उत्तरकाण्ड – रावण के पूर्व के राक्षसों के विषय में – Uttarkand – About the demons before Ravana
श्रीराम का राज्य अयोध्या में स्थापित हो गया तो एक दिन समस्त ऋषि-मुनि श्रीरघुनाथजी का अभिनन्दन करने के लिये अयोध्यापुरी में आये। श्रीरामचन्द्रजी ने उन सबका यथोचित सत्कार किया। वार्तालाप करते हुये अगस्त्य मुनि कहने लगे, “युद्ध में आपने जो रावण का संहार किया, वह कोई बड़ी बात नहीं है, परन्तु द्वन्द युद्ध में लक्ष्मण के द्वारा इन्द्रजित का वध सबसे अधिक आश्चर्य की बात है। यह मायावी राक्षस युद्ध में समस्त प्राणियों के लिये अवध्य था।”
उनकी बात सुनकर रामचन्द्रजी को बड़ा आश्चर्य हुआ। वे बोले, “मुनिवर! रावण और कुम्भकर्ण भी तो महान पराक्रमी थे, महोदर, प्रहस्त, विरूपाक्ष भी कम वीर न थे, फिर आप केवल इन्द्रजित मेघनाद की ही इतनी प्रशंसा क्यों करते हैं?
यह भी पढे – राजा दशरथ की मृत्यु – Death of King Dasharatha
”
इस पर अगस्त्य मुनि बोले, “इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले मैं तुम्हें रावण के जन्म, वर प्राप्ति आदि का विवरण सुनाता हूँ। ब्रह्मा जी के पुलस्त्य नामक पुत्र हुये थे जो उन्हीं के समान तेजस्वी और गुणवान थे। एक बार वे महगिरि पर तपस्या करने गये। वह स्थान अत्यन्त रमणीक था। इसलिये ऋषियों, नागों, राजर्षियों आदि की कन्याएँ वहाँ क्रीड़ा करने आ जाती थीं। उन कन्याओं की उपस्थिति के कारण उनकी तपस्या में विघ्न पड़ता था। उन्होंने उन्हें वहाँ आने से मना किया। जब वे नहीं मानीं तो उन्होंने शाप दे दिया कि कल से जो कन्या यहाँ मुझे दिखाई देगी, वह गर्भवती हो जायेगी। शेष सब कन्याओं ने तो वहाँ आना बन्द कर दिया, परन्तु राजर्षि तृणबिन्दु की कन्या शाप की बात से अनभिज्ञ होने के कारण उस आश्रम में आ गई और महर्षि के दृष्टि पड़ते ही गर्भवती हो गई। जब तृणबिन्दु को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने अपने कन्या को पत्नी के रूप में महर्षि को अर्पित कर दिया। इस प्रकार विश्रवा का जन्म हुआ जो अपने पिता के समान वेद्विद और धर्मात्मा हुआ। महामुनि भरद्वाज ने अपनी कन्या का विवाह विश्रवा से कर दिया। उनके वैश्रवण नामक पुत्र हुआ। वह भी धर्मात्मा और विद्वान था। उसने भारी तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और इन्द्र तथा वरुण के सदृश लोकपाल का पद पाया। फिर उसने त्रिकूट पर्वत पर बसी लंका को अपना निवास स्थान बनाया और राक्षसों पर राज्य करने लगा।”
श्रीराम ने आश्चर्य से पूछा, “तो क्या कुबेर और रावण से भी पहले लंका में माँसभक्षी राक्षस रहते थे?
फिर उनका पूर्वज कौन था?
यह सुनने के लिये मुझे कौतूहल हो रहा है?
यह भी पढे – अगस्त्य का आश्रम – Agastya’s Ashram
”
अगस्त्य जी बोले, “पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने अनेक जल जन्तु बनाये और उनसे समुद्र के जल की रक्षा करने के लिये कहा। तब उन जन्तुओं में से कुछ बोले कि हम इसका रक्षण (रक्षा) करेंगे और कुछ ने कहा कि हम इसका यक्षण (पूजा) करेंगे। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि जो रक्षण करेगा वह राक्षस कहलायेगा और जो यक्षण करेगा वह यक्ष कहलायेगा। इस प्रकार वे दो जातियों में बँट गये। राक्षसों में हेति और प्रहेति दो भाई थे। प्रहेति तपस्या करने चला गया, परन्तु हेति ने भया से विवाह किया जिससे उसके विद्युत्केश नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। विद्युत्केश के सुकेश नामक पराक्रमी पुत्र हुआ। सुकेश के माल्यवान, सुमाली और माली नामक तीन पुत्र हुये। तीनों ने ब्रह्मा जी की तपस्या करके यह वरदान प्राप्त कर लिये कि हम लोगों का प्रेम अटूट हो और हमें कोई पराजित न कर सके। वर पाकर वे निर्भय हो गये और सुरों, असुरों को सताने लगे। उन्होंने विश्वकर्मा से एक अत्यन्त सुन्दर नगर बनाने के लिये कहा। इस पर विश्वकर्मा ने उन्हें लंकापुरी का पता बताकर भेज दिया। वहाँ वे बड़े आनन्द के साथ रहने लगे। माल्यवान के वज्रमुष्टि, विरूपाक्ष, दुर्मुख, सुप्तघ्न, यज्ञकोप, मत्त और उन्मत्त नामक सात पुत्र हुये। सुमाली के प्रहस्त्र, अकम्पन, विकट, कालिकामुख, धूम्राक्ष, दण्ड, सुपार्श्व, संह्नादि, प्रधस एवं भारकर्ण नाम के दस पुत्र हुये। माली के अनल, अनिल, हर और सम्पाती नामक चार पुत्र हुये। ये सब बलवान और दुष्ट प्रकृति होने के कारण ऋषि-मुनियों को कष्ट दिया करते थे। उनके कष्टों से दुःखी होकर ऋषि-मुनिगण जब भगवान विष्णु की शरण में गये तो उन्होंने आश्वासन दिया कि हे ऋषियों! मैं इन दुष्टों का अवश्य ही नाश करूँगा।
“जब राक्षसों को विष्णु के इस आश्वासन की सूचना मिली तो वे सब मन्त्रणा करके संगठित हो माली के सेनापतित्व में इन्द्रलोक पर आक्रमण करने के लिये चल पड़े। समाचार पाकर भगवान विष्णु ने अपने अस्त्र-शस्त्र संभाले और राक्षसों का संहार करने लगे। सेनापति माली सहित बहुत से राक्षस मारे गये और शेष लंका की ओर भाग गये। जब भागते हुये राक्षसों का भी नारायण संहार करने लगे तो माल्यवान क्रुद्ध होकर युद्धभूमि में लौट पड़ा। भगवान विष्णु के हाथों अन्त में वह भी काल का ग्रास बना। शेष बचे हुये राक्षस सुमाली के नेतृत्व में लंका को त्यागकर पाताल में जा बसे और लंका पर कुबेर का राज्य स्थापित हुआ।
राक्षसों के विनाश से दुःखी होकर सुमाली ने अपनी पुत्री कैकसी से कहा कि पुत्री! राक्षस वंश के कल्याण के लिये मैं चाहता हूँ कि तुम परम पराक्रमी महर्षि विश्रवा के पास जाकर उनसे पुत्र प्राप्त करो। वही पुत्र हम राक्षसों की देवताओं से रक्षा कर सकता है।”
Note:- इन कहानियों मे प्रयोग की गई सभी तस्वीरों को इंटरनेट से गूगल सर्च और बिंग सर्च से डाउनलोड किया गया है।
Note:-These images are the property of the respective owner. Hindi Nagri doesn’t claim the images.
यह भी पढे –
- लंका दहन – lanka dahan
- रामनवमी – Ram Navami
- कैकेयी द्वारा वरों की प्राप्ति – Kaikeyi’s attainment of grooms
- हनुमान जी का लंका में प्रवेश – Hanuman ji’s entry into Lanka
- चित्रकूट में – in Chitrakoot
सभी कहानियों को पढ़ने के लिए एप डाउनलोड करे/ Download the App for more stories: