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ध्यानयोग

Path of Meditation

The sixth chapter of the Bhagavad Gita is “Dhyana Yoga”. In this chapter, Krishna reveals the “Yoga of Meditation” and how to practise this Yoga. He discusses the role of action in preparing for Meditation, how performing duties in devotion purifies one’s mind and heightens one’s spiritual consciousness. He explains in detail the obstacles that one faces when trying to control their mind and the exact methods by which one can conquer their mind. He reveals how one can focus their mind on Paramatma and unite with the God.

ध्यान का मार्ग

भगवद गीता का छठा अध्याय ध्यान योग है। इस अध्याय में कृष्ण बताते हैं कि हम किस प्रकार ध्यान योग का अभ्यास कर सकते हैं। वे ध्यान की तैयारी में कर्म की भूमिका पर चर्चा करते हैं अथवा बताते हैं कि किस प्रकार भक्ति में किया गए कर्म मनुष्ये के मन को शुद्ध करते हैं और उसकी आध्यात्मिक चेतना की वृद्धि में सहायता करते हैं। वे उन बाधाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं जो कि मनुष्य को अपने दिमाग को नियंत्रित करते समय झेलनी पड़ती हैं अथवा उन सटीक तरीकों का वर्णन करते हैं जिनसे एक मनुष्य अपने दिमाग को जीत सकता है। उन्होंने प्रकट किया की हम किस प्रकार परमात्मा पर अपना ध्यान केंद्रित करके भगवान के साथ एक हो सकते हैं।

Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 7

श्लोक 7 - Verse 7जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः। शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।।6.7।।jitātmanaḥ praśhāntasya paramātmā samāhitaḥ śhītoṣhṇa-sukha-duḥkheṣhu tathā mānāpamānayoḥशब्दों का अर्थjita-ātmanaḥ—one who has conquered one’s mind; praśhāntasya—of...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 6

श्लोक 6 - Verse 6बन्धुरात्माऽऽत्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः। अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्।।6.6।।bandhur ātmātmanas tasya yenātmaivātmanā jitaḥ anātmanas tu śhatrutve vartetātmaiva śhatru-vatशब्दों का अर्थbandhuḥ—friend; ātmā—the mind; ātmanaḥ—for...
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अध्याय 6 – श्लोक 5

श्लोक 5 - Verse 5उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।6.5।।uddhared ātmanātmānaṁ nātmānam avasādayet ātmaiva hyātmano bandhur ātmaiva ripur ātmanaḥशब्दों का अर्थuddharet—elevate; ātmanā—through the mind; ātmānam—the...
Bhagavad Gita

अध्याय 6 – श्लोक 4

श्लोक 4 - Verse 4यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते। सर्वसङ्कल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते।।6.4।।yadā hi nendriyārtheṣhu na karmasv-anuṣhajjate sarva-saṅkalpa-sannyāsī yogārūḍhas tadochyateशब्दों का अर्थyadā—when; hi—certainly; na—not; indriya-artheṣhu—for sense-objects; na—not;...
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अध्याय 6 – श्लोक 3

श्लोक 3 - Verse 3आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते। योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते।।6.3।।ārurukṣhor muner yogaṁ karma kāraṇam uchyate yogārūḍhasya tasyaiva śhamaḥ kāraṇam uchyateशब्दों का अर्थārurukṣhoḥ—a beginner; muneḥ—of...
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अध्याय 6 – श्लोक 2

श्लोक 2 - Verse 2यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव। न ह्यसंन्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन।।6.2।।yaṁ sannyāsam iti prāhur yogaṁ taṁ viddhi pāṇḍava na hyasannyasta-saṅkalpo yogī...
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अध्याय 6 – श्लोक 1

श्लोक 1 - Verse 1श्री भगवानुवाच अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः। स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः।।6.1।।śhrī bhagavān uvācha anāśhritaḥ karma-phalaṁ kāryaṁ karma...