कृष्ण और रुक्मिणी – Krishna and Rukmini
विदर्भ देश के राजा भीष्मक के पांच पुत्र और एक पुत्री थी|
पुत्री का नाम रुक्मिणी था जो समकालीन राजकुमारियों में सर्वाधिक सुंदर और सुशील थी|
उससे विवाह करने के लिए अनेक राजा और राजकुमार आए दिन विदर्भ देश की राजधानी की यात्रा करते रहते थे|
उन दिनों कृष्ण के रूप-सौंदर्य, गुणों और पराक्रम की गाथाएं समस्त भरत खंड में गूंज रही थीं|
राजकुमारी रुक्मिणी अपनी किशोरावस्था से ही कृष्ण के संबंध में सुनती चली आई थी इसलिए उसके मन में कृष्ण के लिए एक विशिष्ट स्थान बन गया था|
फिर जब वह युवती बन गई तो उसने अनुभव किया कि तीनों लोक में कृष्ण से श्रेष्ठ वर उसके लिए कोई नहीं हो सकता|
इसलिए उसने मन ही मन कृष्ण को अपना पति मान लिया|
रुक्मिणी के पिता और माता भी चाहते थे कि उनकी पुत्री का विवाह कृष्ण के साथ हो लेकिन रुक्मिणी के बड़े भाई रुक्मी की मित्रता शिशुपाल और जरासंध जैसे उन राजाओं के साथ थी जो कृष्ण को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते थे|
उन राजाओं को कृष्ण के हाथों कई बार पराजय का सामना करना पड़ा था फिर भी उनकी शत्रुता की आग बुझ नहीं पाई थी|
जब रुक्मी को यह पता चला कि उसकी बहन कृष्ण के साथ विवाह करना चाहती है और उसके माता-पिता भी इससे सहमत हैं तो उसने एक दिन राजसभा में घोषणा कर दी कि उसकी बहन रुक्मिणी का विवाह चेदि देश के राजा शिशुपाल के साथ होगा|
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इस घोषणा के साथ ही उसने अपने पिता भीष्मक को धमकी दे डाली कि अगर उन्होंने उसकी घोषणा का विरोध किया तो वह उन्हें राज सिंहासन से हटाकर राज्य पर अधिकार कर लेगा और फिर जबरदस्ती रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल के साथ कर देगा|
राजा भीष्मक को अपने राज्य जाने की तो उतनी चिंता नहीं थी जितनी चिंता अपनी प्रजा के कल्याण की थी|
वह अच्छी तरह जानते थे कि रुक्मी के राजा बनते ही राज्य की वही हालत हो जाएगी जो शिशुपाल और बाणसुर जैसे अत्याचारी और निरंकुश राजाओं के राज्य की है|
यह सब सोचकर उन्होंने रुक्मी की घोषणा का विरोध नहीं किया|
रुक्मी ने उसी समय कुल पुरोहित से विवाह की तिथि निश्चित कराई और शिशुपाल के पास संदेश भिजवा दिया कि वह अपने मित्र राजाओं को बारात में लेकर आए और राजकुमारी रुक्मिणी को विवाह कर ले जाए|
जब रुक्मिणी को अपने बड़े भाई की इस करतूत का पता चला तो वह बहुत दुखी हुई|
उसने मन ही मन कृष्ण को अपना पति मना लिया था|
और यह आर्य कन्याओं के धर्म के विरुद्ध था कि जिसे वह पति के रूप में वरण कर ले उसके होते हुए किसी दूसरे व्यक्ति को अपना पति बनाए|
सोच-विचार करने के बाद उसने अपने एक विश्वस्त ब्राह्मण को बुलाया और उससे कहा कि वह द्वारिका में कृष्ण के पास जाए और उन्हें यह संदेश दे दे कि रुक्मिणी वर्षों पहले से उनका अपने पति के रूप में वरण कर चुकी है|
लेकिन उसका बड़ा भाई रुक्मी बलपूर्वक उसका विवाह शिशुपाल के साथ कर देना चाहता है|
इसलिए कृष्ण आएं और उसका हरण करके ले जाएं|
यदि वह न आए तो वह अपने प्राणों का अंत कर देगी|
रुक्मिणी का संदेश लेकर ब्राह्मण उसी समय द्वारिका की ओर चल दिया और कुछ दिनों बाद द्वारिका में पहुंच गया|
जब कृष्ण को उस ब्राह्मण द्वारा रुक्मिणी का संदेश मिला तो कृष्ण ने उसे वचन दे दिया कि भले ही शिशुपाल, जरासंध आदि राजाओं की विशाल सेनाओं से उन्हें भीषण युद्ध क्यों न करना पड़े वह उसे उन सबके बीच से उठा लाएंगे|
