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P.S.L.V C -17 का सफल प्रक्षेपण – Successful Launch Of P.S.L.V C-17

भारत ने एक बार फिर अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में ऊची छलांग लगाई है |

सतीश धवन अंतरीक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से 15 जुलाई , 2011 की साय 4.48 बजे ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक यान (P.S.L.V सी -17) ने उडान भरी |

रॉकेट ने पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 1410 किलोग्राम बजनी नवीनतम सचार उपग्रह जीसैट -12 को कक्षा में स्थापित कर दिया |

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उपग्रह की धरती से न्यूनतम दुरी 284 और अधिकतम दुरी 21,000 किलोमीटर है |

इसके बाद इसे 36,000 किलोमीटर की ऊचाई पर कक्षा में स्थापित कर दिया गया |

उपग्रह ‘जीसेट -12’ की निर्मण लागत 148 करोड़ रूपये आई है |

प्रक्षेपक वाहन ध्रुवीय राकेट – पोलर सेटेलाईट लांच वेहिकल – P.S.L.V की निर्माण लागत प्राय : 100 करोड़ रुपये है |

रॉकेट और इस पर सवार उपग्रह दोनों का निर्माण ‘इसरो’ ने किया है |

उपग्रह की कार्यकारी अवधि करीब आठ वर्ष है |

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ध्रुवीय रॉकेट की यह लगातार 18वीसफल उडान है |

यहा यह जानना जरूरी है की ध्रुवीय राकेट की पहली उडान (P.S.L.V –डी1) श्रीहरिकोट से 20 सितंबर , 1993 हो हुई थी, लेकिन कतिपय तकनीकी त्रुटीयो के कारण मिशन नाकामयाब रहा |

इसी के साथ रॉकेट पर सवार उपग्रह ‘आईआरएस -1 ई’ भी नष्ट हो गया और रॉकेट बंगाल की खाड़ी में जा गिरा |

लेकिन इसके बाद ध्रुवीय रॉकेट ने कभी भी विफलता का आस्वाद नही चखा और कई अंतर्राष्ट्रीय कीर्तिमान शापित किए |

इससे राष्ट्र का गोरव बढ़ा |

यह पहली बार संभव हुआ है की जब हमारे ध्रुवीय रॉकेट ने किसी संचार उपग्रह की स्थापना की है |

मुलत: ध्रुवीय रॉकेट का विकास भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रहों को 900 किलोमीटर की उचाई वाली ध्रुवीय कक्षा में स्थापना के लिय किया गया था |

1948 में सबसे पहले आर्थर से. क्लार्क ने अपने एक शोध पत्र में बताया था की यदि विषुवत रेखा के ऊपर 36,000 किलोमीटर की ऊचाई पर सम्मान दूरियों पर तीन उपग्रह स्थापित कर दिए जाए तो सारी दुनिया में संचार संभव है |

अमेरिका ने जब ‘अर्ली बर्ड ‘ उपग्रह की स्थापना की तो क्लार्क की परिकल्पना साकार हो गई और यही आधुनिक संचार की बुनियाद भी बना |

नेटवर्क पर बढ़ी हुई क्षमता की प्रोधोगिकी पर कार्य करता है |

यह टेक्नोलाजी अत्याधुनिक मल्टीमिडिया फोन सेटो के लिए तैयार की गई है |

3जीनेटवर्क की मदद से सेलफोन आपरेटर आधुनिक स्पेक्ट्रम कुशलता से अधिक नेटवर्क क्षमता प्राप्त करता है, जिसका उपयोग वह अपने उपभोक्ता को और अधिक आधुनिक सेवाए प्रदान करने में सहायता करता है |

बेहतर स्पेक्ट्रमकुशलता से उसे पैकेट-सिवच डाटा को डिलीवरी भी करने में मदद मिलती है |

3 जी सेवा के लिए 15-20 मेगा हर्ट्स बैण्डविड्थचाहिए , जबकि 2 जी सेवा के लिए मात्र 30-200 किलो हर्ट्स बैण्डविड्थ की आवश्यकता होती है |

रेडियो फ्रीक्वेंसी का सीधा सम्बन्ध रेडियो फ्रीक्वेंसी से है |

उच्चतम और निम्नतम सिग्नल के अन्तर को बैण्डविड्थ कहा जाता है |

पहला पूर्ण वाणिजियक 3 जी नेटवर्क एनटीटी डोकोमो ने जापान में मई 2001 में शुरू किया |

यह डब्ल्यू –सीडीएमएतकनीक पर आधारित था |

दूसरा 3 जी नेटवर्क दक्षिण कोरिया में जनवरी 2001 में प्रारम्भ हुआ |

दक्षिण कोरिया में ही मई 2002 में तीसरा नेटवर्क लांच हुआ + अमेरिका में मोनेट मोबाईल यह सेवाए लाई परन्तु सुचारू नही रख सकी |

अक्टूबर 2003 में वर्जन वायरलेस सीडीएमए 3 जीनेटवर्क ने वहा पदार्पण किया |

महँगी नीलामी की वजह से उपभोक्ताओं को इन सेवाए की अधिक कीमत चुकानी होगी |

साथ हे साथ 3 – जी सेवाओ से सुरक्षा सम्बन्धी चिताए भी है |

केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने दूर संचार विभाग से यह सुनिशिचत करने के लिए कहा है की दूरसंचार कम्पनिया काल्स और एसएमएस को पकड़ने का ढांचा विकसित करे |

Note:- इन कहानियों मे प्रयोग की गई सभी तस्वीरों को इंटरनेट से गूगल सर्च और बिंग सर्च से डाउनलोड किया गया है।

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