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आनंद से जीयो। – Live Happily.

एक ईसाई मां अपने बच्चे को समझा रही थी कि बेटा, दूसरों की सेवा करना चाहिए। भगवान ने तुम्हें इसीलिए बनाया है कि तुम दूसरों की सेवा करो। बेटा बुद्धिमान था, उस छोटे—से बच्चे ने—और छोटे बच्चे अक्सर ऐसी बातें पूछ लेते हैं कि बूढ़े जवाब न दे सकें—उस छोटे बच्चे ने कहा: यह तो मैं समझ गया कि मुझे इसलिए बनाया है कि दूसरों की सेवा करूं। दूसरों को किसलिए बनाया है?

इसका भी उत्तर चाहिए। मां जरा मुश्किल में पड़ी होगी, अब क्या कहे?

अगर कहे, दूसरों को इसलिए बनाया है कि तुम सेवा करो, तो यह तो बड़ा अन्याय है, कि मुझको सेवा करने के लिए बनाया और उनको सेवा करवाने के लिए! यह तो मूल से अन्याय हो गया! अगर मां यह कहे कि दूसरों को इसलिए बनाया है कि वे तुम्हारी सेवा करें और तुम्हें इसलिए बनाया है कि तुम उनकी सेवा करो, तो बेटा कहेगा, अपनी—अपनी सब कर लें, क्यों फिजूल की झंझट खड़ी करनी! मैं यही कह रहा हूं। इस दुनिया में बहुत हो चुकी दूसरों की सेवा, कुछ सार हाथ नहीं आया। दूसरों की सेवा के नाम पर बहुत थोथे धंधे चल चुके। सेवा के नाम पर सत्ताधिकारियों ने लोगों का शोषण किया है। जो भी सेवक बनकर आता है, आज नहीं कल सत्ताधिकारी हो जाता है। जो तुम्हारे पैर दबाने से शुरू करता है, एक दिन तुम्हारी गर्दन दबाएगा! जब तुम्हारे पैर दबाए तभी चेत जाना, अन्यथा पीछे बहुत देर हो जाती है। फिर चेतने से कुछ सार नहीं। क्यों करेगा कोई सेवा तुम्हारी?

और सेवा करेगा, तो बदला मांगेगा; पुरस्कार चाहेगा। मेरी दीक्षा यही है तुम्हें: अपने आनंद से जीयो। इतना ही पर्याप्त होगा कि तुम किसी दूसरे के आनंद में बाधा न बनो। इतना ही पर्याप्त होगा कि तुम अपने आनंद का नृत्य नाचो और अपना गीत गाओ। शायद तुम्हारे आनंद की तरंग दूसरों को भी लग जाए और वे भी आनंदित हो जाएं। शायद थोड़ी गुलाल तुमसे उड़े और वे भी लाल हो जाएं! थोड़ा रंग तुमसे छिटके और वे भी रंग जाएं। यह दूसरी बात है। तुमने सेवा की, ऐसा सोचना मत। कोयल गाती है। तुम क्या सोचते हो कवियों की सेवा कर रही है, कि लिखो कविताएं, देखो मैं गा रही हूं! जागो कवियो! उठाओ अपनी कलमें, लिखो कविताएं! मैं आ गई सेवा करने को फिर। कि पपीहा पुकारता है, कि संतो जागो! कि देखो मैं पिय को पुकार रहा हूं, तुम भी पुकारो! मैं तुम्हारी सेवा करने आ गया। तुम इस जगत में देखते हो, कौन किसकी सेवा कर रहा है?

कोयल गीत गा रही है—अपने आनंद से। पपीहा पुकार रहा है—अपने रस में विमुग्ध हो। फूल खिले हैं—अपने रस से। चांदत्तारे चलते—अपनी ऊर्जा से। तुम भी अपने में जीओ। मैं तुम्हें सेवक नहीं बनाना चाहता। मेरे पास लोग आ जाते हैं, वे कहते हैं, आप अपने संन्यासियों को क्यों नहीं कहते कि जनता की सेवा करें?

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क्यों करें?

क्यों किसी की कोई सेवा करे?

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और कितने दिन से सेवा चल रही है, हजारों साल हो गए, लाभ क्या है?

मैं नहीं सिखाता सेवा करना। और इसका यह अर्थ नहीं है कि तुमसे सेवा नहीं होगी। ख्याल समझ लेना, भेद समझ लेना। सेवा तुमसे तभी होगी, जब तुम करोगे नहीं। जब तुम अपने आनंद में मग्न हो जाओगे। जब तुम जागोगे और तुम्हारा दीया जलेगा—तब तुमसे सेवा होगी। तुम्हारे बिना किए होगी। तुम्हारी चेष्टा से मुक्त होगी। तुम्हारा प्रयास नहीं होगा। तुम्हारे भीतर से परमात्मा बहेगा और कुछ घटनाएं घटेंगी, लेकिन तुम उनके कर्ता नहीं रहोगे—साक्षी मात्र। -ओशो”

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