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तुम गाय से बंधे हो कि गाय तुमसे बंधी है – You Are Tied To The Cow Or The Cow Is Tied To You

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सुना है मैंने कि एक आदमी एक गाय को बांधकर अपने घर लौट रहा है। फकीर हसन उसे रास्ते में मिल गया और हसन ने पूछा कि मेरे मित्र, मैं एक बात जानना चाहता हूं। तुम गाय से बंधे हो कि गाय तुमसे बंधी है उस आदमी ने कहा, तू पागल मालूम होता है! यह भी कोई पूछने की बात है?

जाहिर है कि गाय मुझसे बंधी है; मैं गाय को बांधकर ले जा रहा हूं। तो फकीर हसन ने कहा, एक काम कर। अगर गाय तुझसे बंधी है, तो तू छोड़कर बता। तू छोड़ दे। फिर अगर गाय तेरे पीछे चले, तो हम समझें। उस आदमी ने कहा, अगर मैं छोड़ दूंगा, गाय भाग खड़ी होगी, मुझे उसके पीछे भागना पड़ेगा। तो फकीर हसन ने कहा, फिर तू ठीक से समझ ले। यह हाथ में जो रस्सी लिए है, इस धोखे में मत पड़ना। अगर गाय भागे, तो तू उसके पीछे भागेगा, गाय तेरे पीछे नहीं भागेगी। अगर तू गाय को छोड़ दे, तो गाय तेरा पता लगाती हुई नहीं आने वाली है, तू ही उसका पता लगाता हुआ जाएगा। तो तू इस भ्रम में है कि तू गाय को बांधे हुए है। जिसे हम बांधते हैं, उससे हम बंध भी जाते हैं, जीवन का यह एक अनिवार्य नियम है। इसलिए जो मुक्त होना चाहता है, वह किसी को बांधेगा नहीं। बांधा कि आप फिर मुक्त नहीं हो सकते। अगर आपकी वासना को आपने दबा लिया और अच्छा विचार आप ऊपर ले आए, तो भी वासना नीचे कुलबुलाती रहेगी, भभकती रहेगी; लपटें उसकी उठती रहेंगी। आपको रोज—रोज दबाना पड़ेगा। जिसे एक दिन दबाया है, उसे रोज—रोज दबाना पड़ेगा। और दबाने से कोई वासना मिटती नहीं है, भभक भी सकती है और तेजी से, क्योंकि दमन से रस भी पैदा होता है। और जिसे हम दबाते हैं, उसमें आकर्षण भी बढ़ जाता है। और जिसे हम दबाते हैं, उसकी शक्ति भी इकट्ठी होती चली जाती है। फिर यह संघर्ष सतत है। -ओशो ”

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