~Advertisement ~

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग – Kedarnath Jyotirlinga

केदारनाथ महादेव के विषय में कई कथाएं हैं.

स्कन्द पुराण में लिखा है कि एक बार केदार क्षेत्र के विषय में जब पार्वती जी ने शिव से पूछा तब भगवान शिव ने उन्हें बताया कि केदार क्षेत्र उन्हें अत्यंत प्रिय है. वे यहां सदा अपने गणों के साथ निवास करते हैं. इस क्षेत्र में वे तब से रहते हैं जब उन्होंने सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा का रूप धारण किया था.

यह भी पढे – कैकेयी द्वारा वरों की प्राप्ति – Kaikeyi’s attainment of grooms

स्कन्द पुराण में इस स्थान की महिमा का एक वर्णन यह भी मिलता है कि एक बहेलिया था जिस हिरण का मांस खाना अत्यंत प्रिय था. एक बार यह शिकार की तलाश में केदार क्षेत्र में आया. पूरे दिन भटकने के बाद भी उसे शिकार नहीं मिला. संध्या के समय नारद मुनि इस क्षेत्र में आये तो दूर से बहेलिया उन्हें हिरण समझकर उन पर वाण चलाने के लिए तैयार हुआ.

जब तक वह वाण चलाता सूर्य पूरी तरह डूब गया. अंधेरा होने पर उसने देखा कि एक सर्प मेंढ़क का निगल रहा है. मृत होने के बाद मेढ़क शिव रूप में परिवर्तित हो गया. इसी प्रकार बहेलिया ने देखा कि एक हिरण को सिंह मार रहा है. मृत हिरण शिव गणों के साथ शिवलोक जा रहा है. इस अद्भुत दृश्य को देखकर बहेलिया हैरान था. इसी समय नारद मुनि ब्राह्मण वेष में बहेलिया के समक्ष उपस्थित हुए.

यह भी पढे – तपस्या का फल – fruit of penance

बहेलिया ने नारद मुनि से इन अद्भुत दृश्यों के विषय में पूछा. नारद मुनि ने उसे समझाया कि यह अत्यंत पवित्र क्षेत्र है. इस स्थान पर मृत होने पर पशु-पक्षियों को भी मुक्ति मिल जाती है. इसके बाद बहेलिया को अपने पाप कर्मों का स्मरण हो आया कि किस प्रकार उसने पशु-पक्षियों की हत्या की है. बहेलिया ने नारद मुनि से अपनी मुक्ति का उपाय पूछा. नारद मुनि से शिव का ज्ञान प्राप्त करके बहेलिया केदार क्षेत्र में रहकर शिव उपासना में लीन हो गया. मृत्यु पश्चात उसे शिव लोक में स्थान प्राप्त हुआ. केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की कथा केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की कथा के विषय में शिव पुराण में वर्णित है कि नर और नारयण नाम के दो भाईयों ने भगवान शिव की पार्थिव मूर्ति बनाकर उनकी पूजा एवं ध्यान में लगे रहते. इन दोनों भाईयों की भक्तिपूर्ण तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव इनके समक्ष प्रकट हुए. भगवान शिव ने इनसे वरदान मांगने के लिए कहा तो जन कल्याण कि भावना से इन्होंने शिव से वरदान मांगा कि वह इस क्षेत्र में जनकल्याण हेतु सदा वर्तमान रहें. इनकी प्रार्थना पर भगवान शंकर ज्योर्तिलिंग के रूप में केदार क्षेत्र में प्रकट हुए. केदारनाथ से जुड़ी पाण्डवों की कथा शिव पुराण में लिखा है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात पाण्डवों को इस बात का प्रायश्चित हो रहा था कि उनके हाथों उनके अपने भाई-बंधुओं की हत्या हुई है. वे इस पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसका समाधान जब इन्होंने वेद व्यास जी से पूछा तो उन्होंने कहा कि बंधुओं की हत्या का पाप तभी मिट सकता है जब शिव इस पाप से मुक्ति प्रदान करेंगे. शिव पाण्डवों से अप्रसन्न थे अत: पाण्डव जब विश्वानाथ के दर्शन के लिए काशी पहुंचे तब वे वहां शंकर प्रत्यक्ष प्रकट नहीं हुए. शिव को ढ़ूढते हुए तब पांचों पाण्डव केदारनाथ पहुंच गये. पाण्डवों को आया देखकर शिव ने भैंस का रूप धारण कर लिया और भैस के झुण्ड में शामिल हो गये . शिव की पहचान करने के लिए भीम एक गुफा के मुख के पास पैर फैलाकर खड़ा हो गया. सभी भैस उनके पैर के बीच से होकर निकलने लगे लेकिन भैस बने शिव ने पैर के बीच से जाना स्वीकार नहीं किया इससे पाण्डवों ने शिव को पहचान लिया. इसके बाद शिव वहां भूमि में विलीन होने लगे तब भैंस बने भगवान शंकर को भीम ने पीठ की तरह से पकड़ लिया. भगवान शंकर पाण्डवों की भक्ति एवं दृढ़ निश्चय को देखकर प्रकट हुए तथा उन्हें पापों से मुक्त कर दिया. इस स्थान पर आज भी द्रौपदी के साथ पांचों पाण्डवों की पूजा होती है. यहां शिव की पूजा भैस के पृष्ठ भाग के रूप में तभी से चली आ रही है.

Note:- इन कहानियों मे प्रयोग की गई सभी तस्वीरों को इंटरनेट से गूगल सर्च और बिंग सर्च से डाउनलोड किया गया है।

Note:-These images are the property of the respective owner. Hindi Nagri doesn’t claim the images.

यह भी पढे –

सभी कहानियों को पढ़ने के लिए एप डाउनलोड करे/ Download the App for more stories:

Get it on Google Play