अर्घ कपाले झूलता, सो दिन करले याद जठरा सेती राखिया, नाहि पुरुष कर बाद।
अर्थ : तुम उस दिन को याद करो जब तुम सिर नीचे कर के झूल रहे थे। जिसने तुम्हें माॅं के गर्भ में पाला उस पुरुष-भगवान को मत भूलो। परमात्मा को सदा याद करते रहो।
दोहा – 2
अहिरन की चोरी करै, करै सुई की दान उॅचे चढ़ि कर देखता, केतिक दूर बिमान।
अर्थ : लोग लोहे की चोरी करते हैं और सूई का दान करते हैं। तब उॅंचे चढ़कर देखते हैं कि विमान कितनी दूर है। लोग जीवन पर्यन्त पाप करते हैं और अल्प दान करके देखते हैं-सोंचते हैं कि उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिये विमान कितनी दूर पर है और कब ले जायेगा।
दोहा – 3
आये है तो जायेगा, राजा रंक फकीर ऐक सिंहासन चढ़ि चले, ऐक बांधे जंजीर।
अर्थ : इस संसार में जो आये हैं वे सभी जायेंगे राजा, गरीब या भिखारी। पर एक सिंहासन पर बैठ कर जायेगा और दूसरा जंजीर में बंध कर जायेगा। धर्मात्मा सिंहासन पर बैठ कर स्वर्ग और पापी जंजीर में बाॅंध कर नरक ले जाया जायेगा।
दोहा – 4
आठ पहर यूॅ ही गया, माया मोह जंजाल राम नाम हृदय नहीं, जीत लिया जम काल।
अर्थ : माया मोह अज्ञान भ्रम आसक्ति में संपूर्ण जीवन बीत गया। हृदय में प्र्रभु का नाम भक्ति नहीं रहने के कारण मृत्यु के देवता यम ने मनुष्य को जीत लिया है।
दोहा – 5
आज कहै मैं काल भजू, काल कहै फिर काल आज काल के करत ही, औसर जासी चाल।
अर्थ : लोग आज कहते हैं कि मैं कल से प्रभु का भजन करुॅंगा और कल कहतें हैं कि कल से करुॅंगा। इसी आज कल के फेरे में प्रभु के भजन का अवसर चला जाता है और जीवन व्यर्थ बीत जाता है।
दोहा – 6
आंखि ना देखे बापरा, शब्द सुनै नहि कान सिर के केश उजल भये, आबहु निपत अजान।
अर्थ : मूर्ख अपने आॅंख से नहीं देख पाते हैं न हीं वे कानों से सुन पाते हैं। सिर के सभी बाल सफेद हो गये पर वे अभी पूरी मूर्खता में हैं। उम्र से ज्ञान नहीं होता और वे ईश्वर की सत्ता पर विश्वास नहीं कर पाते हैं।
दोहा – 7
अच्छे दिन पाछे गये, हरि सो किया ना हेत अब पछितावा क्या करै, चिड़िया चुगि गयी खेत।
अर्थ : हमारे अच्छे दिन बीत गये पर हमने ईश्वर से प्रेम नहीं किया। अब पश्चाताप करने से कया लाभ होगा जब पक्षी खेत से सभी दाने चुन कर खा चुके हंै।
दोहा – 8
उॅचा मंदिर मेरिया, चूना कलि घुलाय ऐकहि हरि के नाम बिन, जादि तादि पर लै जाय।
अर्थ : उॅंचा मंदिर बनाया गया उसे चूना और रंग से पोत कर सुन्दर बना दिया गया। परंतु प्रभु की पूजा और भजन-कीत्र्तन के बिना एक दिन वह स्वतः नष्ट हो जायेगा।
दोहा – 9
ऐक शीश का मानवा, करता बहुतक हीश लंका पति रावन गया, बीस भुजा दस शीश।
