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कर्मयोग

Path of Selfless Service

The third chapter of the Bhagavad Gita is “Karma Yoga” or the “Path of Selfless Service”. Here Lord Krishna emphasizes the importance of karma in life. He reveals that it is important for every human being to engage in some sort of activity in this material world. Further, he describes the kinds of actions that lead to bondage and the kinds that lead to liberation. Those persons who continue to perform their respective duties externally for the pleasure of the Supreme, without attachment to its rewards get liberation at the end.

 

निःस्वार्थ सेवा का मार्ग

भगवद गीता का तीसरा अध्याय कर्मयोग या निःस्वार्थ सेवा का मार्ग है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण जीवन में कर्म के महत्व पर जोर देते हैं। वे बताते हैं कि इस भौतिक संसार में हर मनुष्य का किसी न किसी प्रकार की क्रिया में सम्मिलित होना अनिवार्य है। इसके अलावा, वह उन कार्यों के बारे में बताते हैं जो मनुष्य को बांधते हैं अथवा वे जो मनुष्य को मुक्ति दिलाते हैं। वे मनुष्य जो अपने कर्तव्यों को भगवन की ख़ुशी के लिए एवं बिना फल की अपेक्षा किये हुए निरंतर करते रहते हैं, वे अंत में मुक्ति प्राप्त करते हैं।

Bhagavad Gita

अध्याय 3 – श्लोक 23

श्लोक 23 - Verse 23यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।3.23।।yadi hyahaṁ na varteyaṁ jātu karmaṇyatandritaḥ mama vartmānuvartante manuṣhyāḥ pārtha sarvaśhaḥशब्दों...
Bhagavad Gita

अध्याय 3 – श्लोक 22

श्लोक 22 - Verse 22न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन। नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि।।3.22।।na me pārthāsti kartavyaṁ triṣhu lokeṣhu kiñchana nānavāptam avāptavyaṁ varta...
Bhagavad Gita

अध्याय 3 – श्लोक 21

श्लोक 21 - Verse 21यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।3.21।।yad yad ācharati śhreṣhṭhas tat tad evetaro janaḥ sa yat pramāṇaṁ kurute lokas tad anuvartateशब्दों...
Bhagavad Gita

अध्याय 3 – श्लोक 20

श्लोक 20 - Verse 20कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः। लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि।।3.20।।karmaṇaiva hi sansiddhim āsthitā janakādayaḥ loka-saṅgraham evāpi sampaśhyan kartum arhasiशब्दों का अर्थkarmaṇā—by the performance of prescribed...
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अध्याय 3 – श्लोक 19

श्लोक 19 - Verse 19तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर। असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः।।3.19।।tasmād asaktaḥ satataṁ kāryaṁ karma samāchara asakto hyācharan karma param āpnoti pūruṣhaḥशब्दों का...
Bhagavad Gita

अध्याय 3 – श्लोक 18

श्लोक 18 - Verse 18नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन। न चास्य सर्वभूतेषु कश्िचदर्थव्यपाश्रयः।।3.18।।naiva tasya kṛitenārtho nākṛiteneha kaśhchana na chāsya sarva-bhūteṣhu kaśhchid artha-vyapāśhrayaḥशब्दों का अर्थna—not; eva—indeed;...
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अध्याय 3 – श्लोक 17

श्लोक 17 - Verse 17यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः। आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते।।3.17।।yas tvātma-ratir eva syād ātma-tṛiptaśh cha mānavaḥ ātmanyeva cha santuṣhṭas tasya kāryaṁ na...
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अध्याय 3 – श्लोक 16

श्लोक 16 - Verse 16एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः। अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति।।3.16।।evaṁ pravartitaṁ chakraṁ nānuvartayatīha yaḥ aghāyur indriyārāmo moghaṁ pārtha sa jīvatiशब्दों का...
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अध्याय 3 – श्लोक 15

श्लोक 15 - Verse 15कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्। तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्।।3.15।।karma brahmodbhavaṁ viddhi brahmākṣhara-samudbhavam tasmāt sarva-gataṁ brahma nityaṁ yajñe pratiṣhṭhitamशब्दों का अर्थkarma—duties; brahma—in...
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अध्याय 3 – श्लोक 14

श्लोक 14 - Verse 14अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः। यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।3.14।।annād bhavanti bhūtāni parjanyād anna-sambhavaḥ yajñād bhavati parjanyo yajñaḥ karma-samudbhavaḥशब्दों का अर्थannāt—from food; bhavanti—subsist; bhūtāni—living...