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मेरा प्रिय कवि – My Favorite Poet

तुलसीदास हिंदी साहित्य के अमर कवि होने के साथ-साथ मेरे प्रिय कवि भी हैं। भक्तिकालीन कवियों में कबीर, सूर, तुलसी, मीारा और आधुनिक कवियों में मैथलीशरण गुप्त, महादेवी वर्मा जैसे कुछ कवियों का रसास्वादन किया है। इन सबको अध्ययन करते समय जिस कवि की भक्ति भावना ने मुझे अभिभूत कर दिया उसका नाम है-महाकवि तुलसीदास।

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लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास हिंदी-साहित्य-जगत की एक अमर विभूति हैं। उनका नाम स्वंत 1589 ई्. में राजापुर नामकर गांव में हुा था। उउनके पिता का नाम पंडित आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है अशुभ मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण अविश्वासी पिता ने जन्म के तत्काल बाद मुनिया नाक दासी को आदेश दिया कि बालक को कहीं फैंक आए। परंतु उसे फैंकने की बजाय पर अपनी अंधी सास को दे आई जो उसे पालती रही। उनकी मृत्यु के बाद मुनिया स्वंय इनका भरण-पोषण करने लगी लेकिन एक तूफान से झोपड़ी गिर जाने से वह भी मर गई, तब बेसाहारा बालक घूमता-फिरता सूकर क्षेत्र में पहुंचा। वहां बाबा नरहरिदास ने उन्हें सहारा तो दिया ही राम-कथा भी सुनाई। फिर काशी के विद्वान शेष सनातक की पाठशाला में प्रवेश दिलवाया। गुरू-गृह के काम करके बालक पढ़ता रहा और शास्त्री बनकर वापस गांव लौट आए। वही नदी पार के गांव के निवासी दीनबंधु पाठक की विदूषी कन्या रत्नावली से तुलसीदास का विवाह हुआ। हमेशा स्नेह, प्यार से वंचित रहने वाला युवक सुंदरी पत्नी का प्रेम पाकर विभोर हो उठा। एक बार एक दिन के वियोग में उसके पीछे ससुराल जा पहुंचे, तो लज्जा और आत्म-ज्लानिवश पत्नी ने जो फटकार लगाई कि संसारी तुलसीदास भक्त और महाकवि बन गए। घर छोडक़र वे ज्यों निकले फिर कभी नहीं लौटे। इनका निधन संवत 1680 वि. में गंगा के तट पर हुआ माना जाता है।

कवितावली, दोहावली, गीतावली, कृष्ण गीतावली, विनय पत्रिका, रामचरित-मानस, रामलला नहछू, वैराज्य संदीपनी बरवै रामायण, पार्वती मंगल और रामज्ञा प्रश्न-गोस्वामी जी की ये बारह रचनांए हैं। इनमें से कवितावली, गीतावली विनय पत्रिका और रामचरित मानक का विशेष साहित्यिक महत्व स्वीकार किया जाता है। इन चारों में अकेली रामचरितमानस ऐसी रचना है कि जो कवि यश को युग-युगांतरों तक अमर रखने में समर्थ है। यह एक अध्यात्मपरक रचना तो है पर धर्म समाज, घर परिवार, राजनीति के विभिन्न विषयों की उचित शिक्षा एंव प्रेरणा देने वाली आदर्श रचना भी है। सभी तरह के व्यवहार इससे सीख कर लोक-परलोक दोनों को सफल बनाया जा सकता है। ऐसा महत्वपूर्ण साहित्यिक अवदान के कारण तुलसीदास को लोकनायक कहा गया है।

गोस्वामी तुलसीदास हर प्रकार से भारतीय समन्वय-साधना का महत्व एंव बल प्रदान करने वाले कवि थे। उन्होंने वैष्णव, शैव, शाक्त, श्रोत, स्मार्त आदि धार्मिक संप्रदायों का समन्वय तो रामचरितमानस में करके दिखाया ही सगुण के साथ निगुण तत्व के समन्वय का भी सफल प्रयास किया। इसी प्रकार भक्ति, कर्म और ज्ञान का समन्वय करने वाला भी माना जाता है। शक्ति, शील और सौंदर्य का समन्वय भी केवल गोस्वामी तुलसीदास के काव्य में ही देखने को मिलता है। अराध्य और कथा-नायक राम सुंदर-सुशील तो हैं ही, राक्षसों का वधकर वापस शक्तिशाली होने का भी परिचय देते हैं। श्री कृष्ण गीतावली रचकर तुलसीदास ने रामकृष्ण के समन्वय की जो चेष्टा की वह बाद में आधुनिक कवि मैथिलिशरण गुप्त में ही सुलभ हो पाती है।

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महाकवि तुलसीदास ने भाषा-शैली का समन्वय करके भाषायी झगड़े, समान्त करने का भी सार्थक प्रयास किया। रामचरित मानस आदि की रचना यदि साहित्यिक अवधी में की तो ‘जानकीमंगल’, पार्वतीमंगल और रामलला नहछू आदि लोक प्रचलित अवधी भाषा को अपनाया। इसी तरह कवितावली, गीतावली और विनय पत्रिका को रचना ब्रज भाषा में परिचय दिया। जहां तक शैलीगत समन्वय का प्रश्न है तो तुलसीदास ने कवित-सवैया के साथ युगीन दोहा शैली के साथ-साथ जोक गीतों और गीता काव्य को सार्थक रूप अपनाकर इस दिशा में नया मार्ग दिया। दोहा-चौपाई की प्रबंध शैली के कवि हैं।

इस प्रकार स्पष्ट है कि भक्तिकाल तो गा्रस्वामी तुलसीदास के कारण धन्य है उसके बाद के आज तक के सभी काव्ययुग भी आपके आभारी हैं। अआप आज तक रचे गए हिंदी सहित्य के श्रेष्ठतम कवि माने जाते हैं। आपके रामराज्य की कल्पना रही है जो आज पूर्ण होने की प्रतीक्षा कर रही है।

तुलसीदास के बारे में कवि की उक्ति कितनी सार्थक है-

‘कविता करके तुलसी न लसे

कविता लसि पा तुलसी की कला।’

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