मरघट – Mortuary
मैं छोटा था, तो मुझे मरघट जाने का शौक था। मरघट से मुझे बहुत मिला। गाँव में कोई भी मरे इसका कोई मुझे सवाल ही नहीं था मैं सभी की अर्थी में जाता था। जब मैं स्कूल न पहुँचूँ तो मेरे शिक्षक समझ लें कि कोई मर गया होगा गाँव में। जब मैं घर खाने के वक्त न पहुँचूँ तो घर के लोग समझ लें कि कोई मर गया होगा गाँव में जाओ, भेजो किसीको मरघट, पकड़ के लाए! जब भी कोई मरता, मैं उसके साथ मरघट जाता। और मरघट पर जाकर दो हैरानी की बातें मुझे हमेशा दिखायी पड़ती। उधर आदमी जल रहा है और लोग बैठे संसार की गपशप कर रहे हैं। इससे मैं हमेशा चमत्कृत हुआ । आदमी जल’ रहा है, कल तक इससे बातें करते थे, यह इनका दोस्त था, मित्र था, प्रियजन था, आज वह जल रहा है, उसकी अर्थी में आग लगा दी है, अब बैठ कर वहीं आसपास गपशप हो रही है। संसार की गपशप हो रही है कि फिल्म कौन सी लगी है?
ऐसी है?
फलाँ आदमी का क्या हाल है?
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वही बाजार! इनको याद भी नहीं आ रही कि यह मौत तुम्हारी भी मौत है। यह घड़ी तो ध्यान की थी। यह तो बैठ कर सोचने की थी। यह तो विचार की थी। यह आदमी मर गया, यह भी इन्हीं बातों को करते मर गया कि कौन सी फिल्म कहाँ लगी है, और हम भी इन्हीं बातों को करते मर जाएँगे। लेकिन मुझे धीरे धीरे समझ में आना शुरू हुआ, वे अपने को बचाने के लिए बातों में उलझाए हुए हैं। यह आदमी मर गया, यह बात दिखायी नहीं पड़नी चाहिए। क्योंकि यह अस्त व्यस्त कर देगी। यह उनकी जिंदगी के ढाँचे को तोड़ मरोड़ देगी। उनको फिर परमात्मा को याद करने को मजबूर होना पड़ेगा। फिर संसार का स्मरण करने से काम न चलेगा। क्योंकि संसार का स्मरण करते करते रोज लोग मर रहे हैं। कब तुम्हें सुध आएगी कि हम उसका स्मरण करें कि फिर मरना न हो! और ऐसा सूत्र तुम्हारे भीतर है। और ऐसी तुम्हारी संभावना है तुम अमरत्व के पुत्र हो! वेद कहते हैं—— ‘अमृतस्य पुत्र ‘। हे अमृत के पुत्रो, तुम क्यों मृत्यु में उलझ गये हो?
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जो संसार में उलझा, वह मृत्यु में उलझा। क्योंकि संसार मरणधर्मा है। जिसने प्रभु को स्मरण किया, वह अमृत हुआ। जैसा होना है, उससे ही साथ जोड़ लो। जैसा होना है, उससे ही दोस्ती कर लो। दोस्ती सोच समझ कर करना। जीना चाहते हैं सदा और जो सदा है उसके साथ संबंध नहीं जोड़ते। संबंध जोड़ते उसके साथ जो क्षणभंगुर है। और जीना चाहते हैं सदा। देह के साथ संबंध जोड़ते है – जो आज है और कल नहीं हो जाएगी। आत्मा के साथ संबंध नहीं जोड़ते – जो कल भी थी, आज भी है, कल भी होगी। -ओशो”
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