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कद्दू की तीर्थयात्रा – Kadoo ki Tirthyatra

आज हिन्दी नगरी आपके लिए लाया है एक नई कहानी कद्दू की तीर्थयात्रा – Kadoo ki Tirthyatra

हिन्दू धर्म मे तीर्थ यात्रा का बहुत ही महत्व है। लोगों का ऐसा मानना है कि तीर्थ यात्रा करने से हमारे सारे पाप दूर हो जाते है।

पर ऐसा नहीं होता है जब तक हम अपने मन को शुद्ध नहीं करेंगे तब तक तीर्थ यात्रा करना व्यर्थ है ।

यह कहानी ऐसे ही एक संत की है जो लोगों को इस बात का बोध (ज्ञान) कराते है कि तीर्थ यात्रा से पहले हमे अपने मन को शुद्ध करना होगा।

हमे पूर्ण विश्वास है की यह कहानी पढ़कर आप भी अपने मन को शुद्ध करेंगे।

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कद्दू की तीर्थयात्रा

हमारे यहाँ तीर्थ यात्रा का बहुत ही महत्त्व है। पहले के समय यात्रा में जाना बहुत कठिन था।

पैदल या तो बैल गाड़ी में यात्रा की जाती थी। थोड़े थोड़े अंतर पे रुकना होता था।

विविध प्रकार के लोगो से मिलना होता था, समाज का दर्शन होता था।

विविध बोली और विविध रीति-रीवाज से परिचय होता था।

कंई कठिनाईओ से गुजरना पड़ता, कंई अनुभव भी प्राप्त होते थे।

एकबार तीर्थ यात्रा पे जानेवाले लोगो का संघ संत तुकाराम जी के पास जाकर उनके साथ चलनेकी प्रार्थना की।

तुकारामजी ने अपनी असमर्थता बताई।

उन्होंने तीर्थयात्रियो को एक कड़वा कद्दू देते हुए कहा : “मै तो आप लोगो के साथ आ नहीं सकता लेकिन आप इस कद्दू को साथ ले जाईए और जहाँ – जहाँ भी स्नान करे, इसे भी पवित्र जल में स्नान करा लाये।”

लोगो ने उनके गूढार्थ पे गौर किये बिना ही वह कद्दू ले लिया और जहाँ – जहाँ गए, स्नान किया वहाँ – वहाँ स्नान करवाया।

मंदिर में जाकर दर्शन किया तो उसे भी दर्शन करवाया।

ऐसे यात्रा पूरी होते सब वापस आए और उन लोगो ने वह कद्दू संतजी को दिया।

तुकारामजी ने सभी यात्रिओ को प्रीतिभोज पर आमंत्रित किया।

तीर्थयात्रियो को विविध पकवान परोसे गए।

तीर्थ में घूमकर आये हुए कद्दूकी सब्जी विशेष रूपसे बनवायी गयी थी।

सभी यात्रिओ ने खाना शुरू किया और सबने कहा कि “यह सब्जी कड़वी है।”

तुकारामजी ने आश्चर्य बताते कहा कि “यह तो उसी कद्दू से बनी है, जो तीर्थ स्नान कर आया है।

बेशक यह तीर्थाटन के पूर्व कड़वा था, मगर तीर्थ दर्शन तथा स्नान के बाद भी इसी में कड़वाहट है !”

यह सुन सभी यात्रिओ को बोध हो गया कि ‘हमने तीर्थाटन किया है लेकिन अपने मन को एवं स्वभाव को सुधारा नहीं तो तीर्थयात्रा का अधिक मूल्य नहीं है।

हम भी एक कड़वे कद्दू जैसे कड़वे रहकर वापस आये है।’

सत्य कथन

मन चंगा तो कठौती मे गंगा।

To the pure, everything is pure.