Spiritual Stories for children
~Advertisement ~

किरात से युद्ध – war with Kirat

हिमालय की तराई में एक सघन वन था|

वन में तरह-तरह के पशु-पक्षी रहते थे|

वहीं जगह-जगह ऋषियों की झोंपड़ियां भी बनी हुई थीं|

ऐसा लगता था मानो प्रकृति ने अपने हाथों से उस वन को संवारा हो|

उन्हीं झोंपड़ियों के पास एक तेजस्वी युवक बहुत दिनों से अंगूठे के बल खड़ा होकर तप में लीन था|

उसने खाना-पीना सबकुछ छोड़ दिया था|

वह केवल हवा पीकर ही रहता था|

उसका शरीर सूख गया था, सिर के बाल बढ़ गए थे, पर चेहरे पर तेज बढ़ता जा रहा था, लगता था, मानो दूसरा सूर्य निकल रहा हो|

यह भी पढे – कीमती उपहार – Kimati Uphaar (हिन्दी कहानी / Hindi Kahani)

वह तपस्वी पांडवों का भाई अर्जुन था|

वेदव्यास की सलाह से वह दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए शिवजी को प्रसन्न करने की चेष्टा कर रहा था; क्योंकि छली, षड्यंत्रकारी और पापी कौरवों को हराने के लिए शिवजी की शरण में जाने के अतिरिक्त बेसहारा पाण्डवों के पास अब कोई चारा नहीं रह गया था|

अर्जुन के तप के तेज से आसपास की धरती जलने लगी|

झोपड़ियों में रहने वाले ऋषि-मुनि घबरा उठे|

वे अर्जुन को समझाने लगे कि वह ऐसा कठिन तप न करे, पर अर्जुन ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया|

ध्यान भी वह कैसे दे सकता था|

उसे तो अधर्म और अन्याय को मिटाने के लिए शिवजी से दिव्यास्त्र प्राप्त करने थे|

अत: वह तप में लगा रहा|

अर्जुन ने जब ऋषियों की बात पर ध्यान नहीं दिया तो ऋषिगण सामूहिक रूप से शिवजी से प्रार्थना करने लगे, “प्रभो ! अर्जुन के तप से धरती जल रही है|

अगर आप उसे रोकेंगे नहीं तो इस वन में हम लोगों का रहना कठिन हो जाएगा|

उसी समय आकाशवाणी हुई, “ऋषियों ! घबराओ नहीं|

अर्जुन पूर्वजन्म का देवता है|

उसके तप से तुम्हारा अनिष्ट नहीं होगा|

वह मुझसे दिव्यास्त्र लेना चाहता है|

मैं उसके तप से प्रसन्न हूं|

यह वाणी स्वयं भगवान आशुतोष की थी|

अर्जुन बड़ी श्रद्धा से उनकी आराधना में लगा रहा, उन्हें प्रसन्न करने के लिए तप करता रहा|

दोपहर का समय था|

यह भी पढे – उधार का बोझ – Udhar Ka bojh (हिन्दी कहानी / Hindi Kahani)

अर्जुन अपनी पूजा की माला भगवान के चरणों पर चढ़ रहा था|

सहसा उसे एक शूकर दिखाई पड़ा, जो कहीं से निकलकर उसी ओर आ रहा था|

अर्जुन ने झट अपना धनुष-बाण उठाया और धनुष पर बाण चढ़ाकर शूकर पर चला दिया|

बाण शूकर की छाती में लगा|

वह धरती पर गिरकर, कुछ देर तक तड़पकर सदा के लिए सो गया|

अर्जुन के बाण के साथ ही साथ शूकर की छाती में एक और भी बाण लगा था|

वह बाण एक किरात का था, जो दूर से शूकर का पीछा करता हुआ आ रहा था|

शूकर जब धरती पर गिरा, तब अर्जुन और किरात दोनों शूकर के पास जा पहुंचे|

अर्जुन ने कहा, “शूकर की मृत्यु उसके बाण से हुई है|

” पर किरात ने उसकी बात का विरोध किया|

उसने कहा, “नहीं, शूकर की मृत्यु अर्जुन के बाण से नहीं, उसके बाण से हुई है|

” शूकर की मृत्यु को लेकर अर्जुन और किरात में विवाद होने लगा|

दोनों ही एक दूसरे की वीरता को ललकारने लगे|

बातों ही बातों में अर्जुन का क्रोध भड़क उठा|

वह किरात पर बाण चलाने लगा|

अर्जुन ने किरात पर कई बाण चलाए, पर उसके सभी बाण किरात के शरीर से फल की तरह लग-लग कर नीचे गिर पड़े|

वह विस्मित हो उठा, पर साथ ही और भी अधिक क्रुद्ध हो उठा|

वह किरात को युद्ध के लिए ललकार कर उस पर बाणों की वर्षा करने लगा|

फलत: किरात भी युद्ध के लिए तैयार हो गया|

किरात और अर्जुन दोनों में युद्ध होने लगा|

अर्जुन के पास युद्ध की जितनी कलाएं थीं, जितने अस्त्र-शस्त्र थे, सबका उसने उपयोग किया, पर किरात का बाल तक बांका नहीं हुआ|

यह पहला अवसर था, जब अर्जुन के बाण विफल हुए थे|

वह आश्चर्य में डूबकर सोचने लगा – यह किरात कौन है?

मेरे बाण क्यों विफल हो गए?

कहीं किरात के रूप में भगवान शिव तो नहीं हैं|

अर्जुन की आंखें बंद हो गईं|

वह हाथ में धनुष-बाण लेकर खड़ा था|

वह आंखें बंद करके सोचने लगा – अवश्य किरात के रूप में यह शिवजी ही हैं|

मेरे बाण भगवान शंकर को छोड़कर और किसी पर विफल नहीं हो सकते थे|

अर्जुन ने आंखें खोलकर देखो, सामने कोई नहीं था|

किरात इधर-उधर कहीं भी दिखाई नहीं पड़ रहा था|

अर्जुन के मुख से अपने आप ही निकल पड़ा – भगवान शंकर, भगवान आशुतोष !

सहसा अर्जुन के गले में एक माला आ गई|

यह उन्हीं मालाओं में से एक थी, जिन्हें अर्जुन भगवान के चरणों में चढ़ाया करता था|

अर्जुन को विश्वास हो गया कि किरात के रूप में भगवान शिव ही उसके शौर्य की परीक्षा ले रहे थे|

अर्जुन का मन शक्ति और श्रद्धा से भर गया|

वह पुलकित होकर भगवान शंकर की प्रार्थना करने लगा|

भगवान आशुतोष प्रसन्न हो उठे|

उन्होंने प्रसन्नता भरे स्वर में कहा, “अर्जुन, मैं तुम्हारी वीरता की परीक्षा लेकर परम संतुष्ट हुआ हूं|

मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार ही तुम्हें पाशुपतास्त्र दे रहा हूं|

इससे तुम तीनों लोकों को जीत सकोगे|

अर्जुन को उद्देश्य पूर्ण हुआ|

महाभारत के पन्नों से प्रकट है कि अर्जुन ने भगवान शंकर के दिए हुए अस्त्रों से ही महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की थी|

सृष्टि के इतिहास में शौर्य की नैवेद्य से शिवजी को संतुष्ट करने वाला अकेला अर्जुन ही है|

अत: उसकी वीरता की कहानी प्रलय की छाती पर भी लिखी रहेगी|

Note:- इन कहानियों मे प्रयोग की गई सभी तस्वीरों को इंटरनेट से गूगल सर्च और बिंग सर्च से डाउनलोड किया गया है।

Note:-These images are the property of the respective owner. Hindi Nagri doesn’t claim the images.

यह भी पढे –

सभी कहानियों को पढ़ने के लिए एप डाउनलोड करे/ Download the App for more stories:

Get it on Google Play