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राजविद्याराजगुह्ययोग

Yoga through the King of Sciences

The ninth chapter of the Bhagavad Gita is “Raja Vidya Yoga”. In this chapter, Krishna explains that He is Supreme and how this material existence is created, maintained and destroyed by His Yogmaya and all beings come and go under his supervision. He reveals the Role and the Importance of Bhakti (transcendental devotional service) towards our Spiritual Awakening. In such devotion, one must live for the God, offer everything that he possesses to Him and do everything for Him only. One who follows such devotion becomes free from the bonds of this material world and unites with the Lord.

राजा विद्या योग

भगवद गीता का नौवां अध्याय राजविद्याराजगुह्ययोग है। इस अध्याय में, कृष्ण समझाते हैं कि वह सर्वोच्च हैं और यह भौतिक संसार उनकी योगमाया द्वारा रचित और खंडित होता रहता है अथवा मनुष्य उनकी देखरेख में आते जाते रहते हैं। वे हमारी आध्यात्मिक जागरूकता के प्रति भक्ति की भूमिका और महत्व का वर्णन करते हैं। ऐसी भक्ति में मनुष्य को भगवन के लिए ही जीवित रहना चाहिए, अपना सर्वस्व भगवन को ही समर्पित करना चाहिए और सबकुछ भगवन के लिए ही करना चाहिए। जो इस प्रकार की भक्ति का अनुसरण करता है वह इस भौतिक संसार के बंधनों से मुक्त हो जाता है और भगवान के साथ एकजुट हो जाता है।

Bhagavad Gita

अध्याय 9 – श्लोक 5

श्लोक 5 - Verse 5न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्। भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः।।9.5।।na cha mat-sthāni bhūtāni paśhya me yogam aiśhwaram bhūta-bhṛin na...
Bhagavad Gita

अध्याय 9 – श्लोक 17

श्लोक 17 - Verse 17पिताऽहमस्य जगतो माता धाता पितामहः। वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक् साम यजुरेव च।।9.17।।pitāham asya jagato mātā dhātā pitāmahaḥ vedyaṁ pavitram oṁkāra ṛik sāma...
Bhagavad Gita

अध्याय 9 – श्लोक 19

श्लोक 19 - Verse 19तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च। अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन।।9.19।।tapāmyaham ahaṁ varṣhaṁ nigṛihṇāmyutsṛijāmi cha amṛitaṁ chaiva mṛityuśh cha sad asach chāham arjunaशब्दों का...
Bhagavad Gita

अध्याय 9 – श्लोक 13

श्लोक 13 - Verse 13महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः। भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्।।9.13।।mahātmānas tu māṁ pārtha daivīṁ prakṛitim āśhritāḥ bhajantyananya-manaso jñātvā bhūtādim avyayamशब्दों का अर्थmahā-ātmānaḥ—the great...
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अध्याय 9 – श्लोक 2

श्लोक 2 - Verse 2राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम्। प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम्।।9.2।।rāja-vidyā rāja-guhyaṁ pavitram idam uttamam pratyakṣhāvagamaṁ dharmyaṁ su-sukhaṁ kartum avyayamशब्दों का अर्थrāja-vidyā—the king of sciences;...
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अध्याय 9 – श्लोक 25

श्लोक 25 - Verse 25यान्ति देवव्रता देवान् पितृ़न्यान्ति पितृव्रताः। भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।।9.25।।yānti deva-vratā devān pitṝīn yānti pitṛi-vratāḥ bhūtāni yānti bhūtejyā yānti mad-yājino...
Bhagavad Gita

अध्याय 9 – श्लोक 29

श्लोक 29 - Verse 29समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः। ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्।।9.29।।samo ’haṁ sarva-bhūteṣhu na me...
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अध्याय 9 – श्लोक 15

श्लोक 15 - Verse 15ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते। एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्।।9.15।।jñāna-yajñena chāpyanye yajanto mām upāsate ekatvena pṛithaktvena bahudhā viśhvato-mukhamशब्दों का अर्थjñāna-yajñena—yajña of cultivating knowledge;...
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अध्याय 9 – श्लोक 6

श्लोक 6 - Verse 6यथाऽऽकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्। तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय।।9.6।।yathākāśha-sthito nityaṁ vāyuḥ sarvatra-go mahān tathā sarvāṇi bhūtāni mat-sthānītyupadhārayaशब्दों का अर्थyathā—as; ākāśha-sthitaḥ—rests in...
Bhagavad Gita

अध्याय 9 – श्लोक 28

श्लोक 28 - Verse 28शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः। संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि।।9.28।।śhubhāśhubha-phalair evaṁ mokṣhyase karma-bandhanaiḥ sannyāsa-yoga-yuktātmā vimukto mām upaiṣhyasiशब्दों का अर्थśhubha aśhubha phalaiḥ—from good and bad results;...