यही सूत्र है परमात्मा तक जाने का। – This Is The Formula To Reach God.
मैंने सुना है, एक सम्राट अपने वजीर से नाराज हो गया। और उसने वजीर को एक बहुत ऊंचे मीनार पर कैद करवा दिया। उस मीनार से कूदने के सिवाय और कोई बचने का उपाय न था। लेकिन कूदना मरना था। मीनार बड़ी ऊंची थी। उससे कूदे तो मरे। कोई हथकड़ियां नहीं डाली थीं। वजीर को हथकड़ियां डालने की जरूरत न थी। वह मीनार के ऊपर कैद था। सीढ़ियों पर सख्त पहरा था। सीढ़ियों से आ नहीं सकता था। हर सीढ़ी पर सैनिक था। द्वारों पर कई द्वार थे, द्वारों पर ताले पड़े थे। मगर उसे खुला छोड़ दिया था मीनार पर। जब सब रो रहे थे, प्रियजन उसे विदा दे रहे थे, उसकी पत्नी ने कहा, हम इतने रो रहे हैं और तुम इतने शांत हो। बात क्या है?
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उसने कहा, फिक्र न कर। अगर तू एक रेशम का पतला धागा भी मुझ तक पहुंचा देगी तो बस, मैं निकल आऊंगा। वह तो चला गया वजीर, कैद हो गया। पत्नी और मुश्किल में पड़ गई कि रेशम का धागा! पहले तो पहुंचाना कैसे?
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सैकड़ों फीट ऊंची मीनार थी, उस पर रेशम का धागा पहुंचाना कैसे?
और फिर यह भी सोच—सोच परेशान थी कि रेशम का धागा पहुंच भी जाये समझो किसी तरह, तो रेशम के धागे से कोई भागा है?
बहुत सोच—विचार में पड़ गई, कुछ उपाय न सूझा तो वह गांव में के बुद्धिमानों की खोज करने लगी। एक फकीर ने कहा कि इसमें कुछ खास मामला नहीं है। भृंग नाम का एक कीड़ा होता है, उसको तू पकड़ ला। उसकी मूंछ पर शहद लगा दे। और भृंग की पूंछ में पतला धागा बांध दे रेशम का। उसने कहा, फिर क्या होगा?
उसने कहा, भृंग को मीनार पर छोड़ दे। अपनी मूंछ पर शहद की गंध पाकर वह आगे बढ़ता जायेगा। वह मिलनेवाली तो है नहीं गंध, वह मिलती रहेगी। शहद मिलेगा तो नहीं, उसकी मूंछ पर है। तो वह हटता जायेगा.. हटता जायेगा। और भृंग सीधा जाता है। वह रुकता नहीं जब तक वह खोज न ले, जहां से सुगंध आ रही है। जब तक वह खोज न ले, रुकता नहीं। तू फिक्र मत कर। वह ऊपर पहुंच जायेगा। और तेरे पति को पता है। जब एक दफा रेशम का पतला धागा पहुंच जाये तो फिर पतले धागे में थोड़ा मोटा धागा बांधना, फिर उसमें और थोड़ा मोटा बांधना। फिर पति तेरा खींचने लगेगा। फिर रस्सी बांध देना, फिर मोटे रस्से बांध देना, फिर रास्ता खुल गया। पत्नी को बात समझ में आ गई। यह गणित बहुत सीधा है। भृंग कीड़े को पकड़ लिया, उसकी मूंछ पर मधु लगा दिया, पूंछ में पतले से पतला धागा बांध दिया। क्योंकि इतने दूर तक भृंग को जाना है, इतना लंबा धागा खींचना है तो पतले से पतला धागा था। और भृंग चल पड़ा एकदम। उसको तो गंध मिलने लगी मधु की तो वह तो पागल होकर भागने लगा। वह रुका ही नहीं। वह ऊपर पहुंच गया। और जब पति ने देखा कि भृंग कीड़ा चढ़कर आ गया है ऊपर और उसकी मूंछों पर लगे हैं मधु के बिंदु, खुश हो गया। धागे को पकड़ लिया, बस। थोड़ी ही देर में धागे से मोटी रस्सी, मोटी से और मोटी रस्सी, और मोटी रस्सी, रस्सा. निकल भागा। यही सूत्र है परमात्मा तक जाने का। तुम्हारे भीतर जो अभी छोटा—सा रेशम का धागा जैसा है, बड़ा महीन है, पकड़ में भी नहीं आता, वह जो तुम्हारे भीतर होश है, बस उस होश को पकड़ लो। वह जो तुम्हारे भीतर चैतन्य है उसको पकड़ लो। ध्यान कुछ और नहीं, इस होश के धागे को पकड़ लेने का नाम है। फिर इसको पकड़कर तुम चल पड़ो। जिस दशा से यह आ रहा है उसी दिशा में मुक्ति है। उसी दिशा में परमात्मा है। -ओशो ”
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