Kabir ke Dohe
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वाणी – कबीर – दोहा

यह भी पढे – वेद – सार – Veda – Essence

यह भी पढे – शिष्टाचार – Shistachar (हिन्दी कहानी/Hindi Kahani)

दोहा – 1

कागा काको धन हरै, कोयल काको देत
मीठा शब्द सुनाये के , जग अपनो कर लेत।

अर्थ : कौआ किसी का धन हरण नहीं करता और कोयल किसी को कुछ नहीं देता है।
वह केवल अपने मीठी बोली से पूरी दुनिया को अपना बना लेता है।

दोहा – 2

कर्म फंद जग फांदिया, जप तप पूजा ध्यान
जाहि शब्द ते मुक्ति होये, सो ना परा पहिचान।

अर्थ : पूरी दुनिया जप तप पूजा ध्यान और अन्य कर्मों के जाल में फंसी है परंतु
जिस शब्द से मुक्ति संभव है उसे अब तक नहीं जान पाये हैं।

दोहा – 3

ऐक शब्द सों प्यार है, ऐक शब्द कू प्यार
ऐक शब्द सब दुशमना, ऐक शब्द सब यार।

अर्थ : एक शब्द से सबसे प्रेम उत्पन्न होता है एक शब्द सबको प्यारा लगता है।
एक शब्द सबको दुशमन बना देता है और एक शब्द ही सबको मित्र बना देता है। वाणी का सामथ्र्य बहुत है।

दोहा – 4

ऐक शब्द सुख खानि है, ऐक शब्द दुख रासि
ऐक शब्द बंधन कटै, ऐक शब्द गल फांसि।

अर्थ : एक शब्द सुख की खान है और एक ही शब्द दुखों का कारण बन जाता है। एक ही शब्द
जीवन के समस्त बंधनों से मुक्त कर देता है और वही एक शब्द गले की फाॅंस बन जाता है।

दोहा – 5

काल फिरै सिर उपरै, जीवहि नजरि ना जाये
कहै कबीर गुरु शब्द गहि, जम से जीव बचाये।

अर्थ : सिर के उपर मृत्यु नाच रहा है किंतु मनुष्य इसे देख नहीं पा राहा है।
यहि गुरु के उपदेशों को अच्छी तरह अपनावें तो जीव काल से बच सकता है।

दोहा – 6

कुटिल वचन सब ते बुरा, जारि करै सब छार
साधु वचन जल रुप है, बरसै अमृत धार।

अर्थ : दुष्टता पूर्ण वचनों से बुरा कुछ नहीं होता-यह सबों को जला कर राख कर देता है।
किन्तु संतो के वचन जल के समान अमृत की धार वरसाते हैं।

दोहा – 7

कुटिल वचन नहि बोलिये, शीतल बैन ले चिन्हि
गंगा जल शीतल भया, पर्वत फोरा तिन्हि।

अर्थ : शत्रुता पूर्ण वचन कभी न बोले केेवल शीतल शुद्ध वचन समझ कर बोंले।
गंगा जल शीतल एंव पवित्र है अतः पहाड़ फोड़ कर आता है। अच्छे वचन से सभी कठिन काम सिद्ध होते है।

दोहा – 8

खोद खाये धरती सहै, काट कूट वनराये
कुटिल वचन साधु सहै, और से सहा ना जाये।

अर्थ : धरती खोदना-जोतना-कोड़ना सहती है। जंगल काट कूट सहती है। साधु कुटिल-दुष्ट वचन सहते है।
अन्य लोगों से इस प्रकार की बाते नहीं सही जाती है।

दोहा – 9

जंतर मंतर सब झूठ है, मति भरमो जग कोये
सार शब्द जाने बिना, कागा हंस ना होये।

अर्थ : तंत्र, मंत्र, यंत्र सब झूठी बातें हैं। इन सब चीजों से संसार को भ्रमित मत करो।
जीवन के मूल तत्व और मंत्र को जाने बिना कौआ कभी हॅंस नहीं बन सकता है।

दोहा – 10

जिभ्या जिन बस मे करि, तिन बस कियो जहान
नहि तो अवगुन उपजै, कहि सब संत सुजान।

अर्थ : जिसने अपने जिहवा को नियंत्रित कर लिया है वह वस्तुतः संसार को जीत लिया है।
अन्यथा अनेक अवगुण और पाप पैदा होते हैं- ऐसा ज्ञानी संतों का विचार है।

दोहा – 11

जिहवा मे अमृत बसै, जो कोई जाने बोल
बिष बासुकि का उतरै, जिहवा तानै हिलोल।

अर्थ : जीभ में अमृत का बास है यदि लोग सही बोलना जानें।
यह बासुकी नाग के जहर को भी अपने मीठी बोली के प्रभाव से खींच लेता है।

दोहा – 12

बोले बोल बिचारि के, बैठे ठौर सम्हारि
कहे कबीर ता दास को, कबहु ना आबै हारि।

अर्थ : खूब सोच समझ विचार कर बोलो और सही ढं़ग से उचित स्थान पर ही बैठो।
कबीर कहते है कि ऐसा व्यक्ति हार कर नहीं लौटता है।

दोहा – 13

जिहवा शक्कर दूध जीव, जिहवा प्यारी जागि
जिहवा प्यारी रहि मिलै, जिहवा लावै आगि।

अर्थ : जीह में चीनी ओर दूध का बास होता है। अतः जीभ को सर्तकता पूर्वक रहना चाहिये।
यही जीव हमें प्रियतम-प्यारी से मिलाता है और यही जीव आग भी लगा देती है।

दोहा – 14

मता हमारा मंत्र है, हम सा है सो लेह
शब्द हमारा कल्पतरु, जो चाहे सो देह।

अर्थ : मेरे विचार माॅं के समान लाभ दायी हैं। यदि तुम मेरे समान ही हित चाहते हो तो इसे वह प्राप्त करो।
मेरे विचार कल्प वृक्ष के समान हैं। तुम जो भी इच्छा करोगे-तुम्हें इससे वह प्राप्त होगा।

दोहा – 15

जिहि शब्दे दुख ना लगे, सोई शब्द उचार
तप्त मिटी शीतल भया, सोई शब्द तत सार।

अर्थ : जिन शब्दो से कोई दुखी ना हो-उसे ही बोलिये। जो शब्द तप्तहृदय की दग्घता
मिटा दे और हृदय में शीतलता उत्पन्न करे उसे ही बोलना चाहिये।

दोहा – 16

आदि नाम पारस अहै, मन है मैला लोह
परसत ही कंचन भया, छूटा बंधन मोह।

अर्थ : प्रभु पारस पथ्थर की भाॅंति है और मन गंदे लोहे की तरह है। इसके स्पर्श मात्र से ही
यह सोना हो जाता है और संसार के सभी मोहमाया के बंधन से मुक्ति हो जाती है।

दोहा – 17

मुख आबै सो कहै, बोले नहीं बिचार
हाते परै आत्मा, जीव बंाधि तरवार।

अर्थ : बिना उचित विचार किये जो भी मुॅंह में आता है बोल देते हैं मानों जिहवा में तलवार
बाॅंधकर रखते हैं-फलतः दूसरों के हृदय और आत्मा को दुखी करते हैं।

दोहा – 18

मैं कलि का कोतवाल हूॅ, लेहू शब्द हमार
जो यह शब्दहि मानि है, सो उतरै भौपार।

अर्थ : मैं इस कलियुग का रक्षक पहरेदार हूॅं। हमारे शब्दों पर ध्यान दों
जो मेरे उपदेश को मानेगें वे निश्चित ही इस भव रुपी संसार सागर के पार उतर जायेंगे।

दोहा – 19

रैन तिमिर नासत भयो, जब ही भानु उगये
सार शब्द के जानते, करम भरम मिटि जाये।

अर्थ : सूर्य के उदय के कारण दिन का अंधकार अंत हो जाता है।
इसी प्रकार मेरे शब्दों-उपदेशों का मूल तत्व जान लेने पर सभी सांसारिक कर्मों का भ्रम समाप्त हो जाता है।

दोहा – 20

शब्द जु ऐसा बोलिये, तन का आपा खोये
औरन को शीतल करै, आपन को सुख होये।

अर्थ : इस प्रकार से शब्द-वचन बोलें जिस में अपने अहंकार को नाश कर दिया हो।
जो दूसरों के मन को शीतल-हर्षित कर दे और बोलने बाले को सुखी करे।

दोहा – 21

संत संतोषी सर्वदा, सबहि भेद बिचार
सतगुरु के परताप ते सहज शील मत सार।

अर्थ : शब्द और वाणी के रहस्य के विचारो परांत संत सर्वदा संतोषी रहते हैं और ईश्वर की कृपा से वे
सदा सहज रुप से शील और सार तत्व को ही प्राप्त करते हैं।

दोहा – 22

सकल ब्रहमांड है शब्द मे, शब्दहि ब्रहम् महान
शब्द परे कछु है नहीं, जानत मुनि बिज्ञान।

अर्थ : यह अखिल विश्व शब्द में ही निहित है। शब्द ही वस्तुतः महान ईश्वर है।
इस शब्द के बाहर कुछ भी नही है ऐसी जानकारी मुनि,विद्वान अपने ज्ञान एंव विज्ञान से कहते है।

दोहा – 23

सतयुग त्रेता द्वापरा, येह कलियुग अनुमान
सार शब्द ऐक सच है, और झूठ सब ज्ञान।

अर्थ : सतयुग,त्रेता द्वापर और इस कलियुग का एकमात्र अनुमान है कि प्रभु का ज्ञान ही एकमात्र
सत्य है।अन्य सभी ज्ञान झूठ हैं।

दोहा – 24

शब्द उपदेश जू मैं कहूॅ ,जो कोई माने संत
कहे कबीर बिचारि के, ताहि मिलाबो कंत।

अर्थ : कबीर का सुविचार मत है कि जो शब्द और उपदेश वे कहते है यदि कोई संत उसे
हृदय से स्वीकार करे तो कबीर ईश्वर से अवश्य मिला देगें।

दोहा – 25

शब्द बड़ा बलवान है, शब्द समान ना कोये
सब शब्दहि से होत है, शब्दहि मे सब होये।

अर्थ : शब्द बहुत शक्तिशाली होता है। इसके समान कुछ भी नहीं होता ।
संसार में सब कुछ शब्द ईश्वर से ही होता है और दुनिया के सारे शब्द ईश्वर में ही स्थित हैं।

दोहा – 26

शब्द बराबर धन नहीं, जो कोई जाने बोल
हीरा तो दामो मिले, शब्द ही मोल ना तोल।

अर्थ : शब्द के समान कोई धन नहीं होता यदि कोई बोलना जानता हो।
हीरा को मूल्य लगा कर खरीदा जा सकता है किंतु शब्द का मोल भाव संभव नहीं होता है।

दोहा – 27

शब्द शब्द सब कोई कहै, शब्द का करो बिचार
ऐक शब्द शीतल करै, ऐक शब्द दे जार।

अर्थ : शब्द-शब्द सब कोई बोलते हैं पर शब्द पर विचार करना चाहिये।
एक शब्द मन को शीतल करता है और एक शब्द हृदय में जलन उत्पन्न करता है।

दोहा – 28

शब्द सम्हारै बोलिये, शब्द के हाथ ना पांव
ऐक शब्द औषध करै , ऐक शब्द करै घाव।

अर्थ : हमें संभल कर बोलना चाहिये-शब्द को हाथ पैर नहीं होता हैं।
कोई शब्द दवा की तरह काम करता है और कोई शब्द घाव बन जाता है।

दोहा – 29

शीतल शब्द उचारिये, अहंन आनिये नाहि
तेरा प्रीतम तुझहि मे, दुशमन भी तुझ माहि।

अर्थ : सर्वदा शीतल मधुर लाभदायी बोलें-कभी अपने अंदर घमंड और अहंकार नहीं आने दें।
आपका प्रेमी प्रभु आपके हृदय में हैं और आपका शत्रु भी आपके भीतर ही बैठा है।

दोहा – 30

शब्द हमारा हम शब्द के, शब्द ब्रहम् का कूप
जो जाहै दीदार को परख शब्द का रुप।

अर्थ : हम शब्द की पूजा करते हैं और शब्द हमारा पूज्य है।
जो ईश्वर का साक्षातकार चाहता हो उसे शब्द के मूल स्वरुप की परख होनी चाहिये।

दोहा – 31

शब्द शब्द बहु अंतरा, सार शब्द चित देह
जा शब्दै साहिब मिलै, सोई शब्द गहि लेह।

अर्थ : शब्द-शब्द में बहुत अंतर है। जो मूल सत्य के शब्द हैं उन्हें अपने हृदय-चिन्तन में रखो।
जिस शब्द से प्रभु का दर्शन हो तुम उसी शब्द को पकड़े रहो तुम्हारा बेरा पार होगा।

दोहा – 32

रैन समानी भानु मे, भानु अकासे माहि
अकाश समाना शब्द मे, शब्द परै कछु नाहि।

अर्थ : सूर्य के प्रगट होने पर रात समाहित हो जाता है। सूर्य भी आकाश में समाहित है।
आकाश शब्द में समाहित है और शब्द के परे कुछ भी नहीं है। शब्द ही ब्रम्ह है।

Note:- इन कहानियों मे प्रयोग की गई सभी तस्वीरों को इंटरनेट से गूगल सर्च और बिंग सर्च से डाउनलोड किया गया है।

Note:-These images are the property of the respective owner. Hindi Nagri doesn’t claim the images.

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