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कृष्ण ने उसी समय अपने सारथी को रथ तैयार करने की आज्ञा दी और ब्राह्मण को साथ लेकर कुंडिनपुर की ओर चल पड़े|
कृष्ण के जाते ही बलराम को उनके कुंडिनपुर जाने की सुचना मिल गई|
उन्होंने यादवों की सेना की एक शक्तिशाली टुकड़ी को अपने साथ चलने का आदेश दिया और द्वारिका से इतनी तेजी से प्रस्थान किया कि वह भी सेना सहित कृष्ण के पीछे-पीछे ही कुंडिनपुर पहुंच गए|
कृष्ण और बलराम के पहुंचने से पहले ही शिशुपाल अपने साथी राजाओं की विशाल सेनाओं के साथ कुंडिनपुर पहुंच चुका था|
शिशुपाल के मित्र जरासंध, शाल्व, पौण्ड्रक, दंत, वकभ और विदूरथ आदि अनेक राजाओं की कई अक्षौहिणी सेना बारात में सम्मिलित थी|
विवाह के दिन सुबह ही परंपरा के अनुसार रुक्मिणी अपनी सहेलियों तथा अन्य महिलाओं के साथ गौरी पूजन के लिए नगर से बाहर बनाए गए मंदिर में पूजा करने गई|
रुक्मिणी के संदेश वाहक ब्राह्मण द्वारा कृष्ण को इस बात का पता चल चुका था|
इसलिए वह रथ लेकर मंदिर के पीछे पहुंच गए|
पूजा करने के बाद रुक्मिणी जैसे ही मंदिर से निकली कृष्ण ने उन्हें उठाकर अपने रथ में बैठा लिया|
रुक्मिणी के साथ आए सैनिक देखते ही रह गए|
जब शिशुपाल और उसके साथी राजाओं को रुक्मिणी हरण का समाचार मिला तो वे अपनी-अपनी विशाल सेना लेकर कृष्ण को पकड़ने के लिए चल दिए|
रुक्मिणी का बड़ा भाई रुक्मी भी अपने चारों भाइयों और अपनी सेना के साथ कृष्ण के पीछे-पीछे चल दिया|
नगर से कुछ दूर निकलते ही यादवों की सेना दिखाई देने लगी|
अपने पीछे आती हुई सेनाओं को देखते ही बलराम ने अपनी सेना को आदेश दिया कि आक्रमणकारी सेनाओं को खदेड़कर भगा दो|
यादव सेना के सैनिकों ने पलटकर आक्रमणकारी सेनाओं की भीषण बाण वर्षा का उत्तर देना आरंभ कर दिया|
देखते ही देखते भीषण संग्राम होने लगा|
यदुवंशियों की थोड़ी से सेना ने शिशुपाल, जरासंध और उनके साथी राजाओं की विशाल सेनाओं पर इतनी भयंकर बाण वर्षा की कि वे सिर पर पांव रख कर भागने लगी|
अपनी सेनाओं का संहार होते और उन्हें भागते देख शिशुपाल और उसके साथी राजा भी अपने प्राण बचाकर भाग गए|
शिशुपाल और उसके साथी राजाओं की सेनाओं को पीठ दिखाकर भागते देख रुक्मी के क्रोध की कोई सीमा न रही|
वह अकेला ही कृष्ण का पीछा करने लगा|
कृष्ण रुक्मी से युद्ध करना नहीं चाहते थे लेकिन जब रुक्मी ने अपशब्द कहते हुए उन पर आक्रमण कर दिया तो विवश होकर कृष्ण को शस्त्र उठाने पड़े|
उन्होंने पलक झपकते ही रुक्मी के रथ के घोड़ों और सारथी को मार डाला|
रुक्मी भी उनके बाणों से घायल हो गया|
कृष्ण ने तलवार संभाली और झपटकर रुक्मी को पकड़ लिया और उसी के उत्तरीय से उसके हाथ-पैर बांधने के बाद उसके सिर तथा दाढ़ी-मूछों के बाल जगह-जगह से मूंडकर उसे कुरूप बना दिया|
रुक्मी यह प्रतिज्ञा करके कृष्ण से युद्ध करने चला था कि अगर वह अपनी बहन रुक्मणी को कृष्ण के हाथों से छुड़ाकर नहीं लाया तो कुंडिनपुर में नहीं लौटेगा|
बलराम के कहने पर जब कृष्ण ने उसे छोड़ दिया तो वह अपने बचे खुचे सैनिकों को लेकर एक निर्जन प्रदेश में चला गया और वहीं नया नगर बसाकर रहने लगा|
कृष्ण रुक्मिणी को लेकर विजयी यादव सेना के साथ द्वारिका पुरी लौट आए जहां विधिपूर्वक उनका विवाह रुक्मिणी के साथ कर दिया गया|
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