अर्थ : एक सिर का मनुष्य बहुत अहंकार और धमंड करता है जब कि लंका का राजा रावन बीस हाथ और दस सिर का रहने पर भी चला गया तो दूसरों का क्या कहना है।
दोहा – 10
उजल पहिने कापड़ा, पान सुपारी खाये कबीर हरि की भक्ति बिन, बंघा जम पुर जाये।
अर्थ : उजला कपड़ा पहन कर मुॅंह में पान सुपारी खा कर लोग अपने घमंड में रहते हैं। कबीर कहते हैं कि प्रभु की भक्ति के बिना एक दिन मृत्यु के देवता हमें बाॅंधकर ले जायंेगे।
दोहा – 11
ऐक दिन ऐसा होयेगा, सब सो परै बिछोह राजा राना राव रंक, साबधान क्यो नहिं होये।
अर्थ : एक दिन इस संसार में हमें सबसे बिछुड़ना होगा। तो फिर राजा,सेनापति,धनी, निर्धन सभी सतर्क-सावधान होकर ईश्वर की भक्ति क्यों नहीं करते हंै।
दोहा – 12
ऐक दिन ऐसा होयेगा, सब सो परै बिछोह राजा राना राव रंक, साबधान क्यो नहिं होये।
अर्थ : एक दिन इस संसार में हमें सबसे बिछुड़ना होगा। तो फिर राजा,सेनापति,धनी, निर्धन सभी सतर्क-सावधान होकर ईश्वर की भक्ति क्यों नहीं करते ।
दोहा – 13
ऐक दिन ऐसा होयेगा, कोये कहु का नाहि घर की नारी को कहै, तन की नारी नाहि।
अर्थ : एक दिन ऐसा आयेगा जब इस संसार में हमारा कोई नहीं रह जायेगा। घर की गृहणी पत्नी का क्या-शरीर की नाड़ी नस भी नहीं रहेगी और सब कुछ छोड़कर चला जायेगा।
दोहा – 14
ऐक बुंद ते सब किया, नर नारी का नाम सो तु अंतर खोजि लैय, सकल बियापक राम।
अर्थ : वीर्य के एक बूंद से संसार के समस्त नर नारी की उत्पति हुई है। इसी से प्रभु की सर्वब्यापकता के रहस्य का पता चलता है तुम इसे अपने ह्रदय के अन्तरतम में खोजो ।
दोहा – 15
एैसी गति संसार की, ज्यों गादर की थाट ऐक परि जीहि गार मे, सबै जाहि तिहि बाट।
अर्थ : इस संसार की गति भेंड़ की गति के समान हैं। यदि एक भेड़ किसी एक खाई में गिर जाती है तो भेंड़ का पूरा झुण्ड उसी गति को प्राप्त करता है।
दोहा – 16
कबीर कुनवा तो ऐक है, पनिहारिन बहुतेक पानी ऐक का ऐक है, दिखै घड़ा अनेक।
अर्थ : कबीर का कहना है कि कुआॅं तो एक मात्र एक है पर पनिहारिन अनेक हैं। पानी भी एक मात्र है परंतु घड़ा तो अनेक दिखाई पड़ता है। परमात्मा एक हैं परंतु उनको मानने वाले पंथ अनेक हैं।
दोहा – 17
कबीर गर्व ना किजीये, देहि देखि सुरंग बिछुरै पै मेला नहीं, ज्यों केचुली भुजंग।
अर्थ : कबीर अपने शरीर के सुंदरता पर गर्व नहीं करने की सलाह देते हैं। अगर यह शरीर घट जाता है मृत्यु हो जाती है तो यह शरीर साॅंप के केंचुल की तरह पुनः नही मिलता है।
दोहा – 18
कबीर गर्व ना किजीये, काल गहे कर केश ना जानो कित मारि है, क्या घर क्या परदेश।
अर्थ : कबीर कहते है कि घमंड मत करो। काल मृत्यु ने तुम्हारे बाल को पकड़ रखा है। कोई नहीं जानता कि उसकी मृत्यु कहाॅं होगी अपने घर में या परदेश में। काल तुम्हें कहाॅं मारेगा।
