~Advertisement ~

गुणत्रयविभागयोग

Yoga through Understanding the Three Modes of Material Nature

The fourteenth chapter of the Bhagavad Gita is “Gunatraya Vibhaga Yoga”. In this chapter, Krishna reveals the three guans (modes) of the material nature – goodness, passion and ignorance which everything in the material existence is influenced by. He further explains the essential characteristics of each of these modes, their cause and how they influence a living entity affected by them. He then reveals the various characteristics of the persons who have gone beyond these guans. The chapter ends with Krishna reminding us of the power of pure devotion to God and how attachment to God can help us transcend these guans.

गुणत्रय विभाग योग

भगवद गीता का चौदहवा अध्याय गुणत्रयविभागयोग है। इस अध्याय में, कृष्ण भौतिक प्रकृति के तीन गुणों का वर्णन करते हैं जिनसे भौतिक संसार में सब कुछ प्रभावित होता है – अच्छाई, लालसा और अज्ञान। आगे वह इन तीनों गुणों के प्रधान अभिलक्षणों अथवा कारणों का वर्णन करते हैं और बताते हैं कि कैसे ये तीनों गुण मनुष्य को प्रभावित करते हैं। फिर वह ऐसे व्यक्तियों की विभिन्न विशेषताओं का वर्णन करते हैं जो कि इन गुणों पर जीत पा चुके हैं। इस अध्याय के अंत में कृष्ण हमें सच्ची भक्ति कि शक्ति का स्मरण कराते हैं और बताते हैं की हम कैसे भगवन के साथ जुड़ कर इन गुणों को पार कर सकते हैं।

Bhagavad Gita

अध्याय 14 – श्लोक 7

श्लोक 7 - Verse 7रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम्।तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम्।।14.7।।rajo rāgātmakaṁ viddhi tṛiṣhṇā-saṅga-samudbhavam tan nibadhnāti kaunteya karma-saṅgena dehinamशब्दों का अर्थrajaḥ—mode of passion; rāga-ātmakam—of the...
Bhagavad Gita

अध्याय 14 – श्लोक 6

श्लोक 6 - Verse 6तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्।सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ।।14.6।।tatra sattvaṁ nirmalatvāt prakāśhakam anāmayam sukha-saṅgena badhnāti jñāna-saṅgena chānaghaशब्दों का अर्थtatra—amongst these; sattvam—mode of goodness; nirmalatvāt—being...
Bhagavad Gita

अध्याय 14 – श्लोक 5

श्लोक 5 - Verse 5सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसंभवाः।निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्।।14.5।।sattvaṁ rajas tama iti guṇāḥ prakṛiti-sambhavāḥ nibadhnanti mahā-bāho dehe dehinam avyayamशब्दों का अर्थsattvam—mode of...
Bhagavad Gita

अध्याय 14 – श्लोक 4

श्लोक 4 - Verse 4सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः।तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता।।14.4।।sarva-yoniṣhu kaunteya mūrtayaḥ sambhavanti yāḥ tāsāṁ brahma mahad yonir ahaṁ bīja-pradaḥ pitāशब्दों का...
Bhagavad Gita

अध्याय 14 – श्लोक 3

श्लोक 3 - Verse 3मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन् गर्भं दधाम्यहम्।संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत।।14.3।।mama yonir mahad brahma tasmin garbhaṁ dadhāmy aham sambhavaḥ sarva-bhūtānāṁ tato bhavati bhārataशब्दों...
Bhagavad Gita

अध्याय 14 – श्लोक 2

श्लोक 2 - Verse 2इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः।सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च।।14.2।।idaṁ jñānam upāśhritya mama sādharmyam āgatāḥ sarge ’pi nopajāyante pralaye na vyathanti chaशब्दों...
Bhagavad Gita

अध्याय 14 – श्लोक 1

श्लोक 1 - Verse 1श्री भगवानुवाचपरं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः।।14.1।।śhrī-bhagavān uvācha paraṁ bhūyaḥ pravakṣhyāmi jñānānāṁ jñānam uttamam yaj jñātvā munayaḥ sarve...