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संतजन – कबीर – दोहा
दोहा – 1
कहे कबीर हम ब्याहि चले हैं, पुरुख एक अबिनासी
अर्थ :कबीर एक अमर अविनासी पुरुष को अपना पति मानते हैं।
यहॉं कबीर का ईश्वर के साथ दाम्पत्य प्रेम दिखाया हैं।
यहॉं कबीर का ईश्वर के साथ दाम्पत्य प्रेम दिखाया हैं।
दोहा – 2
भग भोगे भग उपजे,भग से बचे ना कोइ
कहे कबीर भग ते बचे भक्त कहाबै सोऐ।
कहे कबीर भग ते बचे भक्त कहाबै सोऐ।
अर्थ :भग भोग उत्पन्न करता है। इससे वचना अति कठिन है।
जो व्यक्ति इससे अपनी रक्षा करता है वस्तुतः वही भक्त हैं
भग का अर्थ कामना,इच्छा, भोग से हैं।
जो व्यक्ति इससे अपनी रक्षा करता है वस्तुतः वही भक्त हैं
भग का अर्थ कामना,इच्छा, भोग से हैं।
दोहा – 3
आशा तजि माया तजी मोह तजी और मन
हरख,शोक निंदा तजइ कहै कबीर संत जान।
हरख,शोक निंदा तजइ कहै कबीर संत जान।
अर्थ :जो व्यक्ति आशा, माया और मोह को त्याग देता है
तथा जिसने सुख, शोक निन्दा का परित्याग करदिया है
कबीर के कथाअनुसार वही सत्य पर है।
तथा जिसने सुख, शोक निन्दा का परित्याग करदिया है
कबीर के कथाअनुसार वही सत्य पर है।
दोहा – 4
साधु आबत देखि के चरन लागो धाऐ
क्या जानो इस वेश मे हरि आऐ मिली जाऐ।
क्या जानो इस वेश मे हरि आऐ मिली जाऐ।
अर्थ :संत व्यक्ति को आते देखकर दौड़ के उनके चरणों का स्पर्श करें।
क्या मालूम कि एसी में प्रभु स्वयं आपसे मिलने आये हों।
क्या मालूम कि एसी में प्रभु स्वयं आपसे मिलने आये हों।
दोहा – 5
साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहि
धन का भूखा जो फिरऐ सो तो साधू नाहि।
धन का भूखा जो फिरऐ सो तो साधू नाहि।
अर्थ :साधु भाव का भूखा होता है, धन का भूखा नहीं होता
जो धन की चिंता में धूमता है वह साधु नहीं है।
जो धन की चिंता में धूमता है वह साधु नहीं है।
दोहा – 6
साधु सेवा जा घर नहीं सतगूरु पुजा नाहि
सो घर मरघट जानीऐ भूत बसाइ तेही माहि।
सो घर मरघट जानीऐ भूत बसाइ तेही माहि।
अर्थ :जिस घर में लोग सांत की सेवा और सतगुरु की पूजा नहीं करते
उस घर को श्मसान समझना चाहिये और वहॉं भुत प्रेत वास कहता हैं।
उस घर को श्मसान समझना चाहिये और वहॉं भुत प्रेत वास कहता हैं।
दोहा – 7
जिनके पांचो बश नहीं तिनते साहिब दूर।
साधु सोइ सराहिये पांचो राखिये चूर।
साधु सोइ सराहिये पांचो राखिये चूर।
अर्थ :जिस संत ने अपने पॉंच विषय इच्छाओं का शमन करलिया है-वह प्रशंसनीय है।
जिसने अपने पॉंचो इच्छाओं का दमन नहीं किया-प्रभु उनके बहुत दूर है।
जिसने अपने पॉंचो इच्छाओं का दमन नहीं किया-प्रभु उनके बहुत दूर है।
दोहा – 8
साधु सोए साराहिऐ,कनक कामिनी त्याग
और कछु इक्छा नहीं, निश दिन रहे अनुराग
और कछु इक्छा नहीं, निश दिन रहे अनुराग
अर्थ :जिस साधु ने धन एंव स्त्री सुख का परित्याग कर दिया वह प्रशंनीय हैं।
उन्हें अन्य कोई इच्छा नहीं रहती तथा वे सर्वदा ईश्वर की भक्ति में मगन रहते हैं।
उन्हें अन्य कोई इच्छा नहीं रहती तथा वे सर्वदा ईश्वर की भक्ति में मगन रहते हैं।
दोहा – 9
हरि सेती हरिजन बरै जाने सन्त सूजान
सेतु बांधि रघुबर चले किद गऐ हनूमान।
सेतु बांधि रघुबर चले किद गऐ हनूमान।
अर्थ :एक भक्ति प्रमात्मा से महान है। राम भगवान ने पुल बनाकर समुद्र पार किया
पर हनुमान ने एक छलांग में उसे पार कर लिया।
पर हनुमान ने एक छलांग में उसे पार कर लिया।
दोहा – 10
हरि सो तु मति हेत करु कर हरिजान सो हेत
माल मुलक हरि देत है हरिजन हरि ही देत।
माल मुलक हरि देत है हरिजन हरि ही देत।
अर्थ :हमें ईश्वर से नहीं अपितु ईश्वर के भक्तों से प्रेम करना चाहिये।
ईश्वर हमें नशवान धन-संपत्ति देता है पर भक्त हमें ईश्वर हीं समर्पित कर देता है।
ईश्वर हमें नशवान धन-संपत्ति देता है पर भक्त हमें ईश्वर हीं समर्पित कर देता है।
दोहा – 11
सो दिन गया अकाज में संगत भइ ना संत
प्रेम बिना पशु जीवना भाव बिना भटकन्त।
प्रेम बिना पशु जीवना भाव बिना भटकन्त।
अर्थ :वह दिन वरूर्थ गया जिस दिन संत से मिलय नहीं हो पाया।
प्रेम बिना यह जीवन प्शु समान है जो किसी भाव के भटक रहा है।
प्रेम बिना यह जीवन प्शु समान है जो किसी भाव के भटक रहा है।
दोहा – 12
साधु मिलेय साहिब मिलये अंतर रही ना रेख
मनसा वाचा करमना साधु साहिब ऐक
मनसा वाचा करमना साधु साहिब ऐक
अर्थ :साधु और परमरत्मर का मिलन एक ही है। इन दोनो में तनिक भी अन्तर नहीं है
मनसा,वचा और कर्मणा संत एंव परमात्मर एक है।
मनसा,वचा और कर्मणा संत एंव परमात्मर एक है।
दोहा – 13
साधु बड़े संसार में हरि ते अधिका सोये
बिन इच्छा पूरन करे साधु हरि नहीं दोये।
बिन इच्छा पूरन करे साधु हरि नहीं दोये।
अर्थ :संसार में साधु का स्थान बड़ा है। वह परमात्मा से भी अधिक हैं।
बिना इच्छा किये संत सभी चीजें पूर्ण करते हैं। साधु एंव परमात्मा में कोई अन्तर नहीं है।
बिना इच्छा किये संत सभी चीजें पूर्ण करते हैं। साधु एंव परमात्मा में कोई अन्तर नहीं है।
दोहा – 14
साधु नदी जल प्रेम रस ताह परच्छा लइ अंग
कहे कबीर निरमल भया हरि भक्तन के संग।
कहे कबीर निरमल भया हरि भक्तन के संग।
अर्थ :साधु प्रेम रस जल के नदी समान हैं। हमें उससे अपने मन एंव शरीर धोना चाहिऐ।
प्रभु के भकतों के संग कबीर कर निर्मल एंव पवित्र हो जाता है।
प्रभु के भकतों के संग कबीर कर निर्मल एंव पवित्र हो जाता है।
दोहा – 15
सरवर तरुबर संतजन चौथा बरसे मेह
परमारथ के कारने चारो धरि देह।
परमारथ के कारने चारो धरि देह।
अर्थ :एक सरोवर वृक्ष संत व्यक्ति तथा चौथा वर्षा वाले वादल
परर्माथ हेत हीं जन्म लेकर शरीर धारन करते हैं।
परर्माथ हेत हीं जन्म लेकर शरीर धारन करते हैं।
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