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उसकी अमानत थी, उसने वापिस ले ली। – It Was His Trust, He Took It Back.

एक सूफी फकीर के दो बेटे थे, जुड़वां बेटे। बहुत प्रेम था उसे उन बेटों से। फकीर मस्जिद गया था रोज की भांति और दो सांड लड़ते हुए रास्ते पर आए और दोनों बच्चे उसमें कुचल गए। फकीर घर लौटा। पत्नी ने उसे भोजन करवाया—बताया ही नहीं कि बच्चे मर गए। जैसे रोज भोजन कराती थी—वैसे ही पंखा झला, भोजन लगाया, फकीर को भोजन कराया। फकीर ने बार—बार पूछा कि बेटे नहीं दिखाई पड़ते। क्योंकि वे रोज उसके भोजन के समय उसके पास आ जाते, उसकी थाली में बैठ जाते। पत्नी ने कहा कि भोजन कर लें, फिर मैं बेटों के संबंध में कुछ बताऊं। मगर न तो पत्नी की आंख से आसूं टपका, न उसके चेहरे से कोई खबर मिली कि कुछ दुर्घटना हो गई है। और उसने कुछ कहा नहीं क्योंकि फिर पति भोजन न कर पाएगा। जब भोजन कर चुका तो पति ने पूछा, अब बोलो, कहां हैं मेरे दोनों बेटे?

दिखाई नहीं पड़ते, घर में उनका शोरगुल भी सुनाई नहीं पड़ता। कहीं खेलने गए हैं?

पत्नी ने कहा, आप आए, दूसरे कमरे में मौजूद हैं, मिला देती हूं। उसने चादर ओढ़ा दी थी दोनों की लाशों को, चादर उघाड़ दी। फकीर तो एकदम ठगा रह गया, उसने कहा, यह क्या?

उसकी आंखों से तो आंसू झलकने लगे, उसने कहा, यह क्या?

पत्नी ने कहा कि रुकिए, जिसने दिया था उसने वापिस ले लिया, आप किसलिए परेशान हो रहे हैं?

आपको मालूम है कुछ दिन पहले आपका मित्र तीर्थयात्रा को गया था और अपने हीरे—जवाहरात हमारे पास रख गया है, अभी मुझे खबर आयी है कि वह आनेवाला है। वह आएगा तो हीरे—जवाहरात वापिस ले जाएगा। तो हम रोएंगे क्या बैठ कर?

फकीर हंसने लगा। फकीर ने कहा कि मैं तो सोचता था तू साधारण गृहिणी है, लेकिन तू मुझसे आगे गई; तूने मुझसे आगे की बात देखी। सच ही तो कहती है तू, उसकी अमानत थी, उसने वापिस ले ली। हमारा क्या था?

मैं भी तुम से इतना ही कहता हूं कि धन हो, पद हो, प्रतिष्ठा हो, कुछ भी हो, छोड़कर भागने को नहीं कह रहा हूं। क्योंकि सब छोड़कर भाग जाओगे तो भागोगे भी कहां?

यही सब लोग वहां पहुंच जाएंगे जहां तुम भाग के पहुंचोगे। इसलिए मैं भागने के पक्ष में नहीं हूं। क्योंकि भागकर अगर गए, तो होगा क्या?

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सब हिमालय चले गए, तो क्या करोगे?

वहीं जा कर बसाना पड़ेगा “एम. जी. रोड”! आखिर सभी लोग वहां पहुंच गए, तो दुकानें खोलनी पड़ें, “माणिक बाबू” को गुड़ की दुकान खोलनी पड़े, आखिर इतने लोग रहेंगे तो गुड़ तो चाहिए ही पड़ेगा। और गुड़ आएगा तो मक्खियां आएंगी. . . और फिर सब आएगा! और जब गुड़ ही आ गया तो फिर और क्या बचेगा?

सब उपद्रव हो जाएगा। गुड़ जल्दी ही गोबर हो जाएगा! तुम ज़रा कल्पना करो कि सारे लोग संन्यासी हो गए और भाग गए। भागोगे कहां?

जहां जाओगे वहीं बस्ती बस जाएगी। यही बस्ती फिर पुनरुक्त हो जाएगी। -ओशो”

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