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ध्यानयोग

Path of Meditation

The sixth chapter of the Bhagavad Gita is “Dhyana Yoga”. In this chapter, Krishna reveals the “Yoga of Meditation” and how to practise this Yoga. He discusses the role of action in preparing for Meditation, how performing duties in devotion purifies one’s mind and heightens one’s spiritual consciousness. He explains in detail the obstacles that one faces when trying to control their mind and the exact methods by which one can conquer their mind. He reveals how one can focus their mind on Paramatma and unite with the God.

ध्यान का मार्ग

भगवद गीता का छठा अध्याय ध्यान योग है। इस अध्याय में कृष्ण बताते हैं कि हम किस प्रकार ध्यान योग का अभ्यास कर सकते हैं। वे ध्यान की तैयारी में कर्म की भूमिका पर चर्चा करते हैं अथवा बताते हैं कि किस प्रकार भक्ति में किया गए कर्म मनुष्ये के मन को शुद्ध करते हैं और उसकी आध्यात्मिक चेतना की वृद्धि में सहायता करते हैं। वे उन बाधाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं जो कि मनुष्य को अपने दिमाग को नियंत्रित करते समय झेलनी पड़ती हैं अथवा उन सटीक तरीकों का वर्णन करते हैं जिनसे एक मनुष्य अपने दिमाग को जीत सकता है। उन्होंने प्रकट किया की हम किस प्रकार परमात्मा पर अपना ध्यान केंद्रित करके भगवान के साथ एक हो सकते हैं।

Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 47

श्लोक 47 - Verse 47योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना। श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।।6.47।।yoginām api sarveṣhāṁ mad-gatenāntar-ātmanā śhraddhāvān bhajate yo māṁ sa me yuktatamo mataḥशब्दों...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 46

श्लोक 46 - Verse 46तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः। कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन।।6.46।।tapasvibhyo ’dhiko yogī jñānibhyo ’pi mato ’dhikaḥ karmibhyaśh chādhiko yogī tasmād yogī bhavārjunaशब्दों का अर्थtapasvibhyaḥ—than the...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 45

श्लोक 45 - Verse 45प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः। अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम्।।6.45।।prayatnād yatamānas tu yogī sanśhuddha-kilbiṣhaḥ aneka-janma-sansiddhas tato yāti parāṁ gatimशब्दों का अर्थprayatnāt—with great effort; yatamānaḥ—endeavoring;...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 44

श्लोक 44 - Verse 44पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः। जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते।।6.44।।pūrvābhyāsena tenaiva hriyate hyavaśho ’pi saḥ jijñāsur api yogasya śhabda-brahmātivartateशब्दों का अर्थpūrva—past; abhyāsena—discipline; tena—by...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 43

श्लोक 43 - Verse 43तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम्। यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन।।6.43।।tatra taṁ buddhi-sanyogaṁ labhate paurva-dehikam yatate cha tato bhūyaḥ sansiddhau kuru-nandanaशब्दों...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 42

श्लोक 42 - Verse 42अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्। एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम्।।6.42।।atha vā yoginām eva kule bhavati dhīmatām etad dhi durlabhataraṁ loke janma...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 41

श्लोक 41 - Verse 41प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः। शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते।।6.41।।prāpya puṇya-kṛitāṁ lokān uṣhitvā śhāśhvatīḥ samāḥ śhuchīnāṁ śhrīmatāṁ gehe yoga-bhraṣhṭo’bhijāyateशब्दों का अर्थprāpya—attain; puṇya-kṛitām—of...
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अध्याय 6 – श्लोक 40

श्लोक 40 - Verse 40श्री भगवानुवाच पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते। नहि कल्याणकृत्कश्िचद्दुर्गतिं तात गच्छति।।6.40।।śhrī bhagavān uvācha pārtha naiveha nāmutra vināśhas tasya vidyate na hi kalyāṇa-kṛit kaśhchid...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 39

श्लोक 39 - Verse 39एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः। त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते।।6.39।।etan me sanśhayaṁ kṛiṣhṇa chhettum arhasyaśheṣhataḥ tvad-anyaḥ sanśhayasyāsya chhettā na hyupapadyateशब्दों का अर्थetat—this;...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 38

श्लोक 38 - Verse 38कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति। अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि।।6.38।।kachchin nobhaya-vibhraṣhṭaśh chhinnābhram iva naśhyati apratiṣhṭho mahā-bāho vimūḍho brahmaṇaḥ pathiशब्दों का अर्थkachchit—whether; na—not; ubhaya—both; vibhraṣhṭaḥ—deviated...