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ज्ञानविज्ञानयोग

Self-Knowledge and Enlightenment

The seventh chapter of the Bhagavad Gita is “Gyaan Vigyana Yoga”. In this chapter, Krishna reveals that he is the Supreme Truth, the principal cause and the sustaining force of everything. He reveals his illusionary energy in this material world called Maya, which is very difficult to overcome but those who surrender their minds unto Him attain Him easily. He also describes the four types of people who surrender to Him in devotion and the four kinds that don’t. Krishna confirms that He is the Ultimate Reality and those who realize this Truth reach the pinnacle of spiritual realization and unite with the Lord.

 

आत्म-ज्ञान और आत्मज्ञान

भगवद गीता का सातवा अध्याय ज्ञानविज्ञानयोग है। इस अध्याय में कृष्ण बताते हैं कि वह सर्वोच्च सत्य हैं एवं हर चीज़ के मुख्य कारण हैं। वे इस भौतिक संसार में अपनी भ्रामक ऊर्जा – योगमाया के बारे में बताते हैं अथवा प्रकट करते हैं कि इस ऊर्जा पर काबू पाना साधारण मनुष्य के लिए कितना कठिन है परन्तु जो मनुष्य अपने मन को परमात्मा में लीन कर लेते हैं वे इस माया को जीत लेते हैं और उन्हे आसानी से प्राप्त कर लेते हैं। वे उन चार प्रकार के लोगों का भी वर्णन करते हैं जो भक्ति में लीन होकर उनको आत्मसमर्पण करते हैं अथवा वे चार प्रकार जो नहीं करते। कृष्ण पुष्टि करते हैं कि वे ही परम सत्य हैं। जो लोग इस सत्य को समझ लेते हैं, वे आध्यात्मिक प्राप्ति के शिखर पर पहुंच जाते हैं और भगवान को प्राप्त कर लेते हैं।

Bhagavad Gita

अध्याय 7 – श्लोक 20

श्लोक 20 - Verse 20कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः। तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया।।7.20।।kāmais tais tair hṛita-jñānāḥ prapadyante ’nya-devatāḥ taṁ taṁ niyamam āsthāya prakṛityā niyatāḥ svayāशब्दों का...
Bhagavad Gita

अध्याय 7 – श्लोक 19

श्लोक 19 - Verse 19बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते। वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।।7.19।।bahūnāṁ janmanām ante jñānavān māṁ prapadyate vāsudevaḥ sarvam iti sa mahātmā su-durlabhaḥशब्दों का...
Bhagavad Gita

अध्याय 7 – श्लोक 18

श्लोक 18 - Verse 18उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्। आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्।।7.18।।udārāḥ sarva evaite jñānī tvātmaiva me matam āsthitaḥ sa...
Bhagavad Gita

अध्याय 7 – श्लोक 17

श्लोक 17 - Verse 17तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्ितर्विशिष्यते। प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः।।7.17।।teṣhāṁ jñānī nitya-yukta eka-bhaktir viśhiṣhyate priyo hi jñānino ’tyartham ahaṁ sa...
Bhagavad Gita

अध्याय 7 – श्लोक 16

श्लोक 16 - Verse 16चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन। आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।।7.16।।chatur-vidhā bhajante māṁ janāḥ sukṛitino ’rjuna ārto jijñāsur arthārthī jñānī cha bharatarṣhabhaशब्दों...
Bhagavad Gita

अध्याय 7 – श्लोक 15

श्लोक 15 - Verse 15न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः। माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः।।7.15।।na māṁ duṣhkṛitino mūḍhāḥ prapadyante narādhamāḥ māyayāpahṛita-jñānā āsuraṁ bhāvam āśhritāḥशब्दों का अर्थna—not; mām—unto...
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अध्याय 7 – श्लोक 14

श्लोक 14 - Verse 14दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया। मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।।7.14।।daivī hyeṣhā guṇa-mayī mama māyā duratyayā mām eva ye prapadyante...
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अध्याय 7 – श्लोक 13

श्लोक 13 - Verse 13त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत्। मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम्।।7.13।।tribhir guṇa-mayair bhāvair ebhiḥ sarvam idaṁ jagat mohitaṁ nābhijānāti māmebhyaḥ param avyayamशब्दों का अर्थtribhiḥ—by three;...
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अध्याय 7 – श्लोक 12

श्लोक 12 - Verse 12ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये। मत्त एवेति तान्विद्धि नत्वहं तेषु ते मयि।।7.12।।ye chaiva sāttvikā bhāvā rājasās tāmasāśh cha ye matta...
Bhagavad Gita

अध्याय 7 – श्लोक 11

श्लोक 11 - Verse 11बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्। धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ।।7.11।।balaṁ balavatāṁ chāhaṁ kāma-rāga-vivarjitam dharmāviruddho bhūteṣhu kāmo ’smi bharatarṣhabhaशब्दों का अर्थbalam—strength; bala-vatām—of the strong;...