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पुरुषोत्तमयोग

The Yoga of the Supreme Divine Personality

The fifteenth chapter of the Bhagavad Gita is “Purushottama Yoga”. In Sanskrit, Purusha means the “All-pervading God”, and Purushottam means the timeless & transcendental aspect of God. Krishna reveals that the purpose of this Transcendental knowledge of the God is to detach ourselves from the bondage of the material world and to understand Krishna as the Supreme Divine Personality, who is the eternal controller and sustainer of the world. One who understands this Ultimate Truth surrenders to Him and engages in His devotional service.

पुरुषोत्तम योग

भगवद गीता का पंद्रहवा अध्याय पुरुषोत्तमयोग है। संस्कृत में, पुरूष का मतलब सर्वव्यापी भगवान है, और पुरुषोत्तम का मतलब है ईश्वर का कालातीत और पारस्परिक पहलू। कृष्णा बताते हैं कि ईश्वर के इस महान ज्ञान का उद्देश्य भौतिक संसार के बंधन से खुद को अलग करना है और कृष्ण को सर्वोच्च दिव्य व्यक्तित्व के रूप में समझना है, जो विश्व के शाश्वत नियंत्रक और निर्वाहक हैं। जो इस परम सत्य को समझता है वह प्रभु को समर्पण करता है और उनकी भक्ति सेवा में संलग्न हो जाता है।

Bhagavad Gita

अध्याय 15 – श्लोक 20

श्लोक 20 - Verse 20इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयाऽनघ।एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत।।15.20।।iti guhyatamaṁ śhāstram idam uktaṁ mayānagha etad buddhvā buddhimān syāt kṛita-kṛityaśh cha bhārataशब्दों का अर्थiti—these; guhya-tamam—most...
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अध्याय 15 – श्लोक 19

श्लोक 19 - Verse 19यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम्।स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत।।15.19।।yo mām evam asammūḍho jānāti puruṣhottamam sa sarva-vid bhajati māṁ sarva-bhāvena bhārataशब्दों का अर्थyaḥ—who;...
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अध्याय 15 – श्लोक 18

श्लोक 18 - Verse 18यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः।अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः।।15.18।।yasmāt kṣharam atīto ’ham akṣharād api chottamaḥ ato ’smi loke vede cha prathitaḥ puruṣhottamaḥशब्दों का...
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अध्याय 15 – श्लोक 17

श्लोक 17 - Verse 17उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः।यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः।।15.17।।uttamaḥ puruṣhas tv anyaḥ paramātmety udāhṛitaḥ yo loka-trayam āviśhya bibharty avyaya īśhvaraḥशब्दों का अर्थuttamaḥ—the Supreme; puruṣhaḥ—Divine...
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अध्याय 15 – श्लोक 16

श्लोक 16 - Verse 16द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च।क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते।।15.16।।dvāv imau puruṣhau loke kṣharaśh chākṣhara eva cha kṣharaḥ sarvāṇi bhūtāni kūṭa-stho...
Bhagavad Gita

अध्याय 15 – श्लोक 15

श्लोक 15 - Verse 15सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।15.15।।sarvasya chāhaṁ hṛidi sanniviṣhṭo mattaḥ...
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अध्याय 15 – श्लोक 14

श्लोक 14 - Verse 14अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः।प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्।।15.14।।ahaṁ vaiśhvānaro bhūtvā prāṇināṁ deham āśhritaḥ prāṇāpāna-samāyuktaḥ pachāmy annaṁ chatur-vidhamशब्दों का अर्थaham—I; vaiśhvānaraḥ—fire of digestion;...
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अध्याय 15 – श्लोक 13

श्लोक 13 - Verse 13गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा।पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।15.13।।gām āviśhya cha bhūtāni dhārayāmy aham ojasā puṣhṇāmi chauṣhadhīḥ sarvāḥ somo bhūtvā rasātmakaḥशब्दों...
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अध्याय 15 – श्लोक 12

श्लोक 12 - Verse 12यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्।यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्।।15.12।।yad āditya-gataṁ tejo jagad bhāsayate ’khilam yach chandramasi yach chāgnau tat tejo viddhi māmakamशब्दों का...
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अध्याय 15 – श्लोक 11

श्लोक 11 - Verse 11यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम्।यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतसः।।15.11।।yatanto yoginaśh chainaṁ paśhyanty ātmany avasthitam yatanto ‘py akṛitātmāno nainaṁ paśhyanty achetasaḥशब्दों का अर्थyatantaḥ—striving; yoginaḥ—yogis; cha—too; enam—this...