कछुए की कहानी – Turtle Story
गंगा नदी से सटा एक पोखरा था, जिसके प्राणी इच्छानुसार नदी का भ्रमण कर वापिस भी आ जाते थे।
यह भी पढे – यह पेड़ चार हज़ार वर्ष पुराना है – This Tree Is Four Thousand Years Old
यह भी पढे – यमुना के पार गोकुल – Gokul Across Yamuna
जलचर आदि अनेक प्राणियों को दुर्भिक्ष-काल की सूचना पहले ही प्राकृतिक रुप से प्राप्य होती है। अत: जब पोखर-वासियों ने आने वाले सूखे का अन्देशा पाया वे नदी को पलायन कर गये। रह गया तो सिर्फ एक कछुआ क्योंकि उसने सोचा:
“हुआ था मैं पैदा यहाँ
हुआ हूँ मैं युवा यहाँ
रहते आये मेरे माता-पिता भी यहाँ
जाऊँगा मैं फिर यहाँ से कहाँ!”
कुछ ही दिनों में पोखर का पानी सूख गया और वह केवल गीली मिट्टी का दल-दल दिखने लगा। एक दिन एक कुम्हार और उसके मित्र चिकनी मिट्टी की तलाश में वहाँ आये और कुदाल से मिट्टी निकाल-निकाल कर अपनी टोकरियों में रखने लगे। तभी कुम्हार का कुदाल मिट्टी में सने कछुए के सिर पड़ी। तब कछुए को अपनी आसक्ति के दुष्प्रभाव का ज्ञान हुआ और दम तोड़ते उस कछुए ने कहा:-
“चला जा वहाँ
चैन मिले जहाँ
जैसी भी हो वह जगह
जमा ले वहीं धूनी
हो वह कोई
वन, गाँव या हो तेरी ही जन्म-भूमि
मिलता हो जहाँ तुझे खुशी का जीवन
समझ ले वही है तेरा घर और मधुवन”
Note:- इन कहानियों मे प्रयोग की गई सभी तस्वीरों को इंटरनेट से गूगल सर्च और बिंग सर्च से डाउनलोड किया गया है।
Note:-These images are the property of the respective owner. Hindi Nagri doesn’t claim the images.
यह भी पढे –
- मुल्ला नसरुद्दीन की दो बीवियाँ – Mulla Nasruddin’S Two Wives
- महाभिनिष्क्रमण – Great Confluence
- पहली मुलाकात – First Meeting
- जब वरुण ने अपने पुत्र की कठोर परीक्षा ली – When Varun tested his son harshly
- बुद्ध और नालागिरी हाथी – Buddha And Nalagiri Elephant
सभी कहानियों को पढ़ने के लिए एप डाउनलोड करे/ Download the App for more stories: