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कुतुब मीनार – Qutub Minar

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भारत की दूसरी सबसे बड़ी, आकर्षक और ऐतिहासिक स्मारक कुतुब मीनार, अरबिंद मार्ग, महरौली दिल्ली में स्थित है। यह लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर का उपयोग कर अनूठी स्थापत्य शैली में बनाई गई है। यह माना जाता है कि, मुगलों ने राजपूतों पर अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए इस विजय मीनार का निर्माण कराया था। इसकी दुनिया की प्रसिद्ध मीनारों में गिनती होती है और विश्व धरोहर स्थलों में इसे जोड़ा जाता है। यह 73 मीटर लम्बी, 14.3 मीटर आधार व्यास, 2.7 मीटर शीर्ष व्यास, 379 सीढ़ियाँ और पाँच मंजिल वाली मीनार है।

कुतुब मीनार का निर्माण कुतुब-उद्दीन ऐबक के द्वारा शुरू कराया गया था हालांकि, इसे इल्तुतमिश द्वारा पूरा किया गया। इस मीनार का निर्माण कार्य 1200 ईस्वी में पूरा हुआ था। यह मुगल स्थापत्य कला की सबसे महान कृतियों में से एक है, जो सुन्दर नक्काशी के साथ बहुत सी मंजिलों की इमारत है। यह आकर्षक पर्यटन स्थलों में से एक है, जो हर साल एक बड़ी भीड़ को दुनिया भर के कोनों से इसे देखने के लिए आकर्षित करती है। इसने भूकम्प के कारण बहुत से विनाशों को झेला है हालांकि, उसी समय इसे शासकों द्वारा पुनर्निर्मित भी कराया गया है। फिरोज शाह ने इसकी ऊपरी दो मंजिलों का पुनर्निर्माण कराया था, जो भूकम्प में नष्ट हो गई थी। एक अन्य पुनर्निर्माण का कार्य सिकन्दर लोदी के द्वारा 1505 में और मेजर स्मिथ के द्वारा 1794 में मीनार के नष्ट हुए भागों में कराया गया था। यह सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 6 बजे खुलती है, और शाम 6 बजे बन्द होती है।

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मीनार का निर्माण बहुत समय पहले लाल बलुआ पत्थरों और संगमरमर का प्रयोग करके किया गया था। इसमें बहुत से बाहरी किनारे और बेलनाकार या घुमावदार रास्ते हैं और इसकी बालकनियाँ इसकी मंजिलों को अलग करती हैं। कुतुब मीनार की पहली तीन मंजिलों का निर्माण लाल बलुआ पत्थरों का प्रयोग करके हुआ है हालांकि, चौथी और पाँचवीं मंजिल का निर्माण संगमरमर और बलुआ पत्थरों से हुआ है। इस मीनार के आधार में एक कुव्वत-उल-इस्लाम (जिसे भारत में निर्मित पहली मस्जिद माना जाता है) मस्जिद है। कुतुब परिसर में 7 मीटर की ऊँचाई वाला एक ब्राह्मी शिलालेख के साथ लौह स्तंभ है। मीनार की दिवारों पर कुरान (मुस्लिमों का पवित्र पौराणिक शास्त्र) की बहुत सी आयतें भी लिखी गई हैं। यह देवनागिरी और अरेबिक रुप में लिखे अपने इतिहास को भी रखता है।

यह पर्यटकों के आकर्षण का प्रसिद्ध स्मारक है, जिसके आस-पास अन्य स्मारक भी हैं। प्राचीन समय से ही, यह माना जाता है कि, यदि कोई व्यक्ति इसकी ओर पीठ करके इसके सामने खड़े होकर अपने हाथों से इस (लौह स्तम्भ) के चक्कर लगाता है, तो उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। हर साल दुनिया भर के कोनों से, पर्यटक यहाँ इस ऐतिहासिक और अद्भुत स्मारक की सुन्दरता को देखने के लिए आते हैं।

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