर है। हो सकता है कि कारवां के लोग इसे देखकर मुझे कोई काम सौंप दें। उसने कारवां वालों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि आप अनुमति दें तो मैं कुंए में जाकर देखूं कि वहां पर क्या है?
कारवां वालों ने उसे तुरंत ही कुंए में जाने की अनुमति दे दी क्योंकि वे स्वंय इस कार्य से डर रहे थे। उन्होंने युवक की कमर में रस्सी बांधी और उसे कुंए में भेज दिया। वह दीवार के सहारे धीरे-धीरे कुंए में उतर रहा था। जैसे ही वह पानी के निकट पहुंचकर बाल्टियों को ढूंढने का प्रयास कर रहा था। एकदम से उसने एक बहुत बड़े काले देव को देखा। देव ने उससे कहा कि तुम यहां पर क्या कर रहे हो?
देव को देखकर नौजवान डर गया। उसने देव को सलाम किया। इस पर देव हंसा और बोला। सलाम, सुरक्षा लाता है। तुम मुझको एक सज्जन युवक लग रहे हो। मैं तुमसे एक प्रश्न करना चाहता हूं।
यदि तुमने मेरे प्रश्न का सही उत्तर दे दिया तो मैं तुम्हें यह अनुमति दूंगा कि कुंए से पानी लेकर सुरक्षित वापस चले जाओ। यदि तुमने मेरी बात का सही उत्तर नहीं दिया तो मैं तुमको भी उन्हीं लोगों की भांति यहां पर बंदी बनाऊंगा जो तुमसे पहले यहां पर आए थे। ऐसे में युवक ने सोचा कि तुम्हें क्या परेशानी थी जो यहां पर आए। लेकिन अब इन बातों से कोई लाभ नहीं था। अब मुझको ईश्वर पर भरोसा करते हुए देखना यह है कि इस काले देव ने क्या सोच रखा है?
यह सोचते हुए उसने देव से कहा कि ठीक है। मुझको तुम्हारी बात स्वीकार है। तुम अपना प्रश्न पूछो। देव ने युवा से कहा कि यह बताओ कि खुशी कहां है?
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देव का प्रश्न सुनकर युवा ने कहा कि मालूम है कि खुशी तो धरती पर ही है। फिर उसने सोचा कि यदि मैं उसको यही उत्तर दूंगा तो हो सकता है कि उसे बुरा लगे क्योंकि उसका घर तो अंधेरे कुंए में हैं।
अभी वह यह सोच ही रहा था कि युवक को बूढ़े फ़क़ीर की बात याद आई। बूढ़े की बात जैसे ही उसके मन में आई वह बहुत प्रसन्न हुआ। इसके बाद उसने देव से कहा कि जानते हो खुशी कहां है?
जहां पर मन प्रसन्न है वहीं पर खुशी है। उसकी बात सुनकर देव बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा कि तुम्हारी बातों से पता चलता है कि तुम बहुत समझदार और अनुभवी हो। तुमसे पहले जिससे मैंने यह प्रश्न किया था उसने मुझसे कहा था कि धरती पर पाए जाने वाले बाग़, खुशी का स्थल हैं जबकि मुझको तो यही स्थान अच्छा लगता है और मैं इसे ही पसंद करता हूं। देव ने कहा कि जाओ बाल्टियों को ले जाओ। मैं तुमको तीन अनार दूंगा। जब तक अपने घर न पहुंच जाना किसी से भी इस बारे में कोई बात नहीं करना।
युवक ने देव का आभार व्यक्त किया, बाल्टियों को पानी से निकालकर एकत्रित किया और उनको पानी से भरकर वापस ऊपर भेज दिया। उसके बाद वह भी कुंए से सुरक्षित वापस निकल आया। बाहर आने के बाद उसने देव की कहानी कारवां वालों को सुनाई किंतु अनार के बारे में उसने उनसे कुछ भी नहीं कहा। कारवां वालों से उसका आभार व्यक्त किया। फिर युवक कारवां के साथ अपने नगर वापस आ गया। जब वह अपने नगर पहुंचा तो कारवां वालों ने उसे एक गाय और भेड़ उपहार स्वरूप दी। उन्होंने कहा कि हम कुछ समय तक तुम्हारे नगर में रहेंगे। जब हम यहां से वापस जाएंगे तो तुम भी हमारे साथ आ सकते हो और हमारे लिए काम कर सकते हो। इसके बाद युवक ने कारवां वालों से विदा ली और अपने घर की ओर चल पड़ा। अपने पुत्र को देखकर उसकी माता बहुत प्रसन्न हुई। उसने कहा कि बहुत अच्छा हुआ कि तुम आ गए। मुझको तो आशा नहीं थी कि तुम इतनी जल्दी वापस आ जाओगे।
युवक ने कहा कि ईश्वर ने मेरी सहायता की। अब तक मुझे एक गाय और एक भेड़ उपहार में मिल चुकी है। कुछ दिनों के बाद अब मैं कारवां वालों के साथ उनके नगर जा सकता हूं और उनके लिए काम कर सकता हूं। रात को मां और बेटे ने खाना खाया। मां थकी हुई थी अतः जल्द सो गई। युवक ने अपनी जेब से एक अनार निकाला और उसका एक टुकड़ा काटा। अनार के दाने बहुत चमक रहे थे जो जगमगाते रत्न की भांति थे। युवक को पता चला कि अनार के दाने, बहुमूल्य रत्न हैं। यह जानकर वह बहुत खुश हुआ। वह कारवां के साथ यात्रा पर नहीं गया। उसने कुछ रत्न लिए और उन्हें जाकर बाज़ार में बेच दिया। उनसे मिलने वाले पैसों से उसने एक दुकान ख़रीदी और व्यापार आरंभ किया। जब भी लोग किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो अनुपयुक्त स्थान पर रहता हो या उसकी आय कम हो और बड़ी कठिनाइयों में जीवन व्यतीत करता हो लेकिन इन सब के बावजूद भी वह प्रसन्न हो तो लोग यह कहावत दोहराते हैं- “कुजा खुश अस्त, आन्जा के दिल ख़ुश अस्त” अर्थात् ख़ुशी वहीं पर है जहां मन प्रसन्न हो।
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