दोहा – 19
कबीर केवल राम कह, सुध गरीबी चाल कूर बराई बूरसी, भरी परसी झाल।
अर्थ : कबीर कहते है कि गरीब के भाॅंति विनम्र भाव से प्रभु का नाम लो। तुम्हारे सभी सांसारिक दुख दूर हो जायेंगे। लोग अंहकार में इस उपदेश को नहीं मानते हैं और त्रिविध ताप से झुलसते रहते हैं।
दोहा – 20
कबीर नौबत आपनी, दिन दस लेहु बजाये येह पुर पत्तन येह गली, बहुरि ना देखी आये।
अर्थ : कबीर कहते हैं कि ढ़ोल रुपी यह शरीर तुम दस दिनों के लिये पीट बजा लो। यह जगह,घर शहर और गली तुम पुनः लौट कर देखने नहीं आ सकोगे।
दोहा – 21
कबीर देबल हार का, माटी तना बंधान खरहरता पाया नहीं, देवल का सहि दान।
अर्थ : कबीर कहते हैं यह शरीर हाड़ माॅंस का संमूह है और यह मिटृी से वृक्ष की भाॅंति बंघा है। मृत्यु के बाद इसे कोई देख भी नहीं पाता है कारण यह या तो मिटृी में गाड़ दिया जाता है या जला दिया जाता है।
दोहा – 22
कबीर देवल ढ़हि पड़ा, ईट भई संधार कोयी छिजारा चुनियाॅ मिला ना दूजी बार।
अर्थ : कबीर के अनुसार इस शरीर रुप मकान के ढ़ह जाने पर हड्ी रुप इंट भी नष्ट हो जाता है यदि कोई मिरत्री उसे खोजे तो वह उसे पुनः नहीं मिलेगा। यह शरीर क्षणिक और नाशवान है।
दोहा – 23
कबीर देवल ढ़हि पड़ा, ईट रही संवारि करि चिजरा प्रीतरी, ढ़है ना दूजी बारि।
अर्थ : कबीर कहते है कि यह शरीर तो ढ़ह-मर गया-इसकी चिता को क्यों सजा रहे हो। तुम इसके निर्माता-परमात्मा से प्रेम करो तो कभी नाश नहीं होगा। तुम्हें जीवन से मुक्ति मिल जायेगी।
दोहा – 24
कबीर जो दिन आज है, सो दिन नाहि काल चेति सकै तो चेति ले, मीच परी है खयाल।
अर्थ : कबीर का कहना है कि जो दिन आज है वह कल्ह नहीं रहेगा। अतः तुम सावघान हो जाओ यह अवसर पुनः नही मिलेगा। मृत्यु की दृष्टि सबों के उपर है। यह मानव जीवन पुनः नहीं मिलेगा।
दोहा – 25
कबीर मनुवा मोर है, संसै रुपी संप खाया पिया पचि गया, अंतर परगट आप।
अर्थ : कबीर कहते है कि मन मोर सदृश्य है। और सब भ्रम सांप की तरह है। मोर ज्ञान सांप अज्ञान की तरह है। जब मोर सांप को पचा लेता हैं तो ह्रदय में प्रभु प्रगट होते है। ज्ञान अज्ञान को खा कर नास कर देता है। तब ह्रदय में ईश्वर प्रगट होते है।
दोहा – 26
कबीर येह तन बन भया, करम जु भया कुल्हार आप आपको काटि है, कहै कबीर बिचारि।
अर्थ : यह शरीर जंगल की तरह है और मेरे सारे कर्म कुल्हारी की भंाति है। यह स्वंग अपने से अपने को काटता है। बुरे कर्म अच्छे कर्मो को और अच्छे कर्म बुरे कर्मो को काट देता है।
दोहा – 27
कहा किया हम आये के, कहा करेंगे जाय ईट के भये ना उॅठ के, चले मूल गबाये।
अर्थ : हम इस संसार में जनम लेकर क्या किये? इस संसार से जाकर भी क्या करेंगे। ना तो हम इस संसार के हो सके और नहीं वहाॅं के। अपने मूल धन को गॅंबा कर हम इस संसार से चले। जन्म लेकर प्रभु की प्रार्थना नहीं की गई तो मुक्ति संभव नहीं है।
दोहा – 28
कहै कबीर पुकारि के, चेते नाहि कोये अबकी बिरियां चेति है, सो साहब का होये।
अर्थ : कबीर पूकार कर कहते है की कोई आदमी सावधान नहीं है। यदि इस जन्म में तुम सावधान चेतन हो जाओ तो तुम ईश्वर के हो जाओगे। ईश्वर को प्राप्त कर सकोगे।
दोहा – 29
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब्ब पल मे परलय होयेगी, बहुरी करोगे कब्ब।
अर्थ : कल करने बाला सतकर्म आज करो और आज करने बाला कल्याण अभी करो। किसी क्षण संसार का नाश हो सकता है तब तुम कब वह अच्छा कर्म करोगे।
दोहा – 30
काल करै सो आज कर, सबहि साज तुव साथ काल काल तु क्या करै, काल काल के हाथ।
अर्थ : कल जो करना हो उसे आज करलो। सभी साजो सामान तुम्हारे हाथ में है। कल कल तुम व्यर्थ करते हो। कल तो यमराज काल के हाथ में है। जीवन की कोई संभावना नहीं है।
दोहा – 31
चले गया सो ना मिले, किसको पुछु बाट मात, पिता, सुत, बंधबा, झूठा सब संघात।
अर्थ : जो मर कर जले गये उन से पुनः मुलाकात नहीं हुई। किन से सही बात पूंछू। माता पिता पूत्र भाई बंधु-इस संसार के सभी संबंध अल्पकालिक झूठे है।
दोहा – 32
चेत सबेरा बाबरे, फिर पाछै पछताये तुझको जाना दूर है, कहे कबीर जगाये।
अर्थ : ओ मूर्ख जल्दी सावधान हो जाओ। बाद में पश्चाताप करना पड़ेगा। तूम्हें बहुत दूर जाना है। कबीर तुम्हें नींद से जगा रहें है। प्रभु का धाम बहुत दूर है।
दोहा – 33
झूठा सब संसार है, कोउ ना आपना मीत राम नाम को जानि ले, चले जो भौजाल जीत।
अर्थ : यह संसार असत्य है। इस में अपना कोई मित्र नहीं है। केवल राम नाम का ज्ञान कर लो तो तुम इस संासारिक जाल में उलझने से बच जाओगे और माया जाल से पार पा लोगे।
दोहा – 34
जागो लोगो मत सुबो, ना करु नींद से प्यार जैसा सपना रैन का, एैसा येह संसार।
अर्थ : ऐ लोगों जग जाओ-मत सोओ। नींद से प्यार मत करो। रात की स्वप्न की भाॅंति ही यह संसार भी झूठा है।
दोहा – 35
जंगल ढे़री राख की, उपरि उपरि हरिआये ते भी होते मान वी, करते रंग रलियाये।
अर्थ : संसार रुपी जंगल चिता के राख के ढ़ेर समान है। उसके उपर हरियाली उग गयी है। वे सभी राख मनुष्यों के चिताओं के है जो संसार में आनंद और मौज लूट कर चले गये है।
दोहा – 36
मन मुवा मया मुवि, संसय मुवा सरीर अबिनासी जो ना मारे तो क्यांे मरे कबीर।
अर्थ : मन मर चुका है। मया मोह मर चुका है। मेरे शरीर का भ्रम मर चुका है। जब अविनाशी प्रभु नहीं मरते है तो उनके साथ आत्मिक संबंध के कारण कबीर क्यों मरेगा?