किसकी प्रतीक्षा कर रहे हो – What Are You Waiting For
एक बड़ी प्रसिद्ध सूफी कथा है। सम्राट सोलोमन सुबह—सुबह सोकर उठा ही था कि उसके एक वजीर ने घबड़ाए हुए भीतर प्रवेश किया। वह इतना घबड़ाया था, सुबह—सुबह की ठंडी हवा थी, शीतल मौसम था चारों तरफ, लेकिन वजीर पसीने से लथपथ था। सोलोमन ने पूछा, क्या हुआ?
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बिना पूछे एकदम भीतर चले आए और इतने घबड़ाए हो, बात क्या है?
उसने कहा, बस, ज्यादा समय खोने को मेरे पास नहीं है। आपका तेज से तेज घोड़ा दे दें। रात सपने में मौत मुझे दिखायी पड़ी है। और मौत ने कहा, तैयार रहना, कल शाम मैं आती हूं। सोलोमन ने पूछा, तेज घोड़े का क्या करोगे?
उसने कहा कि मैं भाग, यहां से तो भाग। इस जगह रुकना अब खतरे से खाली नहीं है। तो मैं दमिश्क चला जाना चाहता हूं। सैकड़ों मील दूर। तेज से तेज घोड़ा दे दें, बातों में समय खराब न करें, मेरे पास समय नहीं है। बच गया, लौट आऊंगा। सोलोमन के पास जो तेज से तेज घोड़ा था, दे दिया गया। सोलोमन बड़ा हैरान हुआ। सोलोमन बड़े बुद्धिमान लोगों में एक था। उसने आंख बंद की, उसने मृत्यु का स्मरण किया। मौत प्रगट हुई। उसने पूछा, ये भी क्या तरीके हैं?
उस गरीब वजीर को क्यों घबड़ा दिया?
मारना हो मारो, बाकी पहले से आने का यह कौन सा नया हिसाब निकाला?
मरते सभी हैं। मौत किसी को खबर तो नहीं देती। इसीलिए तो लोग मजे से जीते हैं और मजे से मर जाते हैं। मौत खबर दे, तो जीना मुश्किल हो जाए। यह कौन सी बात निकाली! यह कौन सा ढंग निकाला! मौत ने कहा, मैं खुद मुसीबत में थी। इस आदमी को दमिश्क में होना चाहिए शाम तक, और यह यहीं है। सैकड़ों मील का फासला है।
मैं खुद बेचैनी में थी कि यह होगा कैसे?
दमिश्क में इसे मुझे लेना है आज शाम। इसीलिए चौंकाया उसे। कहां है वह आदमी?
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सोलोमन ने कहा कि वह गया दमिश्क की तरफ। कहते हैं, सांझ जब वजीर पहुंचा दमिश्क, बड़ा निश्चित था। सूरज ढलता था, उसने एक बगीचे में घोड़ा बाधा, घोड़े की पीठ थपथपायी कि शाबाश, सच में ही तू सोलोमन का घोड़ा है, ले आया सैकड़ों मील दूर! तभी उसके कंधे पर कोई हाथ पड़ा, उसने कहा, तुम्हीं धन्यवाद मत दो, धन्यवाद मुझे देना चाहिए। पीछे लौटा तो देखा मौत खड़ी थी। घबड़ा गया। उसने कहा, घबड़ाओ मत, घोड़ा निश्चित ही तेज है। मैं खुद ही परेशान थी कि इंतजाम यही है, खबर मेरे पास यही आयी है कि दमिश्क में सांझ तुम्हें सूरज ढलने तक लेना है। मैं खुद ड़री थी कि अगर तुम भागे न उस गांव से, तो तुम दमिश्क पहुंचोगे क़ैसे?
मगर घोड़ा ठीक समय पर ठीक जगह ले आया। यहीं तुम्हें मरना है। तुम कहीं से भी जाओ, कैसे भी जाओ; गरीब की तरह जाओ, अमीर की तरह जाओ; फकीर की तरह जाओ, बादशाह की तरह जाओ, सब मरघट पर पहुंच जाते हैं। सभी रास्ते वहा ले जाते हैं। लोग कहते हैं, सभी रास्ते रोम ले जाते हैं, पता नहीं। सभी रास्ते मरघट जरूर ले जाते हैं। रोम भी एक तरह का मरघट है, बड़ा पुराना, प्राचीन खंड़हरों के सिवाय कुछ भी नहीं, वहीं ले जाते हैं।
बुद्ध कहते हैं, ‘ अंधकार में डूबे हो और दीपक की खोज नहीं करते!’ किसकी प्रतीक्षा कर रहे हो, मौत के अतिरिक्त कोई भी नहीं आएगा। किन सपनों में खोए हो! -ओशो”
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