~Advertisement ~

सांच को आंच नहीं – No Harm To The Mold

किसी नगर में एक जुलाहा रहता था। वह बहुत बढ़िया कम्बल तैयार करता था। कत्तिनों से अच्छी ऊन खरीदता और भक्ति के गीत गाते हुए आनंद से कम्बल बुनता। वह सच्चा था, इसलिए उसका धंधा भी सच्चा था, रत्तीभर भी कहीं खोट-कसर नहीं थी।

एक दिन उसने एक साहूकार को दो कम्बल दिए। साहूकार ने दो दिन बाद उनका पैसा ले जाने को कहा। साहूकार दिखाने को तो धरम-करम करता था, माथे पर तिलक लगाता था, लेकिन मन उसका मैला था। वह अपना रोजगार छल-कपट से चलाता था।

यह भी पढे – ग्रामीण जीवन – Rural Life

दो दिन बाद जब जुलाहा अपना पैसा लेने आया तो साहूकार ने कहा – “मेरे यहां आग लग गई और उसमें दोनों कम्बल जल गए अब मैं पैसे क्यों दूं?

जुलाहा बोला – “यह नहीं हो सकता मेरा धंधा सच्चाई पर चलता है और सच में कभी आग नहीं लग सकती।

जुलाहे के कंधे पर एक कम्बल पड़ा था उसे सामने करते हुए उसने कहा – “यह लो, लगाओ इसमें आग।”

साहूकार बोला – “मेरे यहां कम्बलों के पास मिट्टी का तेल रखा था। कम्बल उसमें भीग गए थे। इस लिए जल गए।

यह भी पढे – पाण्डवों तथा कौरवों का जन्म – Birth of Pandavas and Kauravas

जुलाहे ने कहा – “तो इसे भी मिट्टी के तेल में भिगो लो।”

काफी लोग वहां इकट्ठे हो गए। सबके सामने कम्बल को मिट्टी के तेल में भिगोकर आग लगा दी गई। लोगों ने देखा कि तेल जल गया, लेकिन कम्बल जैसा था वैसा बना रहा।

जुलाहे ने कहा – “याद रखो सांच को आंच नहीं।”

साहूकार ने लज्जा से सिर झुका लिया और जुलाहे के पैसे चुका दिए।

सच ही कहा गया है कि जिसके साथ सच होता है उसका साथ तो भगवान भी नहीं छोड़ता।

Note:- इन कहानियों मे प्रयोग की गई सभी तस्वीरों को इंटरनेट से गूगल सर्च और बिंग सर्च से डाउनलोड किया गया है।

Note:-These images are the property of the respective owner. Hindi Nagri doesn’t claim the images.

यह भी पढे –

सभी कहानियों को पढ़ने के लिए एप डाउनलोड करे/ Download the App for more stories:

Get it on Google Play