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ध्यानयोग

Path of Meditation

The sixth chapter of the Bhagavad Gita is “Dhyana Yoga”. In this chapter, Krishna reveals the “Yoga of Meditation” and how to practise this Yoga. He discusses the role of action in preparing for Meditation, how performing duties in devotion purifies one’s mind and heightens one’s spiritual consciousness. He explains in detail the obstacles that one faces when trying to control their mind and the exact methods by which one can conquer their mind. He reveals how one can focus their mind on Paramatma and unite with the God.

ध्यान का मार्ग

भगवद गीता का छठा अध्याय ध्यान योग है। इस अध्याय में कृष्ण बताते हैं कि हम किस प्रकार ध्यान योग का अभ्यास कर सकते हैं। वे ध्यान की तैयारी में कर्म की भूमिका पर चर्चा करते हैं अथवा बताते हैं कि किस प्रकार भक्ति में किया गए कर्म मनुष्ये के मन को शुद्ध करते हैं और उसकी आध्यात्मिक चेतना की वृद्धि में सहायता करते हैं। वे उन बाधाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं जो कि मनुष्य को अपने दिमाग को नियंत्रित करते समय झेलनी पड़ती हैं अथवा उन सटीक तरीकों का वर्णन करते हैं जिनसे एक मनुष्य अपने दिमाग को जीत सकता है। उन्होंने प्रकट किया की हम किस प्रकार परमात्मा पर अपना ध्यान केंद्रित करके भगवान के साथ एक हो सकते हैं।

Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 27

श्लोक 27 - Verse 27प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम्। उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम्।।6.27।।praśhānta-manasaṁ hyenaṁ yoginaṁ sukham uttamam upaiti śhānta-rajasaṁ brahma-bhūtam akalmaṣhamशब्दों का अर्थpraśhānta—peaceful; manasam—mind; hi—certainly; enam—this; yoginam—yogi;...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 26

श्लोक 26 - Verse 26यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्। ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।।6.26।।yato yato niśhcharati manaśh chañchalam asthiram tatas tato niyamyaitad ātmanyeva vaśhaṁ nayetशब्दों का अर्थyataḥ...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 25

श्लोक 25 - Verse 25शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया। आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत्।।6.25।।śhanaiḥ śhanair uparamed buddhyā dhṛiti-gṛihītayā ātma-sansthaṁ manaḥ kṛitvā na kiñchid api chintayetशब्दों...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 24

श्लोक 24 - Verse 24सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः। मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः।।6.24।।saṅkalpa-prabhavān kāmāns tyaktvā sarvān aśheṣhataḥ manasaivendriya-grāmaṁ viniyamya samantataḥशब्दों का अर्थsaṅkalpa—a resolve; prabhavān—born of; kāmān—desires; tyaktvā—having abandoned; sarvān—all;...
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अध्याय 6 – श्लोक 23

श्लोक 23 - Verse 23तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम्। स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा।।6.23।।taṁ vidyād duḥkha-sanyoga-viyogaṁ yogasaṅjñitam sa niśhchayena yoktavyo yogo ’nirviṇṇa-chetasāशब्दों का अर्थtam—that; vidyāt—you should know;...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 22

श्लोक 22 - Verse 22यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः। यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते।।6.22।।yaṁ labdhvā chāparaṁ lābhaṁ manyate nādhikaṁ tataḥ yasmin sthito na...
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अध्याय 6 – श्लोक 21

श्लोक 21 - Verse 21सुखमात्यन्तिकं यत्तद्बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम्। वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वतः।।6.21।।sukham ātyantikaṁ yat tad buddhi-grāhyam atīndriyam vetti yatra na chaivāyaṁ sthitaśh chalati tattvataḥशब्दों का...
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अध्याय 6 – श्लोक 20

श्लोक 20 - Verse 20यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया। यत्र चैवात्मनाऽऽत्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति।।6.20।।yatroparamate chittaṁ niruddhaṁ yoga-sevayā yatra chaivātmanātmānaṁ paśhyann ātmani tuṣhyatiशब्दों का अर्थyatra—when; uparamate—rejoice inner joy;...
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अध्याय 6 – श्लोक 19

श्लोक 19 - Verse 19यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता। योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः।।6.19।।yathā dīpo nivāta-stho neṅgate sopamā smṛitā yogino yata-chittasya yuñjato yogam ātmanaḥशब्दों का...
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अध्याय 6 – श्लोक 18

श्लोक 18 - Verse 18यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते। निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा।।6.18।।yadā viniyataṁ chittam ātmanyevāvatiṣhṭhate niḥspṛihaḥ sarva-kāmebhyo yukta ityuchyate tadāशब्दों का अर्थyadā—when; viniyatam—fully controlled; chittam—the...