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कर्मसंन्यासयोग

Path of Renunciation

The fifth chapter of the Bhagavad Gita is “Karma Sanyasa Yoga”. In this chapter, Krishna compares the paths of renunciation in actions (Karma Sanyas) and actions with detachment (Karma Yoga) and explains that both are means to reach the same goal and we can choose either. A wise person should perform his/her worldly duties without attachment to the fruits of his/her actions and dedicate them to God. This way they remain unaffected by sin and eventually attain liberation.

त्याग का मार्ग

भगवद गीता का पांचवा अध्याय कर्मसन्यासयोग योग है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने कर्मयोग और कर्मसन्यासयोग कि तुलना करते हुआ यह बतलाया है कि यह दोनों मार्ग एक ही लक्ष्य तक पहुँचने के माध्यम हैं। इसलिए हम इनमें से किसी भी मार्ग का चुनाव कर सकते हैं। एक बुद्धिमान व्यक्ति को अपने कर्मों को भगवान को समर्पित करते हुए अथवा उनके फल कि चिंता करे बिना अपने सांसारिक कर्तव्यों का पालन करते रहना चाहिए। इस तरह वे पाप से अप्रभावित रहते हैं और अंततः मुक्ति प्राप्त करते हैं।

Bhagavad Gita

अध्याय 5 – श्लोक 19

श्लोक 19 - Verse 19इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः। निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः।।5.19।।ihaiva tair jitaḥ sargo yeṣhāṁ sāmye sthitaṁ...
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अध्याय 5 – श्लोक 18

श्लोक 18 - Verse 18विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि। शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।5.18।।vidyā-vinaya-sampanne brāhmaṇe gavi hastini śhuni chaiva śhva-pāke cha paṇḍitāḥ sama-darśhinaḥशब्दों का अर्थvidyā—divine...
Bhagavad Gita

अध्याय 5 – श्लोक 17

श्लोक 17 - Verse 17तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणाः। गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः।।5.17।।tad-buddhayas tad-ātmānas tan-niṣhṭhās tat-parāyaṇāḥ gachchhantyapunar-āvṛittiṁ jñāna-nirdhūta-kalmaṣhāḥशब्दों का अर्थtat-buddhayaḥ—those whose intellect is directed toward God; tat-ātmānaḥ—those whose heart (mind and...
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अध्याय 5 – श्लोक 16

श्लोक 16 - Verse 16ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः। तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्।।5.16।।jñānena tu tad ajñānaṁ yeṣhāṁ nāśhitam ātmanaḥ teṣhām āditya-vaj jñānaṁ prakāśhayati tat paramशब्दों का...
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अध्याय 5 – श्लोक 15

श्लोक 15 - Verse 15नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः। अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः।।5.15।।nādatte kasyachit pāpaṁ na chaiva sukṛitaṁ vibhuḥ ajñānenāvṛitaṁ jñānaṁ tena muhyanti...
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अध्याय 5 – श्लोक 14

श्लोक 14 - Verse 14न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः। न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते।।5.14।।na kartṛitvaṁ na karmāṇi lokasya sṛijati prabhuḥ na karma-phala-saṅyogaṁ svabhāvas tu...
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अध्याय 5 – श्लोक 13

श्लोक 13 - Verse 13सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी। नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन्।।5.13।।sarva-karmāṇi manasā sannyasyāste sukhaṁ vaśhī nava-dvāre pure dehī naiva kurvan na...
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अध्याय 5 – श्लोक 12

श्लोक 12 - Verse 12युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्। अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते।।5.12।।yuktaḥ karma-phalaṁ tyaktvā śhāntim āpnoti naiṣhṭhikīm ayuktaḥ kāma-kāreṇa phale sakto nibadhyateशब्दों का...
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अध्याय 5 – श्लोक 11

श्लोक 11 - Verse 11कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि। योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वाऽऽत्मशुद्धये।।5.11।।kāyena manasā buddhyā kevalair indriyair api yoginaḥ karma kurvanti saṅgaṁ tyaktvātma-śhuddhayeशब्दों का अर्थkāyena—with...
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अध्याय 5 – श्लोक 10

श्लोक 10 - Verse 10ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः। लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।।5.10।।brahmaṇyādhāya karmāṇi saṅgaṁ tyaktvā karoti yaḥ lipyate na sa pāpena padma-patram...