पुराण साहित्य – Puran Literature
पुराण साहित्य में गरूड़ पुराण का प्रमुख स्थान है। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि मष्त्यु के पश्चात् गरूड़ पुराण कराने से जीव को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हो जाती है। गरूड़ पुराण में 19 हजार श्लोक हैं किन्तु वर्तमान में कुल 7 हजार श्लोक ही प्राप्त होते हैं। प्रेत योनि को भोग रहे व्यक्ति के निमित्त गरूड़ पुराण करवाने से उसे आत्मशान्ति प्राप्त होती है और वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाता है।
गरूड़ पुराण में प्रेत योनि एवं नर्क से बचने के उपाय बताये गये हैं। इनमें प्रमुख उपाय दान-दक्षिणा, पिण्ड दान, श्राद्ध कर्म आदि बताये गये हैं। मष्त आत्मा की सद्गति हेतु पिण्ड दानादि एवं श्राद्ध कर्म अत्यन्त आवश्यक हैं और यह उपाय पुत्र के द्वारा अपने मष्तक पिता के लिये है क्योंकि पुत्र ही तर्पण या पिण्ड दान करके पुननामक नर्क से पिता को बचाता है। पुत्र का मुख देखकर पिता पैतष्क ऋण से मुक्त हो जाता है।
मष्त्यु के बाद क्या होता है:-
यह भी पढे – धनुष यज्ञ – bow sacrifice
यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसका उत्तर जानने की इच्छा सभी को होती है और सभी अपने-अपने तरीके से इसका उत्तर भी देते हैं। गरूड़ पुराण भी इसी प्रश्न का उत्तर देता है। मनुष्य अपने जीवन में शुभ, अशुभ, पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक जो भी कर्म करता है गरूड़ पुराण ने उसे तीन भागों में विभक्त किया है। पहली अवस्था में मनुष्य अपने शुभ-अशुभ, अच्छे-बुरे कर्मों को इसी लोक में भोग लेता है। दूसरी अवस्था में मृत्यु के उपरान्त मनुष्य विभिन्न चैरासी लाख योनियों में से किसी एक में अपने कर्म के अनुसार जन्म लेता है। तीसरी अवस्था में वह अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग और नर्क को प्राप्त करता है।
गरूड़ पुराण के अनुसार जो दूसरे की सम्पत्ति को हड़पता है, मित्र से विश्वासघात करता है, ब्राह्मणों की सम्पत्ति से अपना पालन करता है, मन्दिर से धन चुराता है, परायी-स्त्री या पर-पुरूष से व्यभिचार करता है, निर्बल को सताता है, जो अपनी निर्दोष माता, बहन, पुत्री, स्त्री, पुत्रवधु, पुत्र, इन्हें बिना किसी कारण के त्यागता है उसे भयंकर नरक योनि में जाना पड़ता है एवं उसकी कभी मुक्ति नहीं होती है। इस संसार में भी ऐसे पापी व्यक्ति को अनेक रोग एवं कष्ट घेर लेते हैं। व्यापार में हानि, घर में कलह, कष्षि हानि, ज्वर, सन्तान मष्त्यु आदि दुःख से वह जीवन भर दुःखी रहता है। अन्त समय उसका बड़ा कष्टमय होता है तथा मरने के पश्चात वह भयंकर प्रेत योनि में चला जाता है।
शीघ्रंप्रचलदुष्टात्मन् गतोऽसित्वं यमायलं
कुम्भीपाकादिनरकात्वं नेष्यामश्च माचिम् (गरूड़ पुराण)
यह भी पढे – भगवान ब्रह्मा का कुल – Clan of Lord Brahma
दुष्ट एवं पापी व्यक्ति को यमदूत पकड़ कर कुम्भीपाक आदि नरकों में कोड़े मारते हुये, घसीटते हुये लिये चलते हैं। वहाँ यमदूत उसे पाश में बाँध देते हैं। वह भूख-प्यास से अत्यधिक व्याकुल और विकल होकर दुःख सहन करते हुये रोता है। उस समय मष्त्यु काल में दिये दान अथवा स्वजनों द्वारा मष्त्यु के समय दिये पिण्डों को वह खाता है, तब भी उसकी तष्प्ति नहीं होती। पिण्ड दान देने पर भी वह भूख एवं प्यास से व्याकुल लगता है। माँस भक्षण करने वाले व्यक्ति को नरक में वे सभी जीव मिलते हैं, जिनका उसने माँस-भक्षण किया था, और वे वहाँ उसके माँस को नोचते रहते हैं तथा वह कई कल्पों तक प्रेत योनि में भटकता रहता है।
जब ऋषि के श्राप से प्रेरित तक्षक नाग राजा परीक्षित को डसने जा रहा था, तब मार्ग में महर्षि कश्यप से उनकी भेंट हुयी। तक्षक ने ब्राह्मण का वेश बनाया और पूछा, ‘‘महाराज, आप इतनी उतावली में कहाँ जा रहे हो।’’ तब ऋषि कश्यप ने कहा कि ‘‘तक्षक नाग राजा परीक्षित को डसने जा रहा है और मेरे पास ऐसी विद्या है कि मैं राजा परीक्षित को पुनः जीवन दान दे दूँगा।’’ तक्षक ने सुना तो अपना परिचय दिया, कहा ‘‘ऋषिवर, मैं ही तक्षक हूँ और मेरे विष का प्रभाव है कि कोई आज तक मेरे विष से बच नहीं सका।’’ तब ऋषि कश्यप ने कहा कि मैं अपनी मंत्र शक्ति से राजा परीक्षित को फिर से जीवित कर दूँगा। इस पर तक्षक ने कहा, ‘‘यदि ऐसी बात है तो आप इस वृक्ष को हरा-भरा करके दिखाइये, मैं इसे डस कर भष्म कर देता हूँ।’’ ज्यों तक्षक नाग ने हरे-भरे वृक्ष को डंस मारा, त्योंहि वह हरा-भरा वृक्ष विष के दुष्प्रभाव से जल कर राख हो गया। तब ऋषि कश्यप ने अपने कमण्डल से अपने हाथ में जल लेकर वृक्ष की राख मेें छींटा मारा तो वह वृक्ष अपने स्थान पर फिर से हरा-भरा होकर अपने स्थान पर खड़ा हो गया।
तक्षक को बड़ा आश्चर्य हुआ और पूछा, ऋषिवर आप वहाँ किस कारण से जा रहे हैं। इस पर ऋषि कश्यप ने बताया कि मैं राजा परीक्षित के प्राणों की रक्षा करूँगा तो मुझे बहुत-सा धन मिलेगा। तक्षक ने ऋषि कश्यप को संभावना से ज्यादा धन देकर विदा करना चाहा लेकिन ऋषि कश्यप ने यह उचित नहीं समझा और नहीं माने। वहाँ पर तक्षक ने ऋषि कश्यप को गरूड़ पुराण की कथा सुनायी, जिससे ऋषि कश्यप को ज्ञान हुआ कि जिसने जो कर्म किया वह अवश्य ही भोगना पड़ेगा और किसी के बचाने से कोई बच नहीं सकता। इस प्रकार से ऋषि कश्यप बहुत-सा धन लेकर वहीं से विदा हो गये।
वास्तव मे गरूड़ पुराण सुनने से मनुष्य को सच्चे ज्ञान एवं वैराग्य की प्राप्ति होती है और वह बुरे कर्म करने से बचता है तथा जीवन का यथार्थ ज्ञान उसे मिलता है। इस पुराण में महर्षि कश्यप और तक्षक नाग को लेकर एक कथा है।
Note:- इन कहानियों मे प्रयोग की गई सभी तस्वीरों को इंटरनेट से गूगल सर्च और बिंग सर्च से डाउनलोड किया गया है।
Note:-These images are the property of the respective owner. Hindi Nagri doesn’t claim the images.
यह भी पढे –
- काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग – Kashi Vishwanath Jyotirlinga
- तेनाली की कला – Tenali Ki Kala (हिन्दी कहानी / Hindi Kahani)
- विज्ञान और तकनीकी – science and technology
- मारीच और सुबाहु का वध – Killing of Marich and Subahu
- नाग पंचमी – NAG PANCHAMI
सभी कहानियों को पढ़ने के लिए एप डाउनलोड करे/ Download the App for more stories: