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शिष्टाचार – Shistachar

आज हिन्दी नगरी आपके लिए लाया है एक नई कहानी शिष्टाचार / Shistachar।

शिष्टाचार हमारे जीवन का मूल है। जिस तरह शिक्षा हमारे जीवन मे महत्वपूर्ण है उसी तरह शिष्टाचार भी बहुत महत्वपूर्ण है। शिष्टाचार हमे सिखाता है की हमे दूसरों के साथ कैसा व्यवहार कर्ण चाहिए।

यह कहानी स्वामी विवेकानंद जी की है जिन्होंने अपने शिष्टाचार से अमेरिका मे जाकर अपनी बातों से सबको अपनी ओर आकर्षित कर लिया ।

हमे पूरा भरोसा है कि यह कहानी आपको सभी के साथ चाहे कोई छोटा हो या बड़ा सबके साथ अच्छा व्यवहार करने की प्रेरणा देगा ।

शिष्टाचार

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि–विश्व में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते हैं, क्योंकि उनमें समय पर साहस का संचार नही हो पाता और वे भयभीत हो उठते हैं।

स्वामीजी की कही सभी बातें हमें उनके जीवन काल की घटनाओं में सजीव दिखाई देती हैं।

उपरोक्त लिखे वाक्य को शिकागो की एक घटना ने सजीव कर दिया, किस तरह विपरीत परिस्थिती में भी उन्होने भारत को गौरवान्वित किया।

हमें बहुत गर्व होता है कि हम इस देश के निवासी हैं जहाँ विवेकानंद जी जैसे महान संतो का मार्ग-दशर्न मिला। आज मैं आपके साथ शिकागो धर्म सम्मेलन से सम्बंधित एक छोटा सा वृत्तान्त बता रही हूँ जो भारतीय संस्कृति में समाहित शिष्टाचार की ओर इंगित करता है| \n\n 1893 में शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन चल रहा था। स्वामी विवेकानंद भी उसमें बोलने के लिए गये हुए थे।

11 सितंबर को स्वामी जी का व्याखान होना था।

मंच पर ब्लैक बोर्ड पर लिखा हुआ था- हिन्दू धर्म – मुर्दा धर्म।

कोई साधारण व्यक्ति इसे देखकर क्रोधित हो सकता था , पर स्वामी जी भला ऐसा कैसे कर सकते थे|

वह बोलने के लिये खङे हुए और उन्होने सबसे पहले (अमरीकावासी बहिनों और भाईयों) शब्दों के साथ श्रोताओं को संबोधित किया।

स्वामीजी के शब्द ने जादू कर दिया, पूरी सभा ने करतल ध्वनि से उनका स्वागत किया।

इस हर्ष का कारण था, स्त्रियों को पहला स्थान देना।

स्वामी जी ने सारी वसुधा को अपना कुटुबं मानकर सबका स्वागत किया था।

भारतीय संस्कृति में निहित शिष्टाचार का यह तरीका किसी को न सूझा था।

इस बात का अच्छा प्रभाव पङा। श्रोता मंत्र मुग्ध उनको सुनते रहे, निर्धारित 5 मिनट कब बीत गया पता ही न चला।

अध्यक्ष कार्डिनल गिबन्स ने और आगे बोलने का अनुरोध किया। स्वामीजी 20 मिनट से भी अधिक देर तक बोलते रहे|

स्वामीजी की धूम सारे अमेरिका में मच गई। देखते ही देखते हजारों लोग उनके शिष्य बन गए।

और तो और, सम्मेलन में कभी शोर मचता तो यह कहकर श्रोताओं को शान्त कराया जाता कि यदि आप चुप रहेंगे तो स्वामी विवेकानंद जी का व्याख्यान सुनने का अवसर दिया जायेगा। सुनते ही सारी जनता शान्त हो कर बैठ जाती।

अपने व्याख्यान से स्वामीजी ने यह सिद्ध कर दिया कि हिन्दू धर्म भी श्रेष्ठ है, जिसमें सभी धर्मो को अपने अंदर समाहित करने की क्षमता है।

भारतिय संसकृति, किसी की अवमानना या निंदा नही करती। इस तरह स्वामी विवेकानंद जी ने सात समंदर पार भारतीय संसकृति की ध्वजा फहराई।

सत्य कथन

एक आदमी का शिष्टाचार एक दर्पण है जिसमें वह आपनी छवि दिखाता है।

A man’s manners are a mirror in which he shows his portrait.