धैर्य – Patience
मैं तुमसे एक झेन कथा कहूंगा। एक झेन भिक्षु जंगल में से गुजर रहा है। अचानक वह सजग हो जाता है कि एक शेर उसका पीछा कर रहा है, इसलिए वह भागना शुरू कर देता है। लेकिन उसका भागना भी झेन ढंग का है। वह जल्दी में नहीं है, वह पागल नहीं है। उसका भागना भी शांत है, लयबद्ध। वह इसमें रस ले रहा है।
यह कहा जाता है कि भिक्षु ने अपने मन में सोचा, ‘ अगर शेर इसका मजा ले रहा है तो मुझे क्यों नहीं लेना चाहिए?
‘और शेर उसका पीछा कर रहा है। फिर वह ऊंची चट्टान के नजदीक पहुंचता है। शेर से बचने के लिए ही वह पेडू की डाली से लटक जाता है। फिर वह नीचे की ओर देखता है—एक सिंह घाटी में खड़ा हुआ है, उसकी प्रतीक्षा करता हुआ। फिर शेर वहां पहुंच जाता है, पहाड़ी की चोटी पर, और वह पेड़ के पास ही खड़ा हुआ है। भिक्षुबीच में लटक रहा है बस डाल को पकड़े हुए। नीचे घाटी में गहरे उतार पर सिंह उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। भिक्षु हंस पड़ता है। फिर वह ऊपर देखता है।
दो चूहे एक सफेद, एक काला, डाली ही कुतर रहे हैं। तब वह बहुत जोर से हंस देता है। वह कहता है, ‘यह है जिंदगी। दिन और रात, सफेद और काले चूहे काट रहै हैं। और जहां मैं जाता हूं मौत प्रतीक्षा कर रही है। यह है जिंदगी।’ और यह कहा जाता है कि भिक्षु को ‘सतोरी’ उपलब्ध हो गयी—संबोधि की पहली झलक। यह है जिंदगी! चिंता करने को कुछ है नहीं, चीजें इसी तरह है। जहां तुम जाते हो मृत्यु प्रतीक्षा कर रही है। और अगर तुम कहीं नहीं भी जाते तो दिन और रात तुम्हारा जीवन काट रहे हैं। इसलिए भिक्षु जोर से हंस पड़ता है। फिर वह चारों ओर देखता है, क्योंकि अब हर चीज निधर्ग़रत है। अब कोई चिंता नहीं। जब मृत्यु निश्चित है तब चिंता क्या है?
केवल अनिश्चितता में चिंता होती है। जब हर चीज निश्चित है, कोई चिंता नहीं होती है, अब मृत्यु नियति बन गयी है। इसलिए वह चारों ओर देखता है यह जानने के लिए कि इन थोड़ी—सी आखिरी घडियों का आनंद कैसे उठाया जाये। उसे होश आता है कि डाल के बिलकुल निकट ही कुछ स्ट्राबेरीज हैं, तो वह कुछ स्ट्राबेरी तोड़ लेता है और उन्हें खा लेता है। वे उसके जीवन की सबसे बढ़िया स्ट्राबेरी हैं। वह उनका मजा लेता है। और ऐसा कहा जाता है कि वह उस घडी में संबोधि को उपलब्ध हो गया था।
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वह बुद्ध हो गया क्योंकि मृत्यु के इतना निकट होने पर भी वह कोई जल्दी में नहीं था। वह स्ट्राबेरी में रस ले सकता था। वह मीठी थी। उसका स्वाद मीठा था। उसने भगवान को धन्यवाद दिया। ऐसा कहा जाता है कि उस घड़ी में हर चीज खो गयी थी—वह शेर, वह सिंह, वह डाल, वह स्वयं भी। वह ब्रह्मांड बन गया।यह है धैर्य। यह है संपूर्ण धैर्य। जहां तुम हो, उस क्षण का आनंद मनाओ भविष्य की पूछे बिना। कोई भविष्य मन में नहीं होना चाहिए। केवल वर्तमान क्षण हो,श्ण की वर्तमानता, और तुम संतुष्ट होते हो। तब कहीं जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। जहां तुम हो उसी बिन्दु से, उसी क्षण ही, तुम सागर में गिर जाओगे। तुम ब्रह्मांड के साथ एक हो जाओगे।-ओशो